मंगलवार, 23 अगस्त 2022

👉 प्रेम का वास्तविक स्वरूप

निश्चय ही प्रेम और आनंद का उद्गम आत्मा के अंदर है। उसे परमात्मा के साथ जोड़ने से ही अपरिमित और स्थायी आनंद प्राप्त हो सकता है। सांसारिक नाशवान वस्तुओं के कंधे पर यदि आत्मीयता का बोझ रखा जाए तो उन नाशवान वस्तुओं में परिवर्तन होने पर या नाश होने पर सहारा टूट जाता है और उसके कंधे पर जो बोझ रखा था, वह सहसा नीचे गिर पड़ता है, फलस्वरूप बड़ी चोट लगती है और हम बहुत समय तक तिलमिलाते रहते हैं। धन-नाश पर, प्रियजन की मृत्यु पर, अपयश होने पर कितने ही व्यक्ति दहाड़े मार कर रोते-बिलखते और जीवन को नष्ट करते हुए देखे जाते हैं।  

बालू पर महल बनाकर उसे अजर-अमर रखने का स्वप्न देखने वालों की जो दुर्दशा होती है, वही इन हाहाकार करते हुए प्रेमियों की होती है। भौतिक पदार्थ नाशवान् हैं, इसलिए उनसे प्रेम जोड़ना एक बड़ा अधूरा और लॅगड़ा-लूला सहारा है, जो कभी भी टूटकर गिर सकता है और गिरने पर प्रेमी को हृदयविदारक आघात पहुँचा सकता है। प्रेम का गुण तो आनंदमय है।

प्रेम का आध्यात्मिक स्वरूप यह है कि आत्मा का आधार परमात्मा को बनाया जाए। चैतन्य और अजर-अमर आत्मा का अवलंबन सच्चिदानंद परमात्मा ही हो सकता है। इसलिए जड़ पदार्थों से, भौतिक वस्तुओं से, चित्त हटाकर परमात्मा में लगाया जाए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति-जुलाई 1945

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 23 Aug 2022

🔹 समय एक ईश्वरीय चक्र है, जिसे परिश्रम के बैंक में भुनाने से नकद संपत्ति मिल जाती है। कर्म परायणता सौभाग्य की कुञ्जी है। जिसके हाथ में यह कुञ्जी होगी, वह अपने आपको सौभाग्यशाली बना लेगा। परमात्मा के भण्डार में सब कुछ भरा हुआ है, पर व्यक्ति के प्रयत्न के आधार पर ही उस भण्डार में से दिया जाता है। अपनी पात्रता से अधिक कोई एक रत्ती भर भी अधिक नहीं पा सकता।

◼️ विवाहोन्माद हिन्दू समाज के रोगग्रस्त शरीर में  सबसे भयंकर गलित कुष्ट है। धन और चरित्र की बर्बादी का यह सबसे विषम और सबसे भयावह छिद्र है। उसे न रोका गया तो शिक्षा, व्यवसाय, आहार, विज्ञान आदि के आधार पर जो कुछ भी प्राप्त किया जा रहा है वह सब इसी छिद्र से होकर धूलि में टपक जाएगा। हर कोई जानता है कि अपने समाज में विवाह बाहर से धूमधाम और भीतर से शोक-संताप से भरे हुए होते हैं। हमें आगे बढ़कर इस अविवेक भरी असुरता से जूझना पड़ेगा। यह कदम अनिवार्य है।

🔸 हमारा मन जब ईमानदारी को छोड़कर बेईमानी की तरफ चलने लगे तो समझना चाहिए कि अब हमारा सर्वनाश निकट आने वाला है। बेईमानी से पैसा मिल सकता है, पर देखो उससे सावधान रहना। उस पैसे को छूना मत, क्योंकि वह आग की तरह चमकीला तो है, पर छूने पर जलाये बिना रह नहीं सकता।

🔹 यदि हम वास्तव में कोई उत्तम कार्य करना चाहते हैं, तो समय का रोना न रोते रहें।  हमारी परिस्थिति, दुनिया की उलझनें तो यों ही चलती रहेंगी और हम सोते-सोते ही पूर्ण आयु समाप्त कर डालेंगे। समय अति अल्प है और हमें कार्य अत्यधिक करना है। वायुवेग से हमारा अमूल्य जीवन कम हो रहा है। समय का अपव्यय जितना रोक सकें, रोकें अवश्य।

