रविवार, 18 जून 2017

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 116)

🌹  ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म

🔵 संस्कारवान क्षेत्र एवं तपस्वियों के सम्पर्क लाभ के अनेक विवरण हैं। स्वाति बूँद के पड़ने से सीप में मोती बनते हैं, बाँस में वंशलोचन एवं केले में कपूर, चंदन के निकटवर्ती झाड़-झंखाड़ भी उतने ही सुगंधित हो जाते हैं। पारस स्पर्श कर लोहा सोना बन जाता है। हमारे मार्गदर्शक सूक्ष्म शरीर से पृथ्वी के स्वर्ग इसी हिमालय क्षेत्र में शताब्दियों से रहते आए हैं, जिसके द्वार पर हम बैठे हैं। हमारी बैटरी चार्ज करने के लिए समय-समय पर वे बुलाते रहते हैं। जब भी उन्हें नया काम सौंपना हुआ है, तब नई शक्ति देने हमें वहीं बुलाया गया है और लौटने पर हमें नया शक्ति भण्डार भर कर वापस आने का अनुभव हुआ है।

🔴 हम प्रज्ञापुत्रों को, जाग्रत आत्माओं को युग परिवर्तन में रीछ, वानरों की, ग्वाल-बालों की भूमिका निभाने की क्षमता अर्जित करने के लिए शिक्षण पाने या साधना करने के निमित्त बहुधा शान्तिकुञ्ज बुलाते रहते हैं। इस क्षेत्र की अपनी विशेषता है। गंगा की गोद, हिमालय की छाया, प्राण चेतना से भरा-पूरा वातावरण एवं दिव्य संरक्षण यहाँ उपलब्ध है। इसमें थोड़े समय भी निवास करने वाले अपने में कायाकल्प जैसा परिवर्तन हुआ अनुभव करते हैं। उन्हें लगता है कि वस्तुतः किसी जाग्रत तीर्थ में निवास करके अभिनव चेतना उपलब्ध करके वे वापस लौट रहे हैं। यह एक प्रकार का आध्यात्मिक सैनीटोरियम है।

🔵 साठ वर्ष से जल रहा अखण्ड दीपक, नौ कुण्ड की यज्ञशाला में नित्य दो घण्टे यज्ञ, दोनों नवरात्रियों में २४-२४ लक्ष गायत्री महापुरश्चरण, साधना आरण्यक में नित्य गायत्री उपासकों द्वारा नियमित अनुष्ठान, इन सब बातों से ऐसा दिव्य वातावरण यहाँ विनिर्मित होता है जैसा मलयागिरि में चंदन वृक्षों की मनभावन सुगंध का। बिना साधना किए भी यहाँ वैसा ही आनंद आता है, मानों यह समय तप साधना में बीता। शान्तिकुञ्ज गायत्री तीर्थ की विशेषता यहाँ सतत दिव्य अनुभूति होने की है। यह संस्कारित सिद्ध पीठ है, क्योंकि यहाँ सूक्ष्म शरीरधारी वे सभी ऋषि क्रिया-कलापों के रूप में विद्यमान हैं, जिनका वर्णन हमने किया है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/brahman.4

प्रेरणादायक प्रसंग 19 June 2017




👉 आज का सद्चिंतन 19 June 2017


👉 उपयुक्त समय


🔴 अमावस्या का दिन था। एक व्यक्ति उसी दिन समुद्र-स्नान करने के लिए गया, किन्तु स्नान करने के बजाय वह किनारे बैठा रहा। किसी ने पूछा, “स्नान करने आये हो तो किनारे पर ही क्यों बैठे हो? स्नान कब करोगे?

🔵 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि “इसी समय समुद्र अशान्त है। उसमे ऊँची-ऊँची लहरे उठ रही है; जब लहरे बंद होगी और जब उपयुक्त समय आएगा तब मैं स्नान कर लूंगा। पूछने वाले को हँसी आ गयी । वह बोला, “भले आदमी ! समुद्र की लहरे क्या कभी रुकने वाली हैं ? ये तो आती रहेंगी । समुद्र-स्नान तो लहरो के थपेड़े सहकर ही करना पड़ता है। नहीं तो स्नान कभी नहीं हो सकता।”

🔴 यह हम सभी की बात है। हम सोचते है कि ‘सभी प्रकार की अनुकूलताये होगी, तभी अपनी संकल्पना के अनुरूप कोई सत्कर्म करेंगे , किन्तु सभी प्रकार की अनुकुलताये जीवन में किसी को कभी मिलती नहीं। संसार तो समुद्र के समान है।

🔵 जिसमे बाधा रूपी तरंगे तो हमेशा उठती ही रहेगी। एक परेशानी दूर होने पर दूसरी आएगी। जैसे वह व्यक्ति स्नान किए बिना ही रह गया, उसी प्रकार सभी प्रकार की अनुकूलता की राह देखने वाले व्यक्ति से कभी सत्कर्म नहीं हो सकता।

🔴 सत्कर्म या किसी और शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समय की राह मत देखो। प्रत्येक दिन और प्रत्येक क्षण सत्कर्म के लिए अनुकूल है। ‘कोई परेशानी नहीं रहेगी तब सत्कर्म करूँगा’ – ऐसा सोचना निरी मूर्खता है।

