सोमवार, 29 जुलाई 2019

👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग 39)

👉 चिकित्सक का व्यक्तित्व तपःपूत होता है

अंगुलीमाल क्रूर व निर्मम दस्यु था। उसके बारे में यह प्रचलित था कि वह मिलने वालों को मारकर उसकी तर्जनी अंगुली काट लेता है। ऐसी अनगिनत अंगुलियों को काट कर उसने माला बना रखी थी। सेनाएँ उससे डरती थीं। स्वयं कोशल नरेश प्रसेनजित उससे भय खाते थे। उसकी निर्ममता- क्रूरता एवं हत्यारे होने के सम्बन्ध में अनेकों लोक कथाएँ जन- जन में कही- सुनी जाती थी। लेकिन जब इन किवदन्तियों को बुद्ध ने सुना तो उन्हें अंगुलीमाल में एक हत्यारे के स्थान पर मनोरोगी नजर आया। भगवान् तथागत ने सम्पूर्ण तत्परता के साथ उसकी स्थिति का ऑकलन कर लिया। उन्होंने सोचा अंगुलीमाल की यह दशा किन्हीं क्रियाओं की प्रतिक्रिया है। न जाने कितनों ने कितनी बार उसकी भावनाओं को आहत किया होगा। कितनी बार उसका दिल दुखा होगा। कितनी बार उसकी संवेदनाएँ कुचली, मसली और रौंदी गयी होगी। अंगुलीमाल का वह दर्द जिसे अब तक कोई महसूस न कर सका, भगवान् बुद्ध ने पलक झपकते इसे अपने प्राणों में अनुभव कर लिया।

अंगुलीमाल की पीड़ा उनके अपने प्राणों की पीर बन गयी और वह चल पड़े। वन में उन्हें देखते ही अंगुलीमाल ने अपना गंडासा उठाया, पर बुद्ध खड़े रहे। उनकी आँखों से करूणा झलकती रही। अंगुलीमाल उन्हें डांटता, डपटता, धमकाता रहा, बुद्ध उसे सुनते- सहते रहे। अन्त में जब वह चुप हो गया तो उन्होंने कहा- वत्स तुमको सबने बहुत सताया है। अनगिन लोगों ने अनगिन बार तुम्हारी भावनाओं को चोट पहुँचाई है। मैं तुम्हारे दर्द को बांटने आया हूँ। करूणा से सने ऐसे स्वरों को अंगुलीमाल ने कभी न सुना था। उसने तो सिर्फ घृणा, उपेक्षा एवं अपमान के दंश झेले थे, पर बुद्ध के स्वरों में तो मां की ममता छलक रही थी। उनके ज्योतिपूर्ण नेत्रों से तो उसके लिए सिर्फ प्रेम छलक रहा था।
पल भर में उस दस्यु कहे जाने वाले पीड़ित मानव के आवरण गिर गए। उसका व्यक्तित्व भगवान् तथागत की करूणा से स्नात हो गया।

एक क्षण में अनेकों चमत्कार घटित हो गए। अनास्था आस्था में बदली, अविश्वास विश्वास में, अश्रद्धा श्रद्धा में बदली तो द्वेष मित्रता में और घृणा प्रेम में परिवर्तित हो गयी। दस्यु का व्यक्तित्व भिक्षु के व्यक्तित्व में रूपान्तरित हो गया। लेकिन इस रूपान्तरण का स्रोत आध्यात्मिक चिकित्सक के रूप में बुद्ध का व्यक्तित्व था। जिन्होंने उस मानसिक रोगी के अन्तर्मन को अपनी पवित्रता एवं प्रामाणिकता के धागों से जोड़ लिया था। बाद में विज्ञजनों ने कहा कि वह क्षण ही विशेष था, जिसे भगवान् ने अंगुलीमाल के रूपान्तरण के लिए चुना था। यही कारण है कि यह भी सच है कि आध्यात्मिक चिकित्सा की सफलता के लिए कोई ज्योतिष की उपादेयता को नकार नहीं सकता।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 56

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