◼️ सत्य की कसौटी यह नहीं है कि उसे बहुत, बूढ़े और धनी लोग ही कहते हों। सत्य हमेशा उचित, आवश्यक, न्याययुक्त तथ्यों से एवं ईमानदारी से भरा हुआ होता है। थोड़ी संख्या में, कम उम्र के, गरीब आदमी भी यदि ऐसी बात को कहते हैं तो वह मान्य है। अकेली आपकी आत्मा ही यदि सत्य की पुकार करती है तो वह पुकार लाखों मूर्खों की बक-बक से अधिक मूल्यवान् है।

🔸 अनीति से धन कमाना बुरा है, संपूर्ण शक्तियों को धन उपार्जन में ही लगाये रहना बुरा है, धन का अतिशय मोह, अहंकार, लालच बुरा है, धन के नशे में उचित-अनुचित का विचार छोड़ देना बुरा है, परन्तु यह किसी भी प्रकार बुरा नहीं है कि जीवन निर्वाह की उचित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ईमानदारी और परिश्रमशीलता के साथ धन उपार्जन किया जाय।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (भाग 3)

🔴 भगवान् आए धरती पर

इसी उद्देश्य से भगवान् पृथ्वी पर आने की तैयारियाँ करने लगे। लक्ष्मी जी ने कहा ‘अरे! आप तो बेकार परेशान हो रहे हैं। मनुष्य तो आपके काम का रहा नहीं। मनुष्य बड़ा चालाक हो गया है और मनुष्य बहुत छोटा हो गया है, बड़ा संकीर्ण हो गया है। उसके पास जाने से आपको कोई फायदा नहीं।’ भगवान् ने कहा- ‘‘नहीं, मनुष्य तो हमारा बच्चा है। हम तो जायेंगे और मनुष्य के पास रहेंगे और उसको रास्ता बतायेंगे और कर्तव्य बताएँगे।’’ भगवान् जी बैकुण्ठलोक से रवाना हो गये और पृथ्वी पर आये। पृथ्वी पर निवास करने लगे। लोगों से कहा- ‘‘मनुष्यो! हमने तुमको बनाया है और एक काम के लिए बनाया है। उस काम के लिए हम आपको शिक्षा देंगे और आपके दुःखों को दूर करेंगे। शान्ति के लिए आगे बढ़ाएँगे।’’ भगवान् ने मनुष्यों से यह बात कही। मनुष्य आये और भगवान् के पास घूमने लगे, चक्कर काटने लगे। भगवान् उनको ज्ञान की बातें बताने लगे, शिक्षा की बात बताने लगे। आत्मकल्याण की बात बताने लगे। परोपकार की बात बताने लगे। सेवा की बात बताने लगे। लेकिन मनुष्यों ने उसको सुनने से इंकार कर दिया।

🔵 मनोकामनाओं की लिस्ट

मनुष्यों ने कहा- ‘‘भगवान् जी! इन बातों की हमको जरूरत नहीं है।’’ तो फिर किस बात की जरूरत है? उन्होंने कहा कि महाराज जी! आप तो बतायें कि हमको खाँसी आ जाती है। हमको बुखार आ जाता है। आप हमारा बुखार अच्छा कर दीजिए। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारे ऊपर मुकदमा चल रहा है और आप मुकदमा ठीक करा दीजिए। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारा ब्याह नहीं हुआ है और हमारी इतनी उमर हो गयी और हमको अच्छी से अच्छी लड़की नहीं मिलती। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारी कन्या बाईस साल की हो गयी है। हम उसके लिए लड़का ढूँढ़ते हैं, मिलता नहीं। लोग ज्यादा से ज्यादा दहेज माँगते हैं। किसी ने कहा कि महाराज जी! हमारा ये काम करा दीजिये, वो काम करा दीजिये। भगवान् ने कहा- ‘‘लोगो! यह तुम्हारा काम है। हमारा काम नहीं है’’ लोगों ने कहा कि महाराज जी! यही आपके काम हैं और आप ही यह काम किया कीजिए।

