🔶 वसिष्ठ और विश्वामित्र प्राचीन युग के सुप्रसिद्ध ऋषि थे। ये दोनों ही परम ज्ञानी और विद्या बुद्धि के भंडार थे, पर इनमें ऐसी शत्रुता का भाव उत्पन्न हो गया था कि एक दूसरे को देखते ही अपशब्द कहने लगते थे। एक बार वशिष्ठ इन्द्र के यज्ञ में जाने के लिए जैसे ही आश्रम से बाहर निकले कि उनका विश्वामित्र से सामना हो गया। दोनों एक दूसरे पर अपशब्दों की बौछार करने लगे और अन्त में वशिष्ठ ने विश्वामित्र ने भी आप देकर उनको ‘आडी’ नाम का पक्षी बना दिया। वे दोनों ही एक सरोवर के तट पर घोंसला बना कर रहने लगे और पूर्व बैर को स्मरण करके नित्य प्रति युद्ध करने लगे। उनके जो बच्चे और सम्बन्धी थे वे भी लड़ाई में भाग लेने लगे।
🔷 यह युद्ध बहुत वर्षों तक चलता रहा जिसके कारण वह रमणीक सरोवर और आस पास का दर्शनीय प्रदेश घृणित रूप में परिवर्तित हो गया। इस दुर्दशा को देखकर पितामह ब्रह्मा वहाँ पधारे और उन्होंने वशिष्ठ तथा विश्वामित्र दोनों को शाप मुक्त करके बहुत डाँटा- फटकारा कि तुम ज्ञानी और तपस्वी होकर यह कैसा मूर्खों का सा कार्य कर रहे हो जिससे असंख्यों व्यक्ति दुःख पा रहे हैं और निन्दा कर रहे हैं। उन्होंने दोनों को खूब समझा दिया कि इस प्रकार की द्वेष बुद्धि रखना बड़ी अधर्मता की बात है। ज्ञानी तो दूसरे की दो अनुचित बातें भी सहन कर लेता है और क्षमा वृत्ति से काम लेता है। ब्रह्मा जी का आदेश को मानकर वे दोनों प्रेम पूर्वक मिले और भविष्य में कभी ऐसे निर्बुद्धिता का कार्य न करने की प्रतिज्ञा की।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
🔷 यह युद्ध बहुत वर्षों तक चलता रहा जिसके कारण वह रमणीक सरोवर और आस पास का दर्शनीय प्रदेश घृणित रूप में परिवर्तित हो गया। इस दुर्दशा को देखकर पितामह ब्रह्मा वहाँ पधारे और उन्होंने वशिष्ठ तथा विश्वामित्र दोनों को शाप मुक्त करके बहुत डाँटा- फटकारा कि तुम ज्ञानी और तपस्वी होकर यह कैसा मूर्खों का सा कार्य कर रहे हो जिससे असंख्यों व्यक्ति दुःख पा रहे हैं और निन्दा कर रहे हैं। उन्होंने दोनों को खूब समझा दिया कि इस प्रकार की द्वेष बुद्धि रखना बड़ी अधर्मता की बात है। ज्ञानी तो दूसरे की दो अनुचित बातें भी सहन कर लेता है और क्षमा वृत्ति से काम लेता है। ब्रह्मा जी का आदेश को मानकर वे दोनों प्रेम पूर्वक मिले और भविष्य में कभी ऐसे निर्बुद्धिता का कार्य न करने की प्रतिज्ञा की।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई