👉 पात्रता की अनिवार्यता
🔴 मित्रो! जो विवेकवान् लोग अपने रास्ते पर चले हैं, वे संसार के इतिहास में उज्ज्वल तारे की तरह टिमटिमाते रहे हैं और टिमटिमाते रहेंगे। यह परम्पराएँ पहले भी चलीं थीं और आगे भी चलती रहेंगी। मैंने आपको मन की, मस्तिष्क की, सूक्ष्म शरीर की उपासना के साथ साधना करने की विधि पहले भी बताई थी और विवेकशीलता को उसका एक अंग बताया था। एक दूसरा अंग है, पात्रता का विकास, व्यक्तित्व का विकास। इसके अभाव में सारी साधना, उपासना निष्फल चली जाती है।
🔵 एक बड़े सम्भ्रान्त व्यक्ति ने सुन रखा था कि संसार में सबसे बड़ा लाभदायक काम भगवान् का प्यार प्राप्त करना है। भगवान् सारी दुनिया का स्वामी है, मालिक है। सारी संपदाएँ और सारी सुविधाएँ उसके एक इशारे पर चलती रहती हैं। मनुष्य को भी जिन सुविधाओं की आवश्यकता है, जिन लाभों की जरूरत है, जिन वस्तुओं की जरूरत है, वह भगवान् के एक कृपांश के ऊपर, भगवान् के एक इशारे के ऊपर, इशारे की एक किरण के ऊपर टिके हुए हैं। भगवान् अगर हमसे नाराज हो जाये, तो हमारा अच्छा भला शरीर देखते ही देखते बरबाद हो जाये। गठिया आदि लग जाये, लकवा आदि हो जाये। हमारा सारा खाना- पीना भी बट्टे खाते में चला जाये। हमारी पढ़ाई- लिखाई सब बेकार चली जाये। सोलह वर्ष तक पढ़ाई की। एम.ए. की पढ़ाई की और डिवीजन खराब हो जाये, थर्ड डिवीजन पास हो जाये और नौकरी के लिए जगह न मिले। चपरासी के लिए मारा- मारा फिरना पड़े, तब? भगवान् की एक कृपा का कण यदि हमारे विरुद्ध हो जाये, तो हमारा सब कुछ चौपट हो जायेगा।
👉 कैसे मिले भगवान् का प्यार
🔵 उस व्यक्ति को मालूम था कि भगवान् का प्यार पाना और भगवान् का अनुग्रह प्राप्त करना मनुष्य के लिए जीवन का सबसे बड़ा लाभ है। उस लाभ को प्राप्त करने के लिए अपने समय के सबसे बड़े उदार संत और भगवान् के सबसे बड़े भक्त सुकरात के पास वह व्यक्ति गया और कहने लगा कि भगवन्! मुझे ऐसा उपाय बताइये, जिससे मैं भगवान् की कृपा प्राप्त कर सकूँ और भगवान् का साक्षात्कार कर सकूँ। भगवान् तक पहुँच सकूँ। सुकरात चुप हो गये। उन्होंने कहा कि फिर कभी देखा जायेगा। कई दिनों बाद वह व्यक्ति फिर आया। उसने कहा- ‘‘भगवन्! आपने भगवान् को देखा है और भगवान् का प्यार पाया है। क्या आप मुझे भी प्राप्त करा सकेंगे?’’ क्या भगवान् का अनुग्रह मेरे ऊपर न होगा? सुकरात ने कहा- ‘अच्छा तुम कल आना और मेरी एक सेवा करना, फिर मैं तुम्हें उसका मार्गदर्शन करूँगा।’ दूसरे दिन वह व्यक्ति सुकरात के पास पहुँचा। सुकरात ने मिट्टी का कच्चा वाला एक घड़ा पहले से ही मँगाकर रखा था। वह पकाया नहीं गया था, वरन् मिट्टी का बना हुआ कच्चा था। सुकरात ने कहा- ‘ बच्चे जाओ मेरे लिए एक घड़ा पानी लाओ और मैं उससे स्नान कर लूँ, पानी पी लूँ, पीछे मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूँगा।’
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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