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्या:।
विघ्नै: पुन:पुनरपि प्रतिहन्यमाना:
प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ।।

🔵 विघ्न के भय से जो कार्य की शुरुआत ही नहीं करते वे निम्नकोटि के पुरुष है। कार्य का आरम्भ करने के बाद विघ्न आने पर जो रूक जाते है, वे मध्यम पुरुष है। परंतु कार्य के आरम्भ से ही, बार बार विघ्न आने पर भी जो अपना निश्चित किया कार्य नहीं छोड़ते, वही उत्तम पुरुष होते है।

👉 इस धरा का पवित्र श्रृंगार है नारी (भाग 1)

🔴 आज जिस नारी को हमने घर की वंदनीय, परदे की प्रतिमा और पैरों की जूती बनाकर रख छोड़ा है और जो मूक पशु की तरह सारा कष्ट, सारा क्लेश, विष घूँट की तरह पीकर स्नेह का अमृत ही देती है उस नारी के सही स्वरूप तथा महत्व पर निष्पक्ष होकर विचार किया जाये तो अपनी मानवता के नाते सहधर्मिणी होने के नाते, राष्ट्र व समाज की उन्नति के नाते उसे उसका उचित स्थान दिया ही जाना चाहिये। अधिक दिनों उसके अस्तित्व, व्यक्तित्व तथा अधिकारों का शोषण राष्ट्र का ऐसे गर्त में गिरा सकता है जिससे निकल सकना कठिन हो जाएगा। अतः कल्याण तथा बुद्धिमत्ता इसी में है कि समय रहते चेत उठा जाये और अपनी इस भूल को सुधार ही लिया जाय।

🔵 नारी का सबसे बड़ा महत्व उसके जननी पद में निहित हैं यदि जननी न होती तो कहाँ से इस सृष्टि का सम्पादन होता और कहाँ से समाज तथा राष्ट्रों की रचना होती! यदि माँ न हो तो वह कौन-सी शक्ति होती जो संसार में अनीति एवं अत्याचार मिटाने के लिये शूरवीरों को धरती पर उतारती। यदि माता न होती तो बड़े-बड़े वैज्ञानिक, प्रचण्ड पंडित, अप्रतिम साहित्यकार, दार्शनिक, मनीषी तथा महात्मा एवं महापुरुष किस की गोद में खेल-खेलकर धरती पर पदार्पण करते। नारी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की जननी ही नहीं वह जगज्जननी हैं उसका समुचित सम्मान न करना, अपराध है पाप तथा अमनुष्यता है।

🔴 नारी गर्भ धारण करती, उसे पालती, शिशु को जन्म देती और तब जब तक कि वह अपने पैरों नहीं चल पाता और अपने हाथों नहीं खा पता उसे छाती से लगाये अपना जीवन रस पिलाती रहती है। अपने से अधिक संतान की रक्षा एवं सुख-सुविधा में निरत रहती है। खुद गीले में सोती और शिशु को सूखे में सुलाती है। उसका मल-मूत्र साफ करती है। उसको साफ-सुथरा रखने में अपनी सुध-बुध भूले रहती है। इस सम्बन्ध में हर मनुष्य किसी न किसी नारी का ऋणी हैं। ऐसी दयामयी नारी का उपकार यदि तिरस्कार तथा उपेक्षा से चुकाया जाता है तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है।

🌹 अखण्ड ज्योति- अगस्त 1995 पृष्ठ 25
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1995/August/v1.25

👉 कायाकल्प का मर्म और दर्शन (भाग 3)

🔴 पारस उस चीज का नाम है, जिसको छू करके लोहा भी सोना बन जाता है। आप लोहा रहे हों, पहले से; आपके पास एक पारस है, जिसको आप छुएँ, तो देख सकते हैं किस तरीके से काया बदलती है? आप अभावग्रस्त दुनिया में भले ही रहे हों पहले से, आपको सारी जिंदगी यह कहते रहना पड़ा हो कि हमारे पास कमियाँ बहुत हैं, अभाव बहुत हैं, कठिनाइयाँ बहुत हैं; लेकिन यहाँ एक ऐसा कल्पवृक्ष विद्यमान है कि जिसका आप सच्चे अर्थों में सहारा लें, तो आपकी कमियाँ, अभावों और कठिनाइयों में से एक भी जिंदा रहने वाला नहीं हैं, उसका नाम कल्पवृक्ष है।

🔵 कल्पवृक्ष कोई पेड़ होता है कि नहीं, मैं नहीं जानता। न मैंने कल्पवृक्ष देखा है और न मैं आपको कल्पवृक्ष के सपने दिखाना चाहता हूँ; लेकिन अध्यात्म के बारे में मैं यकीनन कह सकता हूँ कि वह एक कल्पवृक्ष है। अध्यात्म कर्मकाण्डों को नहीं, दर्शन को कहते हैं, चिंतन को कहते हैं। जीवन में हेर-फेर कर सके, ऐसी प्रेरणा और ऐसे प्रकाश का नाम अध्यात्म है। ऐसा अध्यात्म अगर आपको मिल रहा हो तो यहाँ मिल जाए या मिलने की जो संभावनाएँ हैं, उससे आप लाभ उठा लें, तो आप यह कह सकेंगे कि हमको कल्पवृक्ष के नीचे बैठने का मौका मिल गया है। यहाँ का वातावरण कल्पवृक्ष भी है, यहाँ का वातावरण-पारस भी है और यहाँ का वातावरण अमृत भी है।

