बुधवार, 21 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 21 June 2023

🔶 असंतोष से असंतोष का जन्म होता है। यदि आज हम किसी के लिए असंतोष के कारण बनते हैं, तो यह न समझना चाहिए कि उसे सताकर हम स्वयं सुख-शान्ति से रह सकेंगे। पहली बात तो यह है कि मनुष्य की प्रवृत्ति प्रायः प्रतिशोधगामिनी होती है। उसकी प्रेरणा रहती है कि जिसने उसके साथ दुःखद व्यवहार किया है उसके साथ भी वैसा ही दुःखद व्यवहार करके बदला लिया जाये। इस प्रकार विद्वेष की कष्ट एवं हानिमूलक परम्परा लग जाती है जिससे सूत्रपाती तथा प्रतिशोधी दोनों ही समान रूप से अशांत तथा संतप्त रहते हैं।

🔷 यदि हम सुंदर बनना और सुंदरता को स्थिर रखना चाहते हैं तो हमें प्रसाधन अथवा शृंगार सामग्री के स्थान पर आंतरिक दशा को सुधारने का प्रयत्न करना होगा। यदि हमारा स्वभाव क्रोधी है, हम ईर्ष्या-द्वेष से जलते-भुनते रहते हैं, लोभ, स्वार्थ अथवा पराया धन प्राप्ति की विषैली भावना को पालते रहते हैं, तो दुनिया भर के प्रसाधनों का प्रयोग करते रहने पर भी हमारा व्यक्तित्व मोहक अथवा मनभावन नहीं बन सकता।

🔶 केवल राम-नाम लेने से आत्मिक उद्देश्य पूरे हो सकते हैं, इस भ्रान्त धारणा को मन में से हटा देना चाहिए। इतना सस्ता आत्म कल्याण का मार्ग नहीं हो सकता। पूजा उचित और आवश्यक है, पर उसकी सफलता एवं सार्थकता तभी संभव है, जब जीवन क्रम भी उत्कृष्ट स्तर का हो, अन्यथा तोता रटन्त किसी का कुछ हित साधन नहीं कर सकती।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 स्वाध्याय में प्रमाद मत करो। (अन्तिम भाग)

तप का एक मात्र कार्य आत्मा पर पड़े हुए मल को-या आवरण को दूर करने मात्र का ही है। व्यास ने स्वाध्याय को परमात्मा का साक्षात्कार करने वाला इसी लिए बतलाया है क्योंकि जो आवरण के अन्धकार में चला गया है उसे प्रकट करने के लिए अन्धकार को दूर करने की आवश्यकता है।

जीवन का उद्देश्य कुछ भी हो, उस उद्देश्य तक जाने के लिए भी स्वाध्याय की आवश्यकता होती है। स्वाध्याय जीवन के उद्देश्य तक पहुँचने की खामियों को भी दूर कर सकती है। जो स्वाध्याय नहीं करते, वे खामियों को दूर नहीं कर सकते इसलिए चाहे ब्राह्मण हो-चाहे शूद्र प्रत्येक व्यक्ति अपने लक्ष्य से गिर सकता है।

स्वाध्याय को श्रम की सीमा कहा गया है। श्रम में ही पृथ्वी से लेकर अन्तरिक्ष तथा स्वर्ग तक के समस्त कर्म प्रतिष्ठित हैं। बिना स्वाध्याय के साँगोपाँग रूप से कर्म नहीं हो सकते और साँगोपाँग हुए बिना सिद्धि नहीं मिल सकती। इसलिए सम्पूर्ण सिद्धियों का एक मात्र मूल मंत्र है स्वाध्याय, आत्मनिरीक्षण।

आत्म निरीक्षण में अपनी शक्ति का निरीक्षण और अपने कर्म का निरीक्षण किया जाता है। शक्ति अनुसार कर्म करने में ही सफलता मिलती है। कौन सी शक्ति किस कर्म की सफलता में सहायक हो सकती है यह बिना ज्ञान हुए भी सफलता नहीं मिलती। ज्ञान का साधन भी स्वाध्याय ही है। इसी कारण ज्ञान हो और प्रमाद से वह विस्मृत हो गया हो तब भी स्वाध्याय की आवश्यकता है। अग्रसर होकर जिस कार्य को किया जाता है, सम्पूर्ण शक्ति जिस कार्य में लगी रहती है, उसकी सिद्धि में किंचित भी सन्देह नहीं करना चाहिए इसीलिए इहलौकिक और पारलौकिक दोनों स्थानों की सिद्धि के लिए, आत्मकल्याण के लिए निरन्तर स्वाध्याय न करने से शरीर में मन तथा बुद्धि में एवं प्राणों में भी जड़ता स्थान बना लेती है, मनुष्य प्रमादी हो जाता है। प्रमाद मानव का सबसे बड़ा शत्रु है यह उसे बीच में ही रोक लेता है सिद्धि तक पहुँचने ही नहीं देता। इसीलिए आर्य ऋषियों ने कहा है-

स्वाध्यायान्माप्रमदः -स्वाध्याय में प्रमाद न करो और अहरहः स्वाध्यायमध्येतव्यः -रात दिन स्वाध्याय में लगे रहो।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1948 दिसम्बर पृष्ठ 4


All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...