जिला बारां राजस्थान के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ फूलसिंह यादव के जीवन में घटी एक ऐसी घटना जिसने डॉ फूलसिंह यादव का नजरिया बदल दिया। बात उन दिनों की है जब अखिल विश्व गायत्री परिवार के जनक, संस्थापक, आराध्य वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी सूक्ष्मीकरण साधना हेतु एकांतवास में चले गए। पूज्य गुरुदेव के एकांतवास में चले जाने के उपरांत गायत्री परिवार की समस्त जिम्मेदारियां स्नेह सलिला वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा जी पर आ गयी। माता जी ने पहले भी पूज्यवर के हिमालय प्रवास एवं अन्य समय की अनुपस्थिति में गायत्री परिवार को संचालित संगठित एवं विस्तारित किया था।
1984 से माता जी के अनेक रूप दिखाई पड़ने लगे. वात्सल्यमयी माँ का रूप, ससक्त संगठनकर्ता का रूप, प्रकाण्ड विद्वान का रूप, प्रखर वक्ता, भविष्यद्रष्टा, अनेकों रूपों में माता जी के दर्शन लोगों को होने लगे। साधारणतः तो माता जी को परिजन यही मानते रहे कि माता जी गुरुदेव की पत्नी हैं, गुरुमाता हैं, माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद माता जी को है, माता जी कभी किसी भी आगंतुक को बिना भोजन प्रसाद के जाने नहीं देतीं हैं आदि आदि। पूज्य गुरुदेव के एकांतवास में जाने के उपरांत जगत जननी माँ भगवती ने समस्त संगठन या यूँ कहें की समस्त चराचर जगत का सूत्र सञ्चालन अपने हाथों में ले लिया। उस समय वंदनीया माता जी अनायास ही अपने बच्चों पर कृपा कर अपने जगदम्बा अवतारी स्वरुप का आभास करा देती थीं।
ऐसी ही एक घटना डॉ फूलसिंह यादव के साथ घटी। डॉ फूलसिंह यादव चिकित्सा विभाग में कार्यरत थे, उनका प्रमोशन किन्हीं कारणों से रुका हुआ था। डॉ यादव जी का गुरुदेव के पास मार्गदर्शन, आशीर्वाद के लिए आना-जाना लगातार लगा रहता था। डॉ यादव ने अपने रुके हुए प्रमोशन को पाने के लिए गुरुदेव से प्रार्थना करने का सोचा और हरिद्वार की ओर प्रस्थान कर गए। डॉ यादव शांतिकुंज पहुंचे, दर्शन प्रणाम के क्रम में वंदनीया माता जी के पास पहुँच माता जी के चरणों में जैसे ही शीश झुकाया माता जी ने पुकार लगायी। कब आया फूलसिंह बेटा! तू ठीक तो है? तेरा सफ़र कैसा रहा कोई कठिनाई तो नहीं आई रास्ते में। फिर डॉ यादव की पत्नी और बच्चों का नाम लेकर माता जी ने उन सभी का समाचार पूछा। डॉ यादव अचंभित हो माता जी की ओर देखने लगे, सोचने लगे माता जी से तो कभी मैं इस प्रकार मिला नहीं, माता जी कैसे जानती हैं ये सब। दर असल डॉ फूलसिंह यादव जब भी शांतिकुंज पहुँचते गुरुदेव से ही आशीर्वाद परामर्श पाते थे। माता जी के पास तो भोजन प्रसाद और लड्डू ही पाते थे। इस दफ़ा माता जी को इस रूप में देखा, पहली ही मुलाकात में माता जी ने उनके बारे में, उनके परिवार के बारे सबकुछ नाम सहित पूछा। डॉ यादव सोचने लगे माता जी को मेरा परिचय किसने दिया? तभी माता जी की आवाज उनके कानों में टकराई जिससे उनकी विचार श्रृंखला टूटी। माता जी ने कहा बेटा माँ से उसके बच्चों की पहचान थोड़ी ही करानी पड़ती है, माँ अपने सभी बच्चों के विषय में सब कुछ जानती है। तू चिंता न कर तेरे प्रमोशन का ध्यान है मुझे, तेरा प्रमोशन हो जायेगा। तेरा प्रमोशन मैं कराऊँगी, तू इसके विषय में सोचना छोड़ दे।
डॉ फूलसिंह यादव का मुंह खुला का खुला रह गया। यह क्या, वंदनीया माता जी को किसने बताया कि मैं प्रमोशन के लिए आशीर्वाद मांगने आया हूँ। इसकी चर्चा तो मैंने किसी से करा ही नहीं। डॉ यादव के आँखों से आंसू बहने लगे, माँ को प्रणाम किया अंतस में उठ रहे भावों में उलझे मन के साथ सीढ़ियों से उतरते चले गए। ह्रदय में अनेकों भावों के उठते ज्वार भाटे की उलझन में कहीं खो गए। सोचने लगे, पूज्य गुरुदेव से तो अपने लिए भौतिक उपलब्धियां मांगना पड़ता है, माँ ने बिना मांगे ही दे दिया। पूज्य गुरुदेव के सामने अपनी आवश्यकतायें बताने पर गुरुदेव कृपा करते हैं, माँ ने पुत्र के ह्रदय की बात स्वयं ही जान लिया। मैंने पहले माता जी को क्यूँ नहीं पहचाना। माता जी सबकुछ जानती हैं। माता जी कोई योगमाया जानती हैं? कोई तपस्विनी हैं? डॉ फूलसिंह यादव के अंतस ने कहा नहीं, स्नेह सलिला परम वंदनीया माता जी जगदम्बा की अवतार हैं। मेरी माता जी जगदम्बा हैं। मेरी माता जी सब जानती हैं। माँ जगदम्बा अवतारी माता जी को समस्त रोम कूपों से बारम्बार प्रणाम बारम्बार नमन।