🔴 आपको रोज मरने की चिंता होती है न, मरने वाले प्राणी जिस तरीके से अपने हविश को पूरा करने के लिए, अपना पेट भरने के लिए लालायित रहते हैं, आपको वैसा कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। जीर्घजीवियों के तरीके से आप हमेशा जिंदा रहेंगे, आपकी मौत कभी नहीं होगी। जो कभी नहीं मरते, उनको कालजयी कहते हैं। आप भी कालजयियों में अपना नाम लिखा सकते हैं। कब? जब आप अमृत पिएँ, तब। शरीर को अमर बनाने वाला अमृत कभी रहेगा, तो दुनिया में प्रकृति के कायदे खत्म हो जाएँगे। कौन दिखाई पड़ता है, बताइए? रामचंद्र जी कहीं दिखाई पड़ते हैं? श्रीकृष्ण भगवान कहीं दिखाई पड़ते हैं? हनुमान जी की कहीं आपने शक्ल देखी है?

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 15)

🌹  मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे

🔴 शिक्षित व्यक्ति को स्वाध्याय कर ही सकते हैं। अशिक्षित तथा जिनका मन स्वाध्याय में नहीं लगता, उन लोगों के लिए सत्संग ही एक उपाय है। विचारणा पलटते ही जीवन दिशा ही पलट जाती है। स्वाध्याय एवं सत्संग विचारों को स्थापित करते हैं, परंतु आज सत्संग की समस्या विकट हो गई है। अतः जिन महान् आत्माओं का सत्संग लाभ लेना चाहें, उनके द्वारा लिखे विचारों का स्वाध्याय तो किया ही जा सकता है। स्वाध्याय एक प्रकार का सत्संग ही है। इसके लिए वे ही चुनी हुई पुस्तकें होनी चाहिए, जो जीवन की विविध समस्याओं को आध्यात्मिक दृष्टि से सुलझाने में व्यावहारिक मार्गदर्शन करें और हमारी सर्वांगीण प्रगति को उचित प्रेरणा देकर अग्रगामी बनाएँ। 

🔵 स्वाध्याय, सत्संग, चिंतन एवं मनन इन चारों आधारों पर मानसिक दुर्बलता को हटाना और आत्मबल बढ़ाना निर्भर करता है। स्वाध्याय के अभाव में मन की न जड़ता जाती है न संकीर्णता, गन्दगी, मूढ़ता एवं विषयासक्ति से छुटकारा मिलता है। स्वाध्याय के लिए समय निकालना ही पड़ेगा। इसके लिए छोटा-सा आध्यात्मिक पुस्तकालय अपने-अपने घरों में शिक्षित लोग बना सकते हैं। पुस्तकें तो माँगकर भी पढ़ी जा सकती हैं। ज्ञान लेना और देना दोनों ही पुण्य कार्य समझकर किए जा सकते हैं। अपने परिवार में साप्ताहिक सत्संग किया जा सकता है। इसके लिए अखण्ड ज्योति, युग निर्माण योजना अथवा प्रज्ञापुराण के प्रेरणाप्रद अंश पढ़कर सुनाए जा सकता हैं। साप्ताहिक गोष्ठियाँ एवं सत्संग विचारधारा को परिष्कृत करने के लिए महत्त्वपूर्ण समझना चाहिए।

🔴 सद्ग्रंथ जीते-जागते देवता होते हैं। उनका स्वाध्याय करना, उनकी उपासना करने के समान ही है। भोजन से पूर्व साधना वे शयन से पूर्व स्वाध्याय का क्रम सुनिश्चित रूप से चलना चाहिए। सत्कर्मों को प्रेरणा देने वाले दो ही अवलंबन हैं-सद्विचार और सद्भाव। सद्विचार स्वाध्याय से और सद्भाव उपासना से विकसित व परिपुष्ट होते हैं। यह आत्मिक अन्न-जल हमारी आत्मा को नित्य नियमित रूप से मिलता रहना चाहिए। इसे आत्मा और परमात्मा की जीवन और आदर्श के मिलन-समन्वय की पोषण साधना कहा जा सकता है। स्वाध्याय के बिना विचार परिष्कार नहीं, जहाँ ज्ञान नहीं वहाँ अंधकार होना स्वाभाविक है और अज्ञानी न केवल इस जन्म में ही वरन् जन्म-जन्मान्तरों तक, जब तक ज्ञान का आलोक नहीं पा लेता, त्रिविध तापों की यातना सहता रहेगा। आत्मवान् व्यक्ति स्वाध्याय के सरल उपाय से ही भौतिक ज्ञान की यातना से मुक्त हो सकता है।     

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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