🔴 भगवान् आए धरती पर
इसी उद्देश्य से भगवान् पृथ्वी पर आने की तैयारियाँ करने लगे। लक्ष्मी जी ने कहा ‘अरे! आप तो बेकार परेशान हो रहे हैं। मनुष्य तो आपके काम का रहा नहीं। मनुष्य बड़ा चालाक हो गया है और मनुष्य बहुत छोटा हो गया है, बड़ा संकीर्ण हो गया है। उसके पास जाने से आपको कोई फायदा नहीं।’ भगवान् ने कहा- ‘‘नहीं, मनुष्य तो हमारा बच्चा है। हम तो जायेंगे और मनुष्य के पास रहेंगे और उसको रास्ता बतायेंगे और कर्तव्य बताएँगे।’’ भगवान् जी बैकुण्ठलोक से रवाना हो गये और पृथ्वी पर आये। पृथ्वी पर निवास करने लगे। लोगों से कहा- ‘‘मनुष्यो! हमने तुमको बनाया है और एक काम के लिए बनाया है। उस काम के लिए हम आपको शिक्षा देंगे और आपके दुःखों को दूर करेंगे। शान्ति के लिए आगे बढ़ाएँगे।’’ भगवान् ने मनुष्यों से यह बात कही। मनुष्य आये और भगवान् के पास घूमने लगे, चक्कर काटने लगे। भगवान् उनको ज्ञान की बातें बताने लगे, शिक्षा की बात बताने लगे। आत्मकल्याण की बात बताने लगे। परोपकार की बात बताने लगे। सेवा की बात बताने लगे। लेकिन मनुष्यों ने उसको सुनने से इंकार कर दिया।
🔵 मनोकामनाओं की लिस्ट
मनुष्यों ने कहा- ‘‘भगवान् जी! इन बातों की हमको जरूरत नहीं है।’’ तो फिर किस बात की जरूरत है? उन्होंने कहा कि महाराज जी! आप तो बतायें कि हमको खाँसी आ जाती है। हमको बुखार आ जाता है। आप हमारा बुखार अच्छा कर दीजिए। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारे ऊपर मुकदमा चल रहा है और आप मुकदमा ठीक करा दीजिए। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारा ब्याह नहीं हुआ है और हमारी इतनी उमर हो गयी और हमको अच्छी से अच्छी लड़की नहीं मिलती। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारी कन्या बाईस साल की हो गयी है। हम उसके लिए लड़का ढूँढ़ते हैं, मिलता नहीं। लोग ज्यादा से ज्यादा दहेज माँगते हैं। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारा ये काम करा दीजिये, वो काम करा दीजिये। भगवान् ने कहा- ‘‘लोगो! यह तुम्हारा काम है। हमारा काम नहीं है’’ लोगों ने कहा कि महाराज जी! यही आपके काम हैं और आप ही यह काम किया कीजिए।
🔴 भगवान् को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि हम ज्ञान देने के लिए आये थे, मनुष्य जीवन का उद्देश्य बताने के लिए आये थे और शान्ति देने के लिए आये थे और आगे बढ़ाने के लिए आये थे। और ये कमबख्त ऐसे बेवकूफ हैं कि अपने दैनिक जीवन की जो छोटी- मोटी सी आवश्यकताएँ हैं, समस्याएँ हैं, जिनको कि आदमी अपनी अकल को सही रख करके आसानी से पूरी कर सकता है, समस्याएँ हल कर सकता है, उसको हमसे माँगता है। ये आदमी बड़े खराब हैं। भगवान् नाराज हो गये और उन्होंने अपना बिस्तर उठाया, अपना सामान उठाया, अटैची उठायी और चलने लगे।
🔵 पहाड़ पर प्रभु। वहाँ भी पहुँचा मानव
भगवान् जी को गुस्सा आया, तो उन्होंने विचार किया कि ऐसी जगह चलना चाहिए जहाँ कोई पहुँच न सके। सो वे पहाड़ के ऊपर चले गये। वे कैलाश पर्वत पर रहने लगे। लोगों ने कहा कि भगवान् जी को तलाश करना चाहिए और वहाँ चलना चाहिये और अपनी दिक्कतें बतानी चाहिए और वहीं से आशीर्वाद लाना चाहिए। भगवान् जी कैलाश पर्वत पर मानसरोवर के पास बैठे हुए थे। बस, लोगों ने रास्ता ढूँढ़ा। कौन सा रास्ता है? नैनीताल के पास से जाता है, अल्मोड़ा के पास से जाता है। तिब्बत तक का रास्ता ढूँढ़ते हुए पहाड़ों पर होते हुए कैलाश पर्वत तक वे जा पहुँचे। भगवान् ने कहा कि धक्के खाकर के मनुष्य मेरे पास आ गया, चलो अच्छा हुआ।
भगवान् ने कहा- ‘‘बच्चों! तुम्हारे पास सारी शक्तियाँ हैं और सारी सुविधाएँ है, जो मैंने तुम्हारे भीतर दबाकर रख दी हैं। तुमको उन्हें अपने भीतर तलाश करना चाहिए और तुमको अपना जीवन अच्छा बनाना चाहिए। जैसे ही तुम अपना जीवन अच्छा बनाओगे, सारी ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ, सारे सुख और सारी सुविधाएँ अनायास ही आती हुई चली आयेंगी।’’ लोगों ने कहा कि महाराज जी! यह तो बड़े झगड़े का काम है और बहुत झंझट का काम है। हम अपने आपको कैसे सिद्ध करेंगे और कैसे मन को नियंत्रित करेंगे? और कैसे इन्द्रियों का निग्रह करेंगे? सेवा के लिए हम मन कहाँ से लायेंगे और ऐसे कैसे करेंगे? यह हमसे नहीं हो सकता और हम नहीं करेंगे। भगवान् ने कहा- ‘फिर क्या करोगे?’ हम तो महाराज जी! बस आपका आशीर्वाद माँगेंगे और अपना फायदा करायेंगे आपसे।
🔴 क्षुद्र और क्षुद्रतम हम
भगवान् जी को फिर गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि हम इसीलिए तो भाग करके यहाँ आये थे। हमने तुमको सारी विद्याएँ दे दीं, मजबूत कलाइयाँ दे दीं, अक्ल दे दी, सब काम कर दिया और इस लायक बना दिया कि अपने इस शरीर की जरूरतों को स्वयं पूरा कर लिया करो। और तुम हो कि शरीर की जरूरतों को भी पूरा कराने के लिए हमारे पास चले आते हो। यह बड़ी खराब बात है। हम तो तुम्हारी आत्मा को बढ़ायेंगे। लोगों ने कहा कि आत्मा को बढ़ाने की जरूरत नहीं है। हम तो आपसे अपने शरीर की चीजों को माँगेंगे। भगवान् जी को फिर नाराजगी हुई और वे फिर वहाँ से भाग खड़े हुए।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य