गुरुवार, 9 अगस्त 2018
👉 मोह का दुष्परिणाम
🔶 विद्याधर नाम के पंडित के तीन पुत्रों में से धर्म शर्मा सबसे छोटा था। घर में सब प्रकार से सुख पूर्वक रहने के कारण उसका मन विद्याध्ययन में नहीं लगता था और अवसर आने पर भी वह पढ़ने के लिए गुरुकुल में प्रविष्ट नहीं हुआ। इस पर उसके पिता ने उस की बहुत भर्त्सना की और आस-पास के लोग भी उसकी बुराई करने लगे। तब उसने साधु सेवा का व्रत लिया और उन्हीं की सत्संगति से उसे शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान हो गया। कहाँ तो वह मूर्ख माना जाता था और कहाँ अब बहुसंख्यक व्यक्ति उससे शिक्षा प्राप्त करने आने लगे।
🔷 एक दिन एक व्याध एक तोते के बच्चे को लेकर उसके पास आया। बच्चा उसे बड़ा सुन्दर लगा और उसने उसे खरीद लिया। तोता ऐसा चतुर था कि वह शीघ्र ही स्पष्ट रूप से मानव भाषा बोलने लगा और तरह तरह से वार्तालाप करके धर्म शर्मा को प्रसन्न रखने लगा। धीरे-धीरे धर्म शर्मा को तोते से ऐसा प्रेम हो गया कि उससे बढ़कर संसार में उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। एक दिन जब वह स्नान को गया अकस्मात् किसी प्रकार पिंजड़े के खुल जाने से एक बिलाव तोते को पकड़ ले गया और खा डाला। इस घटना से धर्मशर्मा को इतना खेद हुआ कि उस तोते के लिए शोक करते करते ही उसने प्राण त्याग दिये, और परिणाम स्वरूप दूसरे जन्म में उसका जन्म तोते की योनि में ही हुआ। अति मोह किसी का भी अच्छा नहीं होता और बुद्धिमानों को उससे बचकर ही रहना चाहिए।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
🔷 एक दिन एक व्याध एक तोते के बच्चे को लेकर उसके पास आया। बच्चा उसे बड़ा सुन्दर लगा और उसने उसे खरीद लिया। तोता ऐसा चतुर था कि वह शीघ्र ही स्पष्ट रूप से मानव भाषा बोलने लगा और तरह तरह से वार्तालाप करके धर्म शर्मा को प्रसन्न रखने लगा। धीरे-धीरे धर्म शर्मा को तोते से ऐसा प्रेम हो गया कि उससे बढ़कर संसार में उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। एक दिन जब वह स्नान को गया अकस्मात् किसी प्रकार पिंजड़े के खुल जाने से एक बिलाव तोते को पकड़ ले गया और खा डाला। इस घटना से धर्मशर्मा को इतना खेद हुआ कि उस तोते के लिए शोक करते करते ही उसने प्राण त्याग दिये, और परिणाम स्वरूप दूसरे जन्म में उसका जन्म तोते की योनि में ही हुआ। अति मोह किसी का भी अच्छा नहीं होता और बुद्धिमानों को उससे बचकर ही रहना चाहिए।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
👉 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार 1 (भाग 24)
👉 प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाए
🔷 यह युगसंधि का प्रभात पर्व ऐसा है, जिