रविवार, 23 दिसंबर 2018

👉 आज का सद्चिंतन 24 Dec 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 24 Dec 2018


👉 कैसे मज़बूत बनें (भाग 3)

3 जीवन के प्रति अपने उत्साह को पुनर्जीवित करें:

भावनात्मक रूप से मजबूत व्यक्ति हर और हरेक दिन को एक तोहफा, एक सौगात समझते हैं। वो अपने समय का उपयोग इतने सकारात्मक ढ़ंग से करते हैं कि उनके इस तोहफे का समुचित और भरपूर उपयोग होता है। याद करें की बचपन में आप कितनी छोटी-छोटी बातों से रोमांचित हो जाते थे- पतझड़ के मौसम में पत्तों से खेलना, किसी जानवर की काल्पनिक तस्वीर बनाना, किसी चीज को ज्यादा खा लेना- इन छोटी-छोटी बातों में कितना आनंद आता था! अपने अंदर के उस बच्चे को ढूँढिये। अपने अंदर के उस बच्चे को जीवित रखिये। आपकी मानसिक और भावनात्मक मजबूती इस पर निर्भर करती है।

4 अपने ऊपर भरोसा रखिये:

आपने इतना कुछ किया है जीवन में: आप एक बार फिर ऐसा कर सकते हैं। आज की आज सोचेंगे, कल की कल- इस सोच के साथ आप मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति से पार पा सकते हैं। ऐसी सोच को विकसित करना आसान काम नहीं है; ऐसा कहना बहुत आसान है, करना उतना ही मुश्किल। मगर, जब आप अभ्यास करेंगे तो यह संभव हो जायेगा। जब कभी आपको ऐसा लगे कि बस अब सब कुछ खत्म होने वाला है, तो आँखें बंद करिये और एक गहरी सांस लीजिये। आप अपने प्रयास में अवश्य ही सफल होंगे, बस नीचे लिखी इन बातों का ध्यान रखिये:

नकारात्मक सोच वालों की बातों को अनसुनी करिये। कुछ लोग आदतन आप पर, आपकी क्षमताओं पर संदेह करते रहेंगे। आपको बस उनकी अनदेखी करनी है, उनको अनसुना करना है और उनको गलत सिद्ध करना है। नाउम्मीद लोग आपको भी नाउम्मीद और निराश न बना दें- इसका ख्याल रखना है। वास्तविकता तो यह है कि दुनिया आपसे कह रही है कि आओ, मुझे बदलो! फिर किस बात का इंतजार कर रहे हैं आप?

अपनी सफलताओं को याद करिये। यह आपके आत्मविश्वास को जगायेगा, आपके सफ़र में उत्साह लाएगा। चाहे वह आपके पढाई-लिखाई की सफलता हो, चाहे किसी मशहूर व्यक्ति से की गयी आपकी बातचीत या फिर आपके बच्चे के जन्म लेने की खुशी- इन सभी अच्छे पलों को अपने आप को मजबूत बनाने के अपने प्रयासों में मददगार बनाइये। सफल होने के लिए सकारात्मक होना जरूरी है और जैसी हमारी सोच होती है, दरअसल, हमारी जिंदगी वैसी ही होती है।

किसी भी हाल में प्रयास करना न छोड़ें। ऐसा कई बार होगा कि आपको अपने क्षमताओं पर संदेह होगा, क्योंकि कई बार ऐसा होगा कि आप प्रयास करेंगे परंतु आपको सफलता नहीं मिलेगी। इस बात का ध्यान रखिये की यह इस प्रक्रिया में होने वाली सामान्य सी बात है। सिर्फ इस वजह से कि आपको अपने प्रयासों में एकाध बार असफलता मिली, निराश मत होइए और प्रयास करना मत छोड़िये। दीर्घकालिक नजरिया रखिये और सोच को विशाल बनाये रखिये। फिर से प्रयास करिये। याद रखें, असफलता की सीढियाँ ही इंसान को सफलता के शिखर पर ले जाती हैं।

.... क्रमशः जारी

👉 "Honesty in Thoughts and Transactions

Innocent nature is essential for development of mental power. One well-known English proverb describes stupidity of clever people, reflecting two contradictory forms of a personality. Only he can understand his true self, who has uniformity and harmony in thoughts and actions. Truthfulness in these two aspects only can lead him to the highest standard of behavior.

