🌞 पहला अध्याय
🔴 अब तक उसे एक बहिन, दो भाई, माँ बाप, दो घोड़े, दस नौकरों के पालन की चिन्ता थी, अब उसे हजारों गुने प्राणियों के पालने की चिन्ता होती है। यही अहंभाव का प्रसार है। दूसरे शब्दों में इसी को अहंभाव का नाश कहते हैं। बात एक ही है फर्क सिर्फ कहने-सुनने का है। रबड़ के गुब्बारे जिसमें हवा भरकर बच्चे खेलते हैं, तुमने देखे होंगे। इनमें से एक लो और उसमें हवा भरो। जितनी हवा भरती जायेगी, उतना ही वह बढ़ता जाएगा और फटने के अधिक निकट पहुँचता जाएगा।
🔴 कुछ ही देर में उसमें इतनी हवा भर जायगी कि वह गुब्बारे को फाड़कर अपने विराट् रूप आकाश में भरे हुए महान वायुतत्त्व में मिल जाय। यही आत्म-दर्शन प्रणाली है। यह पुस्तक तुम्हें बतावेगी कि आत्म-स्वरूप को जानो, उसका विस्तार करो। बस इतने से ही सूत्र में वह सब महान विज्ञान भरा हुआ है, जिसके आधार पर विभिन्न अध्यात्म पथ बनाये गये हैं। वे सब फल इस सूत्र में बीज रूप में मौजूद हैं, जो किसी भी सच्ची साधना से कहीं भी और किसी भी प्रकार हो सकते हैं।
🔵 आत्मा के वास्तविक स्वरूप की एक बार झाँकी कर लेने वाला साधक फिर पीछे नहीं लौट सकता। प्यास के मारे जिसके प्राण सूख रहे हैं ऐसा व्यक्ति सुरसरि का शीतल कूल छोड़कर क्या फिर उसी रेगिस्तान में लौटने की इच्छा करेगा? जहाँ प्यास के मारे क्षण-क्षण पर मृत्यु समान असहनीय वेदना अब तक अनुभव करता रहा है। भगवान कहते हैं। ''यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्घाम् परमं मम।'' ''जहाँ जाकर फिर लौटना नहीं होता, ऐसा मेरा धाम है।'' सचमुच वहाँ पहुँचने पर पीछे को पाँव पड़ते ही नहीं। योग भ्रष्ट हो जाने का वहाँ प्रश्न ही नहीं उठता। घर पहुँच जाने पर भी क्या कोई घर का रास्ता भूल सकता है?
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔴 अब तक उसे एक बहिन, दो भाई, माँ बाप, दो घोड़े, दस नौकरों के पालन की चिन्ता थी, अब उसे हजारों गुने प्राणियों के पालने की चिन्ता होती है। यही अहंभाव का प्रसार है। दूसरे शब्दों में इसी को अहंभाव का नाश कहते हैं। बात एक ही है फर्क सिर्फ कहने-सुनने का है। रबड़ के गुब्बारे जिसमें हवा भरकर बच्चे खेलते हैं, तुमने देखे होंगे। इनमें से एक लो और उसमें हवा भरो। जितनी हवा भरती जायेगी, उतना ही वह बढ़ता जाएगा और फटने के अधिक निकट पहुँचता जाएगा।
🔴 कुछ ही देर में उसमें इतनी हवा भर जायगी कि वह गुब्बारे को फाड़कर अपने विराट् रूप आकाश में भरे हुए महान वायुतत्त्व में मिल जाय। यही आत्म-दर्शन प्रणाली है। यह पुस्तक तुम्हें बतावेगी कि आत्म-स्वरूप को जानो, उसका विस्तार करो। बस इतने से ही सूत्र में वह सब महान विज्ञान भरा हुआ है, जिसके आधार पर विभिन्न अध्यात्म पथ बनाये गये हैं। वे सब फल इस सूत्र में बीज रूप में मौजूद हैं, जो किसी भी सच्ची साधना से कहीं भी और किसी भी प्रकार हो सकते हैं।
🔵 आत्मा के वास्तविक स्वरूप की एक बार झाँकी कर लेने वाला साधक फिर पीछे नहीं लौट सकता। प्यास के मारे जिसके प्राण सूख रहे हैं ऐसा व्यक्ति सुरसरि का शीतल कूल छोड़कर क्या फिर उसी रेगिस्तान में लौटने की इच्छा करेगा? जहाँ प्यास के मारे क्षण-क्षण पर मृत्यु समान असहनीय वेदना अब तक अनुभव करता रहा है। भगवान कहते हैं। ''यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्घाम् परमं मम।'' ''जहाँ जाकर फिर लौटना नहीं होता, ऐसा मेरा धाम है।'' सचमुच वहाँ पहुँचने पर पीछे को पाँव पड़ते ही नहीं। योग भ्रष्ट हो जाने का वहाँ प्रश्न ही नहीं उठता। घर पहुँच जाने पर भी क्या कोई घर का रास्ता भूल सकता है?
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य