अहिंसा एक रहस्यमय शब्द है, जिसे कम ही लोग समझते हैं। अधिकतर लोग यही मानते हैं कि शरीर से किसी की पिटाई मत करो, किसी को घायल मत करो, किसी की जान मत लो, यह अहिंसा है। अहिंसा का यह अर्थ तो प्रसिद्ध है ही। परंतु यह अधूरा अर्थ है। यह तो शारीरिक अहिंसा हुई।
इसके अतिरिक्त, यदि किसी निर्दोष व्यक्ति पर आप कठोर भाषा बोलते हैं, उसकी खिल्ली उड़ाते हैं, उस पर व्यंग्य कसते हैं, उसको व्यर्थ में अपमानित करते हैं, उसे छोटा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, तो यह भी हिंसा है। यह वाणी के द्वारा की गई हिंसा है। इसी प्रकार से दूसरों के प्रति मन में बुरी भावना रखना, यह भी हिंसा है। यह मानसिक स्तर की हिंसा है। जैसे कि कोई व्यक्ति मन में ऐसा सोचे, कि हे भगवान! मेरे पड़ोसी की टांग टूट जाए। इस का मकान गिर जाए, इसके गोदाम में आग लग जाए, इसका बेटा दुर्घटना में मर जाए, यह व्यक्ति न्यायालय में मुकद्दमा हार जाए, इत्यादि। इस प्रकार का अनिष्ट चिंतन मानसिक हिंसा कहलाती है। तो यह तीन प्रकार की हिंसा हुई शारीरिक, वाचनिक और मानसिक।
इन तीनों प्रकार की हिंसा को न करना, किसी पर शरीर से अन्याय न करना, वाणी से भी निर्दोष को न डाँटना, मन में भी किसी का बुरा ना सोचना, यह पूर्ण अहिंसा कहलाती है। जो अहिंसा का पालन करता है, वह सदा प्रसन्न रहता है। उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। हां, यदि कोई आपके ऊपर आक्रमण करे, तो आप अपनी रक्षा अवश्य करें। यदि आप अपनी रक्षा नहीं करते और व्यर्थ में दूसरों से पिटते रहते हैं, तो यह अहिंसा नहीं है।
स्वामी विवेकानंद
इसके अतिरिक्त, यदि किसी निर्दोष व्यक्ति पर आप कठोर भाषा बोलते हैं, उसकी खिल्ली उड़ाते हैं, उस पर व्यंग्य कसते हैं, उसको व्यर्थ में अपमानित करते हैं, उसे छोटा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, तो यह भी हिंसा है। यह वाणी के द्वारा की गई हिंसा है। इसी प्रकार से दूसरों के प्रति मन में बुरी भावना रखना, यह भी हिंसा है। यह मानसिक स्तर की हिंसा है। जैसे कि कोई व्यक्ति मन में ऐसा सोचे, कि हे भगवान! मेरे पड़ोसी की टांग टूट जाए। इस का मकान गिर जाए, इसके गोदाम में आग लग जाए, इसका बेटा दुर्घटना में मर जाए, यह व्यक्ति न्यायालय में मुकद्दमा हार जाए, इत्यादि। इस प्रकार का अनिष्ट चिंतन मानसिक हिंसा कहलाती है। तो यह तीन प्रकार की हिंसा हुई शारीरिक, वाचनिक और मानसिक।
इन तीनों प्रकार की हिंसा को न करना, किसी पर शरीर से अन्याय न करना, वाणी से भी निर्दोष को न डाँटना, मन में भी किसी का बुरा ना सोचना, यह पूर्ण अहिंसा कहलाती है। जो अहिंसा का पालन करता है, वह सदा प्रसन्न रहता है। उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। हां, यदि कोई आपके ऊपर आक्रमण करे, तो आप अपनी रक्षा अवश्य करें। यदि आप अपनी रक्षा नहीं करते और व्यर्थ में दूसरों से पिटते रहते हैं, तो यह अहिंसा नहीं है।
स्वामी विवेकानंद
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
*शांतिकुंज हरिद्वार के ऑफिशल व्हाट्सएप चैनल *awgpofficial Channel* को Follow करे*
https://whatsapp.com/channel/ 0029VaBQpZm6hENhqlhg453J
https://whatsapp.com/channel/
8439014110 शांतिकुंज की गतिविधियों से जुड़ने के लिए 8439014110 पर अपना नाम लिख कर WhatsApp करें
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo
Official Telegram