शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग १११

बिन इन्द्रिय जब अनुभूत होता है सत्य 

अन्तर्यात्रा विज्ञान के प्रयोग से अन्तस् में आध्यात्मिक अनुभव पल्लवित होते हैं। चित्त शुद्घि के स्तर के अनुरूप इन अनुभवों की प्रगाढ़़ता, परिपक्वता एवं पूर्णता बढ़ती जाती है। सामान्य जानकारियों वाले ज्ञान से इनकी स्थिति एकदम अलग होती है। सामान्य जानकारियाँ या तो सुनने से मिलती हैं अथवा फिर बौद्घिक अनुमान से। ये कितनी भी सही हो, पर अपने अस्तित्व के लिए परायी ही होती हैं। इनके बारे में कई तरह की शंकाएँ एवं सवाल भी उठते रहते हैं। इनके बारे में एक बात और भी है, वह यह कि आज का सब कल गलत भी साबित होता रहता है। पर आध्यात्मिक अनुभवों के साथ ऐसी बात नहीं है। ये अन्तश्चेतना की सम्पूर्णता में घटित होते हैं। इनका आगमन किन्हीं ज्ञानेन्द्रियों के द्वारों से नहीं होता और न ही किन्हीं पुस्तकों में लिखे अक्षरों से इनका कोई सम्बन्ध है। ये तो अन्तर में अंकुुरित होकर चेतना के कण-कण में व्याप्त हो जाते है।

सामान्य क्रम में बुद्घि अस्थिर, भ्रमित एवं सन्देहों से चंचल रहती है। इसमें होने वाले अनुभव भी इसी कारण से आधे-अधूरे और सच-झूठ का मिश्रण बने रहते हैं। ज्ञानेन्द्रियों का झरोखा भी धोखे से भरा है, जो कुछ दिख रहा है, वह सही हो यह आवश्यक तो नहीं है। जो अभी है कल नहीं भी हो सकता है। इस तरह कई अर्थों में आध्यात्मिक अनुभव अनूठे और पूरे होते हैं। 

इसी सत्य को महर्षि ने अपने अगले सूत्र में कहा है-
श्रुतानुमानप्रज्ञाभ्यामन्यविषया विशेषार्थत्वात्॥ १/४९॥
शब्दार्थ-श्रु्रतानुमानप्रज्ञाभ्याम्= श्रवण और अनुमान से होने वाली बुद्घि की अपेक्षा; अन्यविषया= इस बुद्घि का विषय भिन्न है; विशेषार्थत्वात्= क्योंकि यह विशेष अर्थवाली है।
भावार्थ- निर्विचार समाधि की अवस्था में विषय वस्तु की अनुभूति होती है, उसकी पूरी सम्पूर्णता में। क्योंकि इस अवस्था में ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है, इन्द्रियों को प्रयुक्त किए बिना ही।
महर्षि पतंजलि के इस सूत्र में एक अपूर्व दृष्टि है। इस दृष्टि में आध्यात्मिक संपूर्णता है। जिसमें आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी स्वतः समावेशित हो जाता है। जिनकी दार्शनिक रुचियाँ गम्भीर हैं, जो आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा में रुचि रखते हैं उन्हें यह सच भी मालूम होगा कि आध्यात्मिकता का एक अर्थ अस्तित्व की सम्पूणर््ाता भी है। बाकी जहाँ-कहीं जो भी है, वह सापेक्ष एवं अपूर्ण है। विज्ञान ने बीते दशकों में सामान्य सापेक्षिता सिद्घांत एवं क्वाण्टम् सिद्घांत की खोज की है। ये खोजें आध्यात्मिक अनुभवों को समझने के लिए बड़ी महत्वपूर्ण हैं। सामान्य सापेक्षिता सिद्घांत का प्रवर्तन करने वाले आइन्सटीन का कहना है-वस्तु, व्यक्ति अथवा पदार्थ का सच उसकी देश- काल की सीमाओं से बँधा है। जो एक स्थल और एक समय सच है, वही दूसरे स्थल और समय में गलत भी हो सकता है। इस सृष्टि अथवा ब्रह्माण्ड के सभी सच इस सिद्घांत के अनुसार आधे अधूरे और काल सापेक्ष है। 

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १८९
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 Gita Sutra No 9 गीता सूत्र नं० 9

👉 गीता के ये नौ सूत्र याद रखें, जीवन में कभी असफलता नहीं मिलेगी

श्लोक-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।

अर्थ-
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। उसके फलों के विषय में मत सोच। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर।

सूत्र –
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन से कहना चाहते हैं कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करना चाहिए। यदि कर्म करते समय फल की इच्छा मन में होगी तो आप पूर्ण निष्ठा से साथ वह कर्म नहीं कर पाओगे। निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ परिणाम देता है। इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकार अपना काम करते रहो। फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है।

👉 जनजन का गुरुधाम












दिव्य-तीर्थ यह शांतिकुंज है,जनजन का गुरुधाम है।
माँ गायत्री सुरसरि संगम, पावन तीर्थ स्थान है।।  

गंगा के पावन जल से नर,मोक्ष मुक्ति पा जाता है। 
गायत्री की जप करने से, मन निर्मल हो जाता है।।
गंगा  गायत्री  दोनों   ही, करते  जन  कल्याण  है। 
दिव्य-तीर्थ यह शांतिकुंज है,जनजन का गुरुधाम है।।

शांतिकुंज का स्वर्ण जयंती है,कुम्भ पर्व भी आया है। 
शांतिकुंज चैतन्य तीर्थ में, दिव्य उल्लास समाया है।।
प्रखर-प्रज्ञा व सजल-श्रधामय,युगऋषि का तपधाम है।
दिव्य-तीर्थ यह शांतिकुंज है,जनजन का गुरुधाम है।।

शांतिकुंज के दिव्यांगन में, यज्ञ योग और जाप करें। 
पूर्ण  करें  शुभ  मनोकमना, जीवन  के संताप हरें।। 
माँ गंगा  गायत्री  गुरुवर से प्राणित तीर्थ  महान है।
दिव्य-तीर्थ यह शांतिकुंज है,जनजन का गुरुधाम है।।

-उमेश यादव

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...