A person, who never tries to hide his own faults, naturally clears away all flaws of his character. Results of old mistakes and sins also vanish once truth prevails in our attitude and mentality. Concealed sin corrupts our mind, but once disclosed and confessed, the sin can do no harm. Deliberating over one’s own behavior again and again refines the nature making one more generous and kind. Only such a person can acquire higher spiritual powers.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Atmagyaan aur Atmakalyaan (Self-realization and Self-benefit), Page 22

👉 विचार और व्यवहार में सत्यता

मानसिक शक्तियों के विकास के लिए भोले स्वभाव का होना ही श्रेयकर है। अंग्रेजी में कहावत है कि शैतान गधा होता है। यह कहावत चतुर लोगों की मूर्खता को प्रदर्शित करती है। जो मनुष्य बाहर भीतर एक रूप रहता है, वास्तव में वही अपने स्वरूप को पहिचानता है। यदि मनुष्य अपने विचारों और व्यवहार में सत्यता ले आवे तो उसका आचार अपने आप ही उच्चकोटि का हो जावे।

जो व्यक्ति अपने किसी प्रकार के दोष को छिपाने की चेष्टा नहीं करता, उसके चरित्र में कोई दोष भी नहीं रहता। पुराने पापों के परिणाम भी सचाई की मनोवृत्ति के उदय होने पर नष्ट हो जाते हैं। ढका हुआ पाप लगता है, खुला पाप मनुष्य को नहीं लगता। जो स्वयं के प्रति जितना अधिक सोचता है, वह उतना ही अधिक अपने आप को पुण्यात्मा बनाता है। ऐसा ही व्यक्ति दूसरी आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
📖 आत्मज्ञान और आत्मकल्याण, पृष्ठ 22

👉 आत्मचिंतन के क्षण 24 Dec 2018

◾ दोष दिखाने वाले को अपना शुभ चिंतक मानकर उसका आभार मानने की अपेक्षा मनुष्य जब उलटे उस पर कु्रद्ध होता है, शत्रुता मानता और अपना अपमान अनुभव करता है, तो यह कहना चाहिए कि उसने सच्ची प्रगति की ओर चलने का अभी एक पैर उठाना भी नहीं सीखा।

◾ ऐसे विश्वास और सिद्धान्तों को अपनाइये जिनसे लोक कल्याण की दशा में प्रगति होती हो। उन विश्वासों और सिद्धान्तों सको हृदय के भीतरी कोने में गहराई तक उतार लीजिए। इतनी दृढ़ता जमा लीजिए कि भ्रष्टाचार और प्रलोभन सामने उपस्थित होने पर भी आप उन पर दृढ़ रहें, परीक्षा देने एवं त्याग करने का अवसर आवे तब भी विचलित न हों। वे विश्वास श्रद्धास्प्द होने चाहिए, प्राणों से अधिक प्यारे होने चाहिए।

◾ अपने को असमर्थ, अशक्त एवं असहाय मत समझिये। ऐसे विचारों का परित्याग कर दीजिए कि साधनों के अभाव में हम किस प्रकार आगे बढ़ सकेंगे। स्मरण रखिए, शक्ति का स्रोत साधन में नहीं, भावना में है। यदि आपकी आकाँक्षाएँ आगे बढ़ने के लिए व्यग्र हो रही हैं, उन्नति करने की तीव्र इच्छाएँ बलवती हो रही हैं, तो विश्वास रखिये साधन आपको प्राप्त होकर रहेंगे।

◾ ईश्वर को इस बात की इच्छा नहीं कि आप तिलक लगाते हैं या नहीं, पूजा-पत्री करते हैं या नहीं, भोग-आरती करते हैं या नहीं, क्योंकि उस सर्वशक्तिमान प्रभु का कुछ भी काम इन सबके बिना रुका हुआ नहीं है। वह इन बातों से प्रसन्न नहीं होता, उसकी प्रसन्नता तब प्रस्फुटित होती है जब अपने पुत्रों को पराक्रमी, पुरुषार्थी, उन्नतिशील, विजयी, महान् वैभव युक्त, विद्वान, गुणवान्, देखता है और अपनी रचना की सार्थकता अनुभव करता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण (भाग 7)


