अथर्वण विद्या की चमत्कारी क्षमता
हालांकि वर्ष १९८८ में यह दिव्य ग्रन्थ एक परिजन के हाथों ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के शोधकर्मियों को प्राप्त हुआ था। तब इसको आधार बनाकर ‘वेदों में मानव जीवन का स्वरूप एवं उसकी आध्यात्मिक चिकित्सा के रहस्य’ के शीर्षक से एक शोध कार्य भी कराया गया था। पर इन दिनों शोध कार्य भी संस्थान में नहीं है। परन्तु जो कार्य कराया गया था, उसके आधार पर बड़ी ही प्रामाणित रीति से कहा जा सकता है कि वेद मानव जीवन की आध्यात्मिक चिकित्सा के आदि स्रोत हैं। इनमें केवल देह की पीड़ा को दूर करने की विधियाँ भर नहीं है। बल्कि मानसिक रोगों की निवृत्ति, दरिद्रता निवारण, ब्रह्मवर्चस व स्मरण शक्ति के वर्धन, घर- परिवार की सुख- शान्ति एवं सामाजिक यश, सम्मान में अभिवृद्धि के अनेकों प्रयोग शामिल हैं।
एक लघु आलेख में इन सभी के प्रयोग के विस्तार की व्याख्या तो सम्भव नहीं है। परन्तु एक सामान्य प्रयोग की चर्चा तो की ही जा सकती है। यह चर्चा ऋग्वेद के दशम् मण्डल के १५५ वें सूक्त के बारे में है। यदि कोई व्यक्ति धनलक्ष्मी से विहीन होकर जीवन यापन कर रहा हो, तो वह इस सूक्त के समस्त पाँचों मंत्रों का नित्य प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् १०१ बार जप करे। इस जप से पहले एवं बाद में गायत्री महामंत्र की एक- एक माला का जप आवश्यक है। वेद में प्रयोग अनेकों एवं विधियाँ असंख्य हैं। महाकाव्य एवं पुराणकाल में इन विधियों एवं प्रयोगों का उल्लेख महाकाव्यों एवं पुराणों में हुआ। वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में जीवन की अनगिनत समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न प्रयोगों की सांकेतिक या विस्तार से चर्चा की गयी है।
आध्यात्मिक चिकित्सा के ये प्रसंग ऐतरेय ब्राह्मण, तैत्तिरीयब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, ताण्ड्य ब्राह्मण तथा षडङ्क्षवश ब्राह्मण में भी पर्याप्त मिलते हैं। देवीभागवत पुराण, अग्रिपुराण, नारदादिपुराणों में तो इनकी भरमार है। इस सन्दर्भ में सूत्र ग्रन्थ भी पीछे नहीं हैं। यहाँ भी आध्यात्मिक चिकित्सा से सम्बन्धित अनेकों प्रयोग विधियाँ मिलती हैं। कल्प सूत्र, श्रोतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र एवं शुल्बसूत्र में इस विषय पर इतनी प्रचुर सामग्री है, जिसके आधार पर एक शोधग्रन्थ तैयार किया जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 8
हालांकि वर्ष १९८८ में यह दिव्य ग्रन्थ एक परिजन के हाथों ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के शोधकर्मियों को प्राप्त हुआ था। तब इसको आधार बनाकर ‘वेदों में मानव जीवन का स्वरूप एवं उसकी आध्यात्मिक चिकित्सा के रहस्य’ के शीर्षक से एक शोध कार्य भी कराया गया था। पर इन दिनों शोध कार्य भी संस्थान में नहीं है। परन्तु जो कार्य कराया गया था, उसके आधार पर बड़ी ही प्रामाणित रीति से कहा जा सकता है कि वेद मानव जीवन की आध्यात्मिक चिकित्सा के आदि स्रोत हैं। इनमें केवल देह की पीड़ा को दूर करने की विधियाँ भर नहीं है। बल्कि मानसिक रोगों की निवृत्ति, दरिद्रता निवारण, ब्रह्मवर्चस व स्मरण शक्ति के वर्धन, घर- परिवार की सुख- शान्ति एवं सामाजिक यश, सम्मान में अभिवृद्धि के अनेकों प्रयोग शामिल हैं।
एक लघु आलेख में इन सभी के प्रयोग के विस्तार की व्याख्या तो सम्भव नहीं है। परन्तु एक सामान्य प्रयोग की चर्चा तो की ही जा सकती है। यह चर्चा ऋग्वेद के दशम् मण्डल के १५५ वें सूक्त के बारे में है। यदि कोई व्यक्ति धनलक्ष्मी से विहीन होकर जीवन यापन कर रहा हो, तो वह इस सूक्त के समस्त पाँचों मंत्रों का नित्य प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् १०१ बार जप करे। इस जप से पहले एवं बाद में गायत्री महामंत्र की एक- एक माला का जप आवश्यक है। वेद में प्रयोग अनेकों एवं विधियाँ असंख्य हैं। महाकाव्य एवं पुराणकाल में इन विधियों एवं प्रयोगों का उल्लेख महाकाव्यों एवं पुराणों में हुआ। वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में जीवन की अनगिनत समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न प्रयोगों की सांकेतिक या विस्तार से चर्चा की गयी है।
आध्यात्मिक चिकित्सा के ये प्रसंग ऐतरेय ब्राह्मण, तैत्तिरीयब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, ताण्ड्य ब्राह्मण तथा षडङ्क्षवश ब्राह्मण में भी पर्याप्त मिलते हैं। देवीभागवत पुराण, अग्रिपुराण, नारदादिपुराणों में तो इनकी भरमार है। इस सन्दर्भ में सूत्र ग्रन्थ भी पीछे नहीं हैं। यहाँ भी आध्यात्मिक चिकित्सा से सम्बन्धित अनेकों प्रयोग विधियाँ मिलती हैं। कल्प सूत्र, श्रोतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र एवं शुल्बसूत्र में इस विषय पर इतनी प्रचुर सामग्री है, जिसके आधार पर एक शोधग्रन्थ तैयार किया जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 8