👉 प्राणवान् प्रतिभाओं की खोज
🔷 त्रेता में एक ओर रावण का आसुरी आतंक छाया हुआ था, दूसरी ओर रामराज्य वाले सतयुग की वापसी, अपने प्रयास-पुरुषार्थ का परिचय देने के लिए मचल रही थी। इस विचित्रता को देखकर सामान्यजन भयभीत थे। राम के साथ लड़ने के लिए उन दिनों के एक भी राजा की शासकीय सेनाएँ आगे बढ़कर नहीं आईं। फिर भी हनुमान्, अंगद के नेतृत्व में रीछ-वानरों की मंडली जान हथेली पर रख आगे आई और समुद्र-सेतु बाँधने, पर्वत उखाड़ने लंका का विध्वंस करने में समर्थ हुई। राम ने उनके सहयोग की भाव भरे शब्दों में भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस सहायक समुदाय में गीध, गिलहरी, केवट, शबरी जैसे कम सामर्थ्यवानों का भी सदा सराहने योग्य सहयोग सम्मिलित रहा।
🔶 महाभारत के समय भी ऐसी ही विपन्नता थी। एक ओर कौरवों की विशाल संख्या वाली सुशिक्षित और समर्थ सेना थी, दूसरी ओर पाण्डवों का छोटा-सा अशक्त समुदाय। फिर भी युद्ध लड़ा गया। भगवान ने सारथी की भूमिका निबाही और अर्जुन ने गाण्डीव से तीर चलाए। जीत शक्ति की नहीं, सत्य की, नीति की, धर्म ही हुई। इन उदाहरणों में गोवर्धन उठाने वाले ग्वाल-बालों का सहयोग भी सम्मिलित है। बुद्ध की भिक्षु मंडली और गाँधी की सत्याग्रही सेना भी इसी तथ्य का स्मरण दिलाती है।
🔷 प्रतिभा ने नेतृत्व सँभाला, तो सहयोगियों की कमी नहीं रही। संसार के हर कोने से, हर समय में ऐसे चमत्कारी घटनाक्रम प्रकट होते हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि सत्य की शक्ति अजेय है। उच्चस्तरीय प्रतिभाएँ उसे गंगावतरण काल के जैसे प्रयोजन में और परशुराम जैसे ध्वंस प्रयोजनों में प्रयुक्त करती रही हैं। महत्त्व घटनाक्रमों और साधनों का नहीं रहा, सदैव मूर्द्धन्य प्रतिभाओं ने ही महान समस्याओं का हल निकालने में प्रमुख भूमिका निबाही है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 7
🔷 त्रेता में एक ओर रावण का आसुरी आतंक छाया हुआ था, दूसरी ओर रामराज्य वाले सतयुग की वापसी, अपने प्रयास-पुरुषार्थ का परिचय देने के लिए मचल रही थी। इस विचित्रता को देखकर सामान्यजन भयभीत थे। राम के साथ लड़ने के लिए उन दिनों के एक भी राजा की शासकीय सेनाएँ आगे बढ़कर नहीं आईं। फिर भी हनुमान्, अंगद के नेतृत्व में रीछ-वानरों की मंडली जान हथेली पर रख आगे आई और समुद्र-सेतु बाँधने, पर्वत उखाड़ने लंका का विध्वंस करने में समर्थ हुई। राम ने उनके सहयोग की भाव भरे शब्दों में भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस सहायक समुदाय में गीध, गिलहरी, केवट, शबरी जैसे कम सामर्थ्यवानों का भी सदा सराहने योग्य सहयोग सम्मिलित रहा।
🔶 महाभारत के समय भी ऐसी ही विपन्नता थी। एक ओर कौरवों की विशाल संख्या वाली सुशिक्षित और समर्थ सेना थी, दूसरी ओर पाण्डवों का छोटा-सा अशक्त समुदाय। फिर भी युद्ध लड़ा गया। भगवान ने सारथी की भूमिका निबाही और अर्जुन ने गाण्डीव से तीर चलाए। जीत शक्ति की नहीं, सत्य की, नीति की, धर्म ही हुई। इन उदाहरणों में गोवर्धन उठाने वाले ग्वाल-बालों का सहयोग भी सम्मिलित है। बुद्ध की भिक्षु मंडली और गाँधी की सत्याग्रही सेना भी इसी तथ्य का स्मरण दिलाती है।
🔷 प्रतिभा ने नेतृत्व सँभाला, तो सहयोगियों की कमी नहीं रही। संसार के हर कोने से, हर समय में ऐसे चमत्कारी घटनाक्रम प्रकट होते हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि सत्य की शक्ति अजेय है। उच्चस्तरीय प्रतिभाएँ उसे गंगावतरण काल के जैसे प्रयोजन में और परशुराम जैसे ध्वंस प्रयोजनों में प्रयुक्त करती रही हैं। महत्त्व घटनाक्रमों और साधनों का नहीं रहा, सदैव मूर्द्धन्य प्रतिभाओं ने ही महान समस्याओं का हल निकालने में प्रमुख भूमिका निबाही है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 7