कौन कहता है की आँसू मे वजन नही होता, अरे एक बूँद ढल जायें तो मन हल्का हो जाता!
एक आँसू गिरा दे किसी निर्दोष की आँख से तो भविष्य तबाह हो जाता! कौन कहता है की आँसूओं मे शक्ति नही होती, अरे बिना आँसूओं के तो भक्ति भी भक्ति नही होती!
एक राजा जिसे अपने साम्राज्य को बढ़ाने की बड़ी चाह थी और ऊपर से मांसाहारी भी था प्रजा पर अनेक कर लगाकर अपना खजाना भरता रहता था! एक बार वो किसी जंगल मे शिकार करने के लिये गया जंगल मे बहुत दुर निकल गया पानी की बड़ी प्यास लगने लगी अब भटकते भटकते रात हो गई पुरी रात भटका पर पानी न मिला!
सुबह एक कोई अपाहिज पानी की मटकी लिये हुये जा रहा था वो राजा उसके पास पहुँचा और राजा ने उस अपाहिज से कहा की ए भाई मैं प्यास से मर रहा हुं मुझे अपनी मटकी से पानी पिला दो तो अपाहिज रोने लगा उसकी आँखो से आँसूओं की धारा बहने लगी राजा ने उससे पूछा अरे पानी माँग रहा हुं तो रो क्यों रहे हो तो उस अपाहिज ने कहा हॆ देव यहाँ से दो कोस की दूरी पर एक कुआँ है और मैं ठहरा एक अपाहिज वहाँ तक जाऊँगा और वहाँ से पानी लेकर आऊँगा तब तक आपकी व्यथा मुझसे सहन न होगी और आपकी इतनी श्रद्धा नही दिख रही है की आप वहाँ तक चल सको बस इसी लिये मेरी आँखो मे आँसू आ गये !
पता नही की कौनसे अपराध किये थे मैंने न जाने किस निर्दोष की आँख मे आँसू दिये थे मैंने जिसकी ये सजा मैं भुगत रहा हुं पर आप चिन्ता न करो देव वो सामने भोले बाबा के शिवलिंग पर एक मटकी लगी हुई है शायद उसमे थोड़ा पानी हो सकता है अन्दर पुजारी जी होंगे वो आपको पानी पिला देंगे अच्छा राजन अब मैं चलता हुं!
राजा पहुँचा भोले बाबा के मन्दिर मे पुजारीजी ने पानी पिलाया तो राजा की आँखो से आँसू बहने लगे पुजारीजी ने पूछा तो आँसू और बढ़ने लगे और फिर राजा ने कहा और उस अपाहिज के बारे मे राजा बोलने लगे
देखा जब मैंने उसे तो स्तब्ध रह गई आँखे मेरी
पूँछ बैठा मैं उसे क्यों है आँसू आँखो मॆ तेरी
न बोला कुछ भी न बोला पर जब बार बार पुछा
तो उसने जो कहा तो शर्म से झुक गई आँखे मेरी
और जब गहरा चिन्तन किया तो पुरी जिन्दगी बदल गई मेरी
उसने कहा मुझ से रोती है बहुत रोती है आँखे मेरी
मैं कुछ करना चाहता हुं परमार्थ के लिये
पर जब देखता हूँ मैं की कोई मदद माँग रहा है मुझसे और जब वो देखता है मदद के लिये एक आशा भरी नजरो से मेरी तरफ और जब मैं पाता हुं अपने आपको बहुत विवश
तो आँखो मॆ आँसू आ जाते है मेरी
फिर मैंने उससे कह दिया अब कुछ न बोलो बिल्कुल भी न बोलो
क्योंकि आपकी आँखो मॆ आँसू आते है परमार्थ के लिये
और मेरी आँखो मॆ आँसू आते है स्वार्थ के लिये!
तब शर्म से झुक गई आँखे मेरी और अब सोचता हुं की ईश्वर ने मुझे इतना कुछ दिया पर मैने संसार को आँसूओं के सिवा कुछ न दिया, अपनी जिह्वा के लिये न जाने कितने निर्दोष पशुओं की आँखो मे आँसू दिये और उनका वध किया, अपने खजाने और अपनी लोभी प्रवर्ति को पुरा करने के लिये न जाने कितने निर्दोष और अबोधो की आँखो मे आँसू दिये!
फिर पुजारीजी ने कहा राजन आपकी आँखो से जो पश्चात्ताप के आँसू बहे उन्हे व्यर्थ न जाने देना और इस मानव देह को सार्थक करना और आगे से किसी भी आँख मे आँसू मत देना!
और राजा ने वही किया जो पुजारीजी ने कहा!