🔷 एक नगर मे नन्दु नाम का साधक रहता था साधना करता था पर बाधायें रुकने का नाम नही लेती थी अक्सर वो किसी सन्त के दरबार मे जाया करता था एक बार वो बहुत हताशा और निराशा मे डुबा हुआ आश्रम के बाहर बैठा था तो अन्दर से महात्मा जी बाहर आये!
🔶 महात्मा - बेटा नन्दु लो ये दो टुकडे इनको नगर मे सुनार की दुकान पे ले जाना और कहना की इनका एक कड़ा बना दो और उस कड़े को मैं तुम्हे पहना दूँगा ताकि तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायें!
🔷 नन्दु गया वापस आया और कहा हॆ देव दुकानदार ने एक टुकडे को तो फेंक दिया और दुसरे टुकडे को ले लिया!
🔶 महात्मा - पर उन्होंने ऐसा क्यों किया तुमने पुछा नही?
🔷 नन्दु - पुछा देव उन्होंने कहा की इसमे एक सोने का टुकड़ा है और दुसरा लोहे का उन्होने लोहे के टुकडे को फेंक दिया!
🔶 महात्मा - फिर क्या किया वत्स?
🔷 नन्दु - फिर उन्होंने सोने के टुकडे को छिनी और हथोडी से छोटे छोटे टुकडे किये फिर उसे आग मे रखकर पिगलाया फिर हथोडे से उसकी खुब पिटाई की बारबार आग मे तपाये और पिटाई करे बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद ये कड़ा बनकर तैयार हुआ!
🔶 महात्मा - यही तो मैं तुमसे कह रहा हुं वत्स की परीक्षा सोने को ही देनी पड़ती है और आग मे तपना पड़ता है और बहुत लम्बी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वो गहना बनकर तैयार होता है!
🔷 हॆ वत्स इस कड़े को अपने हाथ मे पहन लो ताकि तुम्हे हमेशा याद रहे की मुझे इस जीवन को ऐसा बनाना है की मेरे सद्गुरु मुझे अपने हाथों मे ले ले! हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की जब साधना के मार्ग पर बाधा पे बाधा आये तो समझ लेना की तुम्हारी साधना मे दम है और ऐसे समय मे घबराना मत सद्गुरु का आशीर्वाद लेकर और तेजी से आगे बढ़ना!
🔶 एक बात हमेशा ध्यान रखना की सोने को आग मे तपना पड़ता है गहना बनने के लिये असंख्य चोटें सहनी पड़ती है! हॆ मेरे सत्य के अतिप्रिय साधक चोटों से घबराकर हार कभी मत मानना लड़ते रहना और निरन्तर प्रकाश की ओर बढ़ते रहना! और सहन तो करना पड़ेगा वत्स यदि यहाँ नही तो फिर वहाँ सहन करना पड़ेगा और अच्छा होगा की यही सहन कर ले क्योंकि यहाँ सहन करेंगे तो आगे तरेगे और यदि यहाँ सहन करने से भागेंगे तो आगे की सारी यात्रा मे इधर उधर मारे मारे फिरेंगे!
🔷 हॆ वत्स ये हमेशा याद रखना की भागना जीवन नही है जागना जीवन है और जब जग जाओ तो फिर चलना और सहनशील बनना और सहना क्योंकि जो सहेगा वह चलेगा और लगातार वही चलेगा जो सहेगा ये कभी न भुलना की जो सहेगा वही बनेगा!
🔶 महात्मा - बेटा नन्दु लो ये दो टुकडे इनको नगर मे सुनार की दुकान पे ले जाना और कहना की इनका एक कड़ा बना दो और उस कड़े को मैं तुम्हे पहना दूँगा ताकि तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायें!
🔷 नन्दु गया वापस आया और कहा हॆ देव दुकानदार ने एक टुकडे को तो फेंक दिया और दुसरे टुकडे को ले लिया!
🔶 महात्मा - पर उन्होंने ऐसा क्यों किया तुमने पुछा नही?
🔷 नन्दु - पुछा देव उन्होंने कहा की इसमे एक सोने का टुकड़ा है और दुसरा लोहे का उन्होने लोहे के टुकडे को फेंक दिया!
🔶 महात्मा - फिर क्या किया वत्स?
🔷 नन्दु - फिर उन्होंने सोने के टुकडे को छिनी और हथोडी से छोटे छोटे टुकडे किये फिर उसे आग मे रखकर पिगलाया फिर हथोडे से उसकी खुब पिटाई की बारबार आग मे तपाये और पिटाई करे बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद ये कड़ा बनकर तैयार हुआ!
🔶 महात्मा - यही तो मैं तुमसे कह रहा हुं वत्स की परीक्षा सोने को ही देनी पड़ती है और आग मे तपना पड़ता है और बहुत लम्बी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वो गहना बनकर तैयार होता है!
🔷 हॆ वत्स इस कड़े को अपने हाथ मे पहन लो ताकि तुम्हे हमेशा याद रहे की मुझे इस जीवन को ऐसा बनाना है की मेरे सद्गुरु मुझे अपने हाथों मे ले ले! हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की जब साधना के मार्ग पर बाधा पे बाधा आये तो समझ लेना की तुम्हारी साधना मे दम है और ऐसे समय मे घबराना मत सद्गुरु का आशीर्वाद लेकर और तेजी से आगे बढ़ना!
🔶 एक बात हमेशा ध्यान रखना की सोने को आग मे तपना पड़ता है गहना बनने के लिये असंख्य चोटें सहनी पड़ती है! हॆ मेरे सत्य के अतिप्रिय साधक चोटों से घबराकर हार कभी मत मानना लड़ते रहना और निरन्तर प्रकाश की ओर बढ़ते रहना! और सहन तो करना पड़ेगा वत्स यदि यहाँ नही तो फिर वहाँ सहन करना पड़ेगा और अच्छा होगा की यही सहन कर ले क्योंकि यहाँ सहन करेंगे तो आगे तरेगे और यदि यहाँ सहन करने से भागेंगे तो आगे की सारी यात्रा मे इधर उधर मारे मारे फिरेंगे!
🔷 हॆ वत्स ये हमेशा याद रखना की भागना जीवन नही है जागना जीवन है और जब जग जाओ तो फिर चलना और सहनशील बनना और सहना क्योंकि जो सहेगा वह चलेगा और लगातार वही चलेगा जो सहेगा ये कभी न भुलना की जो सहेगा वही बनेगा!