रविवार, 27 मार्च 2022

👉 आध्यात्मिक शिक्षण क्या है? (भाग 5)

कौन मना करेगा? कोई नहीं करेगा। खिला हुआ फूल बीबी के हाथ में रख दिया जाय, तो बीबी मना करेगी क्या? नाक से लगाकर सूँघेगी छाती से लगा लेगी और कहेगी कि मेरे प्रियतम ने गुलाब का फूल लाकर के दिया है। मित्रो! फूल को हम क्या करते हैं? उस सुगंध वाले फूल को हम पेड़ से तोड़कर भगवान् के चरणों पर समर्पित कर देते हैं और कहते हैं कि हे परम पिता परमेश्वर! हे शक्ति और भक्ति के स्रोत! हम फूल जैसा अपना जीवन तेरे चरणारविन्दों पर समर्पित करते हैं। यह हमारा फूल, यह हमारा अंतःकरण सब कुछ तेरे ऊपर न्यौछावर है।

हे भगवान्! हम तेरी आरती उतारते हैं और तेरे पर बलि बलि जाते हैं। हे भगवान्! तू धन्य है। सूरज तेरी आरती उतारता है, चाँद तेरी आरती उतारता है। हम भी तेरी आरती उतारेंगे। तेरी महत्ता को समझेंगे, तेरी गरिमा को समझेंगे। तेरे गुणों को समझेंगे और सारे विश्व में तेरे सबसे बड़े अनुदान और शक्ति प्रवाह को समझेंगे। हे भगवान्! हम तेरी आरती उतारते हैं, तेरे स्वरूप को देखते हैं। तेरा आगा देखते हैं, तेरा पीछा देखते हैं, नीचे देखते हैं। सारे मुल्क में देखते हैं। हम शंख बजाते हैं। शंख एक कीड़े की हड्डी का टुकड़ा है और वह पुजारी के मुखमंडल से जा लगा और ध्वनि करने लगा। दूर दूर तक शंख की आवाज पहुँच गयी। हमारा जीवन भी शंख की तरीके से जब पोला हो जाता है।

इसमें से मिट्टी और कीड़ा जो भरा होता है, उसे निकाल देते हैं।जब तक इसे नहीं निकालेंगे, वह नहीं बजेगा मिट्टी को निकाल दिया, कीड़े को निकाल दिया। पोला वाला शंख पुजारी के मुख पर रखा गया और वह बजने लगा। पुजारी ने छोटी आवाज से बजाया, छोटी आवाज बजी। बड़ी आवाज से बजाया, बड़ी आवाज बजी। हमने भगवान् का शंख बजाया और कहा कि मैंने तेरी गीता गाई। भगवान्! तूने सपने में जो संकेत दिये थे, वह सारे के सारे तुझे समर्पित कर रहे हैं। शंख बजाने का क्रियाकलाप मानव प्राणियों के कानों में, मस्तिष्कों में भगवान् की सूक्ष्म इच्छाएँ आकांक्षाएँ फैलाने का प्रशिक्षण करता है।

क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/lectures_gurudev/44.1

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 27 March 2022

‘खाली मस्तिष्क शैतान की दुकान’ की कहावत सोलह आने सच है। जो फालतू बैठा रहेगा, उसके मस्तिष्क में अनावश्यक और अवांछनीय बातें घूमती रहेंगी और कुछ न कुछ अनुचित, अनुपयुक्त करने तथा उद्विग्न, संत्रस्त रहने की विपत्तियाँ मोल लेगा। लेकिन जो व्यस्त है, उसे बेकार की बातें सोचने की फुरसत ही नहीं, गहरी नींद भी उसी को आती है, कुसंग और दुर्व्यसनों से भी वही बचा रहता है। जो मेहनत से कमाता है, उसे फिजूलखर्ची भी नहीं सूझती। इस प्रकार परिश्रमी व्यक्ति अनेक दोष-दुर्गुणों से बच जाता है।

विश्वास  रखिए दुःख का अपना कोई मूल अस्तित्व नहीं होता। इसका अस्तित्व मनुष्य का मानसिक स्तर ही होता है। यदि मानसिक स्तर योग्य और अनुकूल है तो दुःख की  अनुभूति या तो होगी ही नहीं और यदि होगी तो बहुत क्षीण। तथापि, यदि आपको दुःख की अनुभूति सत्य प्रतीत होती है, तब भी उसका अमोघ उपाय यह है कि उसके विरुद्ध अपनी आशा, साहस और उत्साह के प्रदीप जलाये रखे जायें। अंधकार के  तिरोधान और प्रकाश के अस्तित्व से बहुत से अकारण भय हो जाता है।

दूसरों के प्रति बैर भाव रखने से मानस क्षेत्र में उत्तेजना और असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। हम जिन व्यक्तियों को शत्रु मानते हुए उनसे घृणा करते हैं, उन्हें याद कर अपने ऊपर हावी कर लेते हैं। गुप्त मन में उन वस्तुओं, व्यक्तियों या शत्रुओं के प्रति भय बना रहता है। मानसिक जगत् में निरन्तर बैर और शत्रुता का भाव बना रहने से हमारे स्वास्थ्य पर दूषित प्रभाव पड़ता है। शत्रु भाव हमारी भूख बंद कर देता है-नींद हराम कर देता है। फल यह होता है कि हमारा स्वास्थ्य और प्रसन्नता सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। हम जीवित रहकर भी दुर्भावनाओं के कारण नरक की यातनाएँ भोगते हैं।

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...