शनिवार, 29 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 29 July 2023

मनुष्य का वास्तविक हित इस बात में नहीं कि उसे धन, मान, स्त्री, पुत्र आदि के सुख-साधन मिल जाय, वरन् इसमें है कि उसकी अंतरात्मा सद्गुणों की विभूतियों से संपन्न होककर अपना ही नहीं असंख्यों का कल्याण करता हुआ पूर्णता के परम लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो। हम अपने स्वजनों के सच्चे हितैषी और सच्चे हितवादी बन कर रहेंगे। उन्हें वासना और तृष्णा की कीचड़ में बिलखते हुए और पेट-प्रजनन के जाल-जंजाल में फड़फड़ाता हुआ न छोड़ेंगे।

शिक्षा, उपदेश, मार्गदर्शन करने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं। सद्गुरु कितने ही रूप में हमारे काय-कलेवर में विराजमान है और अपना प्रशिक्षण निरन्तर जारी रख रहे हैं। उचित और अनुचित का भेद करने वाला परामर्श अपना परमात्मा निरन्तर देता रहता है। सत्कर्म करते हुए आत्म-संतोष, दुष्कर्म करते हुए आत्म-धिक्कार की जो भावना उठती रहती है उसे ईश्वरीय प्रशिक्षण अंतरात्मा का उपदेश कहा जा सकता है।

‘‘मैं यह काम करूँगा और करके ही रहूँगा चाहे जो कुछ हो’’-ऐसी बलवती इच्छा को जिसकी ज्योति अहर्निश कभी मंद न हो दृढ़ इच्छा शक्ति कहते हैं। बहुत से लोग ठीक से निश्चय नहीं कर पाते कि वे क्या करें। उनका मन हजार दिशाओं में दौड़ता है। वे दृढ़ इच्छा शक्ति के चमत्कार को क्या समझ सकते हैं? इस शक्ति के अंतर्गत दृढ़ निश्चय, आत्म विश्वास, कार्य करने की अनवरत चेष्टा और अध्यवसाय आदि गुण आ जाते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 गृहस्थ में ईश्वर प्राप्ति

एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि “क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है?” मंत्री ने उत्तर दिया- हाँ, श्रीमान् ऐसा हो सकता है। राजा ने पूछा कि यह किस प्रकार संभव है? मंत्री ने उत्तर दिया कि इसका ठीक ठीक उत्तर एक महात्मा जी दे सकते हैं जो यहाँ से गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं।

राज अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर उन महात्मा से मिलने चल दिया। कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा- महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकोड़ो को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पाँव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुँचे।

महात्मा ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा से पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए। राजा ने कहा- भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकोड़ो को देखता आया हूँ। इसलिए मेरा ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं, रास्ते के दृश्यों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।

इस पर महात्मा ने हँसते हुए कहा- राजन् यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। मेरे श्राप से डरते हुए तुम आये उसी प्रकार ईश्वर के दण्ड से डरना चाहिए, कीड़ों को बचाते हुए चले, उसी प्रकार दुष्कर्मों से बचते हुए चलना चाहिए। रास्ते में अनेक दृश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़े। जिस सावधानी से तुम मेरे पास आये हो, उसी से जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो। राजा ठीक उत्तर पाकर संतोषपूर्वक लौट आये।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 12

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...