🌹 समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
🔴 दूरदर्शिता, विवेकशीलता, उस अनुभवी किसान की गतिविधियों जैसी हैं, जिनके अनुसार खेत जोतने, बीज बोने खाद- पानी देने, रखवाली करने में आरंभिक हानि उठाने और कष्ट सहने को शिरोधार्य किया जाता है। दूरदर्शिता उसे बताती है कि इसका प्रतिफल उसे समयानुसार मिलने ही वाला है। एक बीज के दाने के बदले सौ दाने उगने ही वाले हैं और समय पर उस प्रयास के प्रतिफल कोठे भरे धन धान्य के रूप में मिलने ही वाले हैं। संयम और सत्कार्य ऐसे ही बुद्धिमत्ता है। पुण्य परमार्थ में भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाली संभावनाएँ सन्निहित है।
🔵 संयम का प्रतिफल वैभव और पौरुष के रूप में दृष्टिगत होने वाली है। दूरबीन के सहारे दूर तक की वस्तुओं को देखा जा सकता है। और उस जानकारी के आधार पर अधिक बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लिया जा सकता है। अध्यात्म की भाषा में इसी को तृतीय नेत्र खुलना भी कहते हैं, जिसके आधार पर विपत्तियों से बचना और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं का सृजन संभव हो सकता है।
🔴 सुसंस्कारिता का दूसरा चिह्न है- ईमानदारी कथनी और करनी को एक- सा रखना ईमानदारी है। आदान- प्रदान में प्रामाणिकता को इसी सिद्धांत के सहारे अक्षुण्ण रखा जाता है। विश्वसनीयता इसी आधार पर बनती है। सहयोग और सद्भाव अर्जित करने के लिए ईमानदारी ही प्रमुख आधार है। इसे अपने व्यवसाय में अपनाकर कितनों ने छोटी स्थिति से उठकर बड़े बनने में सफलता पाई है। बड़े उत्तरदायित्वों को उपलब्ध करने और उसका निर्वाह करने में ईमानदार ही सफल होते हैं।
🔵 इस सद्गुण को सुसंस्कारिता का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष माना गया है। उसे अपनाने वाले ईमानदारी और परिश्रम की कमाई से ही अपना काम चला लेते हैं। उनकी गरीबी भी ऐसी शानदार होती है, जिस पर अमीरी के भंडार को निछावर किया जा सके।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.43
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.7
🔴 दूरदर्शिता, विवेकशीलता, उस अनुभवी किसान की गतिविधियों जैसी हैं, जिनके अनुसार खेत जोतने, बीज बोने खाद- पानी देने, रखवाली करने में आरंभिक हानि उठाने और कष्ट सहने को शिरोधार्य किया जाता है। दूरदर्शिता उसे बताती है कि इसका प्रतिफल उसे समयानुसार मिलने ही वाला है। एक बीज के दाने के बदले सौ दाने उगने ही वाले हैं और समय पर उस प्रयास के प्रतिफल कोठे भरे धन धान्य के रूप में मिलने ही वाले हैं। संयम और सत्कार्य ऐसे ही बुद्धिमत्ता है। पुण्य परमार्थ में भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाली संभावनाएँ सन्निहित है।
🔵 संयम का प्रतिफल वैभव और पौरुष के रूप में दृष्टिगत होने वाली है। दूरबीन के सहारे दूर तक की वस्तुओं को देखा जा सकता है। और उस जानकारी के आधार पर अधिक बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लिया जा सकता है। अध्यात्म की भाषा में इसी को तृतीय नेत्र खुलना भी कहते हैं, जिसके आधार पर विपत्तियों से बचना और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं का सृजन संभव हो सकता है।
🔴 सुसंस्कारिता का दूसरा चिह्न है- ईमानदारी कथनी और करनी को एक- सा रखना ईमानदारी है। आदान- प्रदान में प्रामाणिकता को इसी सिद्धांत के सहारे अक्षुण्ण रखा जाता है। विश्वसनीयता इसी आधार पर बनती है। सहयोग और सद्भाव अर्जित करने के लिए ईमानदारी ही प्रमुख आधार है। इसे अपने व्यवसाय में अपनाकर कितनों ने छोटी स्थिति से उठकर बड़े बनने में सफलता पाई है। बड़े उत्तरदायित्वों को उपलब्ध करने और उसका निर्वाह करने में ईमानदार ही सफल होते हैं।
🔵 इस सद्गुण को सुसंस्कारिता का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष माना गया है। उसे अपनाने वाले ईमानदारी और परिश्रम की कमाई से ही अपना काम चला लेते हैं। उनकी गरीबी भी ऐसी शानदार होती है, जिस पर अमीरी के भंडार को निछावर किया जा सके।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.43
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.7