अपने उपदेशों को चालू रखते हुये गुरुदेव ने कहा:
🔵 तिल तिल कर मैं तुम्हारे व्यक्तित्व पर अधिकार करूँगा। पग पग चलकर तुम मेरे निकटतर आते जाओगे क्योंकि मैं ही तुम्हारा प्रभु और ईश्वर हूँ। तथा मैं तुम्हारे और मेरे मध्य इन्द्रियभोग रूपी देवताओं या तत्संबंधी विचारों को सहन नहीं करूँगा। वत्स! पर्दो को चीर डालो।
🔴 तब मैं जान पाया कि गुरुदेव ने ही मेरा दायित्व लें लिया है। मेरे मस्तक पर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया। उन्होंने पुन:कहा:-
🔵 इन्द्रियातीत अनुभूतियाँ अच्छी हैं, किन्तु चरित्र द्वारा उत्पन्न होने वाली चेतना इन्द्रियातीत अनुभूति से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। चरित्र ही सब कुछ हैं तथा चरित्र त्याग से ही बनता है। दुःख तथा आघात हमारी आत्मा की शक्ति को प्रगट कर हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं। उनका स्वागत करो। ये जिन दैवी अवसरों का निर्माण करते हैं उन्हें देखो।
🔴 जैसी की -कहावत है, हीरा हीरे को काटता है- उसी प्रकार दुःख ही पाशविक प्रवृत्तियों को जीतता है। धन्य है दुःख! महाभक्तिमति कुन्ती ने प्रभु से प्रार्थना की थी, कि उसके भाग में सदा दु:ख ही पड़ते रहें जिससे कि वह सदैव प्रभु का स्मरण करती रह सके। वत्स! उसकी प्रार्थना ही सच्ची प्रर्थना थी तुम भी उसी प्रकार प्रार्थना करो। यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो तो यह जान लो कि दुःख तुम्हें मेरे ओर अधिक निकट लायेगा तथा तुम्हारा श्रेष्ठ व्यक्तित्व प्रगट हो उठेगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर