सोमवार, 11 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 11 Sep 2023

आत्मा परमात्मा का अंश है। जिन भोगों से शरीर को आनन्द मिलता है। उन्हीं से आत्मा को भी मिले आवश्यक नहीं। जिस क्षण से हम इस दुनिया में आते हैं उससे लेकर मृत्यु तक आत्मा हमारे शरीर में उपस्थित है। शरीर के भिन्न भिन्न अवयवों की क्षमता विशेषता एवं क्रिया कलाप के बारे में बहुत सी बातें जानते हैं और अधिक जानने का प्रयास करते हैं। लेकिन अपने ही अन्दर छिपी आत्म को जानने पहचानने समझने एवं विकसित करने की बात हम नहीं जानते।

जीवन के समग्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह आवश्यक है कि हम शरीर एवं आत्मा दोनों के समन्वित विकास परिष्कार एवं तुष्टि पुष्टि का दृष्टिकोण बनावे। एक को ही सिर्फ विकसित करे और एक को अपेक्षित करें ऐसा दृष्टिकोण अपनाने से सच्चा आनन्द नहीं मिल सकता। सिर्फ आत्मा का ही परिष्कार एवं विकास करें और शरीर को उपेक्षित करें इससे भी अपना कल्याण नहीं हो सकता। उसी प्रकार जब आत्म को कष्ट पहुँचता है तो मन दुःखी होकर शरीर को प्रभावित करता है।

जिन्होंने अपनी आत्म को दीन हीन स्थिति में रखा है और उसकी प्रचण्ड शक्ति से परिचित नहीं है वे मुर्दों जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर होते हैं। वे शारीरिक सामर्थ्य रहते हुए भी बड़ी गयी गुजरी स्थिति में रहते हैं और निराशा चिन्ता एवं निरर्थक जीवन बिताते रहते हैं। जबकि अपाहिज अपंग क्षीणकाय रुग्ण एवं दुर्बल व्यक्तियों ने भी अपने आत्मबल के द्वारा ऐसे कार्य सम्पादित किये है जिनसे वे इतिहास में अमर हो गये है। सैकड़ों लोगों के लिए वे प्रेरणा के स्रोत बने है। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 वाणी की शक्ति

गुरुकुल के विद्यार्थियों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि संसार में सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है? कोई कुछ कहता, कोई कुछ! जब पारस्परिक वाद−विवाद का कोई निर्णय न निकला तो फिर सभी विद्यार्थी गुरु जी के पास पहुँचे।

गुरु जी ने शिष्य की बात सुनकर कहा— “तुम सबकी बुद्धि खराब हो गई है।” और शाँत हो गये। शिष्य गुरुदेव की इस छोटी बात को भी सहन न कर पाये और थोड़ी ही देर में उनके चेहरे तमतमा गये। अपने लाल−लाल नेत्रों से गुरु जी को घूरने लगे।

थोड़ी देर बाद गुरु जी शिष्यों से बोले—“तुम सब पर आश्रम को गर्व है, तुम लोग अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं खोते, अवकाश में समय में भी ज्ञान की चर्चा करते हो।” अब तो शिष्यों के मन में स्वाभिमान जागृत हुआ और उनके चेहरे खिल उठे।

गुरु जी ने कहा—“मेरे प्यारे शिष्यों! इस संसार में वाणी से बढ़कर कोई शक्तिशाली वस्तु नहीं है। वाणी से मित्र को शत्रु तथा शत्रु को मित्र बनाया जा सकता है। ऐसी शक्तिशाली वस्तु का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच−समझकर करना चाहिये। वाणी का माधुर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। और न बनने वाला कार्य भी बन जाता है।”
शिष्यगण सन्तुष्ट होकर लौट गये और उस दिन से मीठा बोलने का अभ्यास दृढ़तापूर्वक करने लगे।

📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1970 पृष्ठ 10

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...