मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 20 Feb 2024

🔸  सेवक कभी अपने मन में ऐसा भाव नहीं लाता कि वह सेवक है। वह अपने स्वामी अथवा सेव्य का आभार मानता है कि उन्होंने अपार कृपा करके उसे सेवा का अवसर प्रदान कि या अर्थात् वह सेवा नहीं कर रहा, अपितु उसके स्वमी उससे सेवा ग्रहण कर रहे हैं। वह उसे जब जिस सेवा के योग्य समझते हैं अथवा जब जैसी इच्छा होती है, वह सेवा ग्रहण करते हैं।

🔹   पाठको! जिस प्रकार आपको प्रशंसा प्रिय है, वैसे ही दूसरों को भी। आप दूसरों से सहयोग और सहानुभूति चाहते हैं, वैसे ही आपके मित्र- बन्धु पड़ौसी भी आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। दूसरों की इच्छा के लिए यदि अपनी अभिरुचि का दमन कर देते हैं ,तो प्रत्याशी पर आपकी इस सद्भावना का असर जरूर पड़ेगा। आत्मीयता, उदारता, साहस् नैतिकता, श्रमशीलता जैसे सदाचारों में से कोई न कोई सम्पत्ति हर किसी के पास मिलेगी। इन्हें ढूँढ़ने का प्रयास करें।

🔸   सहृदयता मानवीय गरिमा का मेरुदण्ड है। जिसका सम्बल पाकर ही व्यक्ति एवं समाज ऊँचे उठते, मानवी गुणों से भरे- पूरे बनते हैं। इसका अभाव निष्ठुरता, कठोरता, असहिष्णुता जैसी प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट होता है। मानवी गरिमा के टूटते हुए इस मेरुदण्ड को हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए।
 
🔹   कर्म तथा शक्ति जहाँ एक- दूसरे पर निर्भर है, वहाँ परस्पर पूरक भी है ।। शक्ति के बिना कर्म नहीं और कर्म रहित शक्ति का ह्रास हो जाता है। अतएव शक्तिशाली बने रहने के लिये मनुष्य को निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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