छोटी बुरी आदतों से लड़ाई आरम्भ करनी चाहिए और उनसे सरलतापूर्वक सफलता प्राप्त करते हुए क्रमशः अधिक कड़ी- अधिक पुरानी और अधिक प्रिय बुरी आदतों से लड़ाई आरम्भ करनी चाहिए। छोटी सफलताएँ प्राप्त करते चलने से साहस एवं आत्म-विश्वास बढ़ता है और इस आधार पर अवांछनीयताओं के उन्मूलन एवं सत्प्रवृत्तियों के संस्थापन में सफलता मिलती चली जाती है। यह प्रयास देर तक जारी रहना चाहिए। थोड़ी-सी सफलता से निरास नहीं हो जाना चाहिए। लाखों योनियों के कुसंस्कार विचार मात्र से समाप्त नहीं हो जाते। वे मार खाकर अन्तःकरण के किसी कोने में जा छिपते हैं और अवसर पाते ही छापामारों की तरह घातक आक्रमण करते हैं। इनसे सतत् सजग रहने की आवश्यकता है। आजन्म यह सतर्कता अनवरत रूप से बरती जानी चाहिए कि कहीं बेखबर पाकर दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृत्ति की घातें फिर न पनपने लगें।

आत्म-निर्माण का तीसरा चरण इस प्रयोजन के लिए है कि श्रेष्ठ सज्जनों में गुण, कर्म, स्वभाव की जो विशेषताएँ होनी चाहिए उनकी पूर्ति के लिए योजनाबद्ध प्रयत्न किया जाय। दुर्गुणों की प्रतिष्ठापना भी तो होनी चाहिए। कटीली झाड़ियाँ उखाड़ कर साफ कर दी गई यह तो आधा ही प्रयोग पूरा हुआ। आधी बात तब बनेगी जब उस भूमि पर सुरम्य उद्यान लगाया जाय और उसे पाल-पोस कर बड़ा किया जाय। बीमारी दूर हो गई यह आधा काम है। दुर्बल स्वास्थ्य को बलिष्ठता की स्थिति तक ले जाने के लिए जिस परिष्कृत आहार-बिहार को जुटाया जाना आवश्यक है। उसकी ओर भी तो ध्यान देने और प्रयत्न करने में लगना चाहिए।

आलस्य दूर करने की प्रतिक्रिया श्रम-शीलता में समुचित रुचि एवं तत्परता के रूप में दृष्टिगोचर होना चाहिए। प्रमाद से पिण्ड छूटा हो- लापरवाही और गैर जिम्मेदारी हटा दी तो उसके स्थान पर जागरूकता, तन्मयता, नियमितता, व्यवस्था जैसे मनोयोग का परिचय मिलना चाहिए। मधुरता शिष्टता, सज्जनता, दूरदर्शिता, विवेकशीलता, ईमानदारी संयमशीलता, मितव्ययिता, सादगी, सहृदयता, सेवा भावना जैसी सत्प्रवृत्तियों में ही मानवी गरिमा परिलक्षित होती है। उन्हें अपनाने स्वभाव का अंग बनाने के लिये सतत् प्रयत्नशील रहा जाना चाहिये। आमतौर से लोग धन उपार्जन को प्रमुखता देते हैं और उसी के लिये अपना श्रम, संयम, मनोयोग लगाये रहते हैं। उत्कर्ष के इच्छुकों को सम्मति से भी अधिक महत्त्व सद्गुणों की विभूतियों को देना चाहिए परिष्कृत व्यक्तित्व ही वह कल्प वृक्ष है जिस तक जा पहुँचने वाला भौतिक और आत्मिक दोनों ही क्षेत्रों की सफलता प्राप्त करता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 11

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/January/v1.11

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...