आँखें बन्द हों तो पाँव अपने आप ही राह भटक जाते हैं। बन्द आँखें किए चलने वाले किसी गड्ढे में जा गिरें तो कोई अचरज नहीं है। भूलना-भटकना, गुमराह हो जाना, पग-पग पर ठोकरों से चोटिल होते रहना ही ऐसों की नियति है। इनसे यही कहना है कि आँखें बन्द रखने के अतिरिक्त न कोई पाप है और न कोई अपराध। जिसने आँखें खोल ली, उसके जीवन में फिर अँधेरा नहीं रहता।
भिक्षु आनन्दभद्र के जीवन का एक मार्मिक प्रसंग है। वह पूर्वी देशों में धर्म प्रचार के लिए गए हुए थे। कुछ अज्ञानियों ने उन्हें पकड़ लिया और भारी यातनाएँ दी। परन्तु इन यातनाओं के बीच भी उनकी शान्ति अविचल थी। यातनाओं के बीच भी वह परम प्रसन्न थे। गालियों के उत्तर में उनकी वाणी मिठास से सनी थी। किसी ने उनसे पूछा; आप में इतनी अलौकिक शक्ति कैसे आयी? उन्होंने एक हल्की मुस्कराहट के साथ कहा, बस, मैंने अपनी आँखों का उपयोग करना सीख लिया है।
प्रश्नकर्त्ता ने अचरज से प्रतिप्रश्न किया, लेकिन आँखों का शान्ति और साधुता से क्या सम्बन्ध? सम्भवतः वह भिक्षु आनन्दभद्र के सहनशीलता के मर्म से अपरिचित था। उसे समझाने के लिए महाभिक्षु ने कहा, मैं जब ऊपर आकाश की ओर देखता हूँ, तो पाता हूँ कि इस धरती का जीवन बहुत ही क्षण भंगुर और सपने की तरह है और सपने में किया हुआ किसी का व्यवहार मुझे कैसे छू सकता है? जब दृष्टि अपने भीतर निहारती है तो उसे पाता हूँ जो कि अविनश्वर है- उसका तो कोई कुछ भी बिगाड़ने में समर्थ नहीं है।
जब मैं अपने आस-पास देखता हूँ, तो पाता हूँ ऐसे भी भावनाशील जन हैं जिनके हृदयों में मेरे लिए असीम करुणा है। यह अनुभूति मुझे कृतज्ञता से भर देती है। अपने पीछे देखने पर अहसास होता है कि कितने ही प्राणी ऐसे हैं, जो मुझसे भी कहीं ज्यादा पीड़ा भोग रहे हैं। उन्हें देखकर मेरा हृदय करुणा और प्रेम से भर जाता है। इस भाँति मैं शान्त हूँ, आनन्दित हूँ और प्रेम से भर गया हूँ। क्योंकि मैंने अपनी आँखों का उपयोग करना सीख लिया है। सचमुच ही आँखें खोलने से- जीवन दर्शन मिलता है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १२९
भिक्षु आनन्दभद्र के जीवन का एक मार्मिक प्रसंग है। वह पूर्वी देशों में धर्म प्रचार के लिए गए हुए थे। कुछ अज्ञानियों ने उन्हें पकड़ लिया और भारी यातनाएँ दी। परन्तु इन यातनाओं के बीच भी उनकी शान्ति अविचल थी। यातनाओं के बीच भी वह परम प्रसन्न थे। गालियों के उत्तर में उनकी वाणी मिठास से सनी थी। किसी ने उनसे पूछा; आप में इतनी अलौकिक शक्ति कैसे आयी? उन्होंने एक हल्की मुस्कराहट के साथ कहा, बस, मैंने अपनी आँखों का उपयोग करना सीख लिया है।
प्रश्नकर्त्ता ने अचरज से प्रतिप्रश्न किया, लेकिन आँखों का शान्ति और साधुता से क्या सम्बन्ध? सम्भवतः वह भिक्षु आनन्दभद्र के सहनशीलता के मर्म से अपरिचित था। उसे समझाने के लिए महाभिक्षु ने कहा, मैं जब ऊपर आकाश की ओर देखता हूँ, तो पाता हूँ कि इस धरती का जीवन बहुत ही क्षण भंगुर और सपने की तरह है और सपने में किया हुआ किसी का व्यवहार मुझे कैसे छू सकता है? जब दृष्टि अपने भीतर निहारती है तो उसे पाता हूँ जो कि अविनश्वर है- उसका तो कोई कुछ भी बिगाड़ने में समर्थ नहीं है।
जब मैं अपने आस-पास देखता हूँ, तो पाता हूँ ऐसे भी भावनाशील जन हैं जिनके हृदयों में मेरे लिए असीम करुणा है। यह अनुभूति मुझे कृतज्ञता से भर देती है। अपने पीछे देखने पर अहसास होता है कि कितने ही प्राणी ऐसे हैं, जो मुझसे भी कहीं ज्यादा पीड़ा भोग रहे हैं। उन्हें देखकर मेरा हृदय करुणा और प्रेम से भर जाता है। इस भाँति मैं शान्त हूँ, आनन्दित हूँ और प्रेम से भर गया हूँ। क्योंकि मैंने अपनी आँखों का उपयोग करना सीख लिया है। सचमुच ही आँखें खोलने से- जीवन दर्शन मिलता है।
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १२९