सोमवार, 10 अक्तूबर 2016
👉 समाधि के सोपान Samadhi Ke Sopan (भाग 52)
🔵 इस शरीर को निर्मूल करना ही होगा। अपनी आत्मा का साक्षात्कार करने के दृढ़ निश्चय में इसे जाने दो। वत्स! अंधकार में छलांग लगाओ तब तुम पाओगे कि वही अंधकार प्रकाश में परिवर्तित हो गया है। सभी बंधनों को काट डालो। वरंच शरीर को कल की अनिश्चितता के महाबंधन के अधीन कर दो और तुरंत तुम पाओगे कि तुमने सर्वोच्च स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है तथा शरीर तुम्हारी आत्मा का दास बन गया है।
🔴 आध्यात्मिक जीवन में साहस पूर्ण कदमों की आवश्यकता है जैसा कि सांसारिक जीवन के लिये आवश्यक है। जो खतरा मोल नहीं ले सकता उसे कभी कोई उपलब्धि भी नहीं हो सकती। शरीर को अनिश्चितता के समुद्र में फेंक दो। परिव्राजक सन्यासी के समान बनो। व्यक्तिं, स्थान या वस्तु से आसक्त न हो और यद्यपि तुम शरीर खो दोगे तुम्हें आत्मा की प्राप्ति होगी। शौर्य एक आवश्यक वस्तु है। जंगल के शेर का शौर्य। सशक्त हाथ ही माया के परदे को चीर सकते हैं। कल्पना से कुछ नहीं होगा।
🔵 आवश्यकता है पौरुष की। जब तक शरीर का भय है तब तक आत्मानुभूति नहीं हो सकती। थोड़ा विचार करके देखो, संसारी लोग संसारी वस्तुओं की उपलब्धि के लिए कितना त्याग करते हैं। तब क्या तुम आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए त्याग न करोगे? ईश्वरप्राप्ति क्या केवल वाग्मिता या रूपमात्र से हो जायेगी। क्षुद्र आश्रय देने वाले प्रभावों से मुक्त जाओ। खुले में आ जाओ। असीम को अपना क्षितिज बनाओ, समस्त विश्व तुम्हारा क्षेत्र हो जहाँ तुम विचरण करो!
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर
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