🔴 भगवान् को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि हम ज्ञान देने के लिए आये थे, मनुष्य जीवन का उद्देश्य बताने के लिए आये थे और शान्ति देने के लिए आये थे और आगे बढ़ाने के लिए आये थे। और ये कमबख्त ऐसे बेवकूफ हैं कि अपने दैनिक जीवन की जो छोटी- मोटी सी आवश्यकताएँ हैं, समस्याएँ हैं, जिनको कि आदमी अपनी अकल को सही रख करके आसानी से पूरी कर सकता है, समस्याएँ हल कर सकता है, उसको हमसे माँगता है। ये आदमी बड़े खराब हैं। भगवान् नाराज हो गये और उन्होंने अपना बिस्तर उठाया, अपना सामान उठाया, अटैची उठायी और चलने लगे।

🔵 पहाड़ पर प्रभु। वहाँ भी पहुँचा मानव

भगवान् जी को गुस्सा आया, तो उन्होंने विचार किया कि ऐसी जगह चलना चाहिए जहाँ कोई पहुँच न सके। सो वे पहाड़ के ऊपर चले गये। वे कैलाश पर्वत पर रहने लगे। लोगों ने कहा कि भगवान् जी को तलाश करना चाहिए और वहाँ चलना चाहिये और अपनी दिक्कतें बतानी चाहिए और वहीं से आशीर्वाद लाना चाहिए। भगवान् जी कैलाश पर्वत पर मानसरोवर के पास बैठे हुए थे। बस, लोगों ने रास्ता ढूँढ़ा। कौन सा रास्ता है? नैनीताल के पास से जाता है, अल्मोड़ा के पास से जाता है। तिब्बत तक का रास्ता ढूँढ़ते हुए पहाड़ों पर होते हुए कैलाश पर्वत तक वे जा पहुँचे। भगवान् ने कहा कि धक्के खाकर के मनुष्य मेरे पास आ गया, चलो अच्छा हुआ।

भगवान् ने कहा- ‘‘बच्चों! तुम्हारे पास सारी शक्तियाँ हैं और सारी सुविधाएँ है, जो मैंने तुम्हारे भीतर दबाकर रख दी हैं। तुमको उन्हें अपने भीतर तलाश करना चाहिए और तुमको अपना जीवन अच्छा बनाना चाहिए। जैसे ही तुम अपना जीवन अच्छा बनाओगे, सारी ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ, सारे सुख और सारी सुविधाएँ अनायास ही आती हुई चली आयेंगी।’’ लोगों ने कहा कि महाराज जी! यह तो बड़े झगड़े का काम है और बहुत झंझट का काम है। हम अपने आपको कैसे सिद्ध करेंगे और कैसे मन को नियंत्रित करेंगे? और कैसे इन्द्रियों का निग्रह करेंगे? सेवा के लिए हम मन कहाँ से लायेंगे और ऐसे कैसे करेंगे? यह हमसे नहीं हो सकता और हम नहीं करेंगे। भगवान् ने कहा- ‘फिर क्या करोगे?’ हम तो महाराज जी! बस आपका आशीर्वाद माँगेंगे और अपना फायदा करायेंगे आपसे।

🔴 क्षुद्र और क्षुद्रतम हम

भगवान् जी को फिर गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि हम इसीलिए तो भाग करके यहाँ आये थे। हमने तुमको सारी विद्याएँ दे दीं, मजबूत कलाइयाँ दे दीं, अक्ल दे दी, सब काम कर दिया और इस लायक बना दिया कि अपने इस शरीर की जरूरतों को स्वयं पूरा कर लिया करो। और तुम हो कि शरीर की जरूरतों को भी पूरा कराने के लिए हमारे पास चले आते हो। यह बड़ी खराब बात है। हम तो तुम्हारी आत्मा को बढ़ायेंगे। लोगों ने कहा कि आत्मा को बढ़ाने की जरूरत नहीं है। हम तो आपसे अपने शरीर की चीजों को माँगेंगे। भगवान् जी को फिर नाराजगी हुई और वे फिर वहाँ से भाग खड़े हुए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (भाग 6)

 
👉 पहाड़ पर प्रभु। वहाँ भी पहुँचा मानव


🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/guru3/shudrahumshurdtamhum.2

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...