🔶 आध्यात्मिक लाभ के अतिरिक्त संसार की कोई भी उपलब्धि मनुष्य को क्षुद्रता से विराट की ओर और तुच्छता से उच्चता की ओर नहीं ले जा सकती। यह विशेषता केवल आध्यात्मिकता में ही है कि मनुष्य क्षुद्र से विराट और तुच्छ से उच्च हो जाता।
🔷 आध्यात्मिक जीवन आत्मिक सुख का निश्चित हेतु है। अध्यात्मवाद वह दिव्य आधार है जिस पर मनुष्य की आन्तरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार की उन्नतियाँ एवं समृद्धियाँ अवलम्बित हैं। साँसारिक उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिये भी जिन परिश्रम, पुरुषार्थ, सहयोग, सहकारिता आदि गुणों की आवश्यकता होती है वे सब आध्यात्मिक जीवन के ही अंश है। मनुष्य का आन्तरिक विकास तो अध्यात्म के बिना हो ही नहीं सकता।
🔶 अध्यात्मवाद जीवन का सच्चा ज्ञान है। इसको जाने बिना संसार के सारे ज्ञान अपूर्ण हैं और इसको जान लेने के बाद कुछ भी जानने को शेष नहीं रह जाता। यह वह तत्वज्ञान एवं महा-विज्ञान है जिसकी जानकारी होते ही मानव-जीवन अमरता पूर्ण आनन्द से ओत-प्रोत हो जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान से पाये हुए आनन्द की तुलना संसार के किसी आनन्द से नहीं की जा सकती क्योंकि इस आत्मानन्द के लिए किसी आधार की आवश्यकता नहीं होती। वस्तु-जन्य सुख नश्वर होता है, परिवर्तनशील तथा अन्त में दुःख देने वाला होता है। वस्तु-जन्य मिथ्या आनंद वस्तु के साथ ही समाप्त हो जाता है। जब कि आध्यात्मिकता से उत्पन्न आत्मिक सुख जीवन भर साथ तो रहता ही है अन्त में भी मनुष्य के साथ जाया करता है। वह अक्षय और अविनश्वर होता है, एक बार प्राप्त हो जाने पर फिर कभी नष्ट नहीं होता। शरीर की अवधि तक तो रहता ही है, शरीर छूटने पर भी अविनाशी आत्मा के साथ संयुक्त रहा करता है।
🔷 ऐसे अविनाशी आनन्द की उपेक्षा करके जीवन को क्षणिक एवं मिथ्या सुखदायी उपलब्धियों में लगा देना और उनमें संतोष अथवा सार्थकता अनुभव करना अनमोल मानव जीवन की सबसे बड़ी हानि है। जब आनन्द ही मानव जीवन का वर्तमानकालिक लक्ष्य है तब शाश्वत आनन्द के लिये ही प्रयत्न क्यों न किया जाये? क्यों क्षणभंगुर सुख की छाया-वीथियों में ही भटकते रहा जाये?
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1967 जनवरी पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/January/v1.2
🔷 आध्यात्मिक जीवन आत्मिक सुख का निश्चित हेतु है। अध्यात्मवाद वह दिव्य आधार है जिस पर मनुष्य की आन्तरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार की उन्नतियाँ एवं समृद्धियाँ अवलम्बित हैं। साँसारिक उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिये भी जिन परिश्रम, पुरुषार्थ, सहयोग, सहकारिता आदि गुणों की आवश्यकता होती है वे सब आध्यात्मिक जीवन के ही अंश है। मनुष्य का आन्तरिक विकास तो अध्यात्म के बिना हो ही नहीं सकता।
🔶 अध्यात्मवाद जीवन का सच्चा ज्ञान है। इसको जाने बिना संसार के सारे ज्ञान अपूर्ण हैं और इसको जान लेने के बाद कुछ भी जानने को शेष नहीं रह जाता। यह वह तत्वज्ञान एवं महा-विज्ञान है जिसकी जानकारी होते ही मानव-जीवन अमरता पूर्ण आनन्द से ओत-प्रोत हो जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान से पाये हुए आनन्द की तुलना संसार के किसी आनन्द से नहीं की जा सकती क्योंकि इस आत्मानन्द के लिए किसी आधार की आवश्यकता नहीं होती। वस्तु-जन्य सुख नश्वर होता है, परिवर्तनशील तथा अन्त में दुःख देने वाला होता है। वस्तु-जन्य मिथ्या आनंद वस्तु के साथ ही समाप्त हो जाता है। जब कि आध्यात्मिकता से उत्पन्न आत्मिक सुख जीवन भर साथ तो रहता ही है अन्त में भी मनुष्य के साथ जाया करता है। वह अक्षय और अविनश्वर होता है, एक बार प्राप्त हो जाने पर फिर कभी नष्ट नहीं होता। शरीर की अवधि तक तो रहता ही है, शरीर छूटने पर भी अविनाशी आत्मा के साथ संयुक्त रहा करता है।
🔷 ऐसे अविनाशी आनन्द की उपेक्षा करके जीवन को क्षणिक एवं मिथ्या सुखदायी उपलब्धियों में लगा देना और उनमें संतोष अथवा सार्थकता अनुभव करना अनमोल मानव जीवन की सबसे बड़ी हानि है। जब आनन्द ही मानव जीवन का वर्तमानकालिक लक्ष्य है तब शाश्वत आनन्द के लिये ही प्रयत्न क्यों न किया जाये? क्यों क्षणभंगुर सुख की छाया-वीथियों में ही भटकते रहा जाये?
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1967 जनवरी पृष्ठ 2
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/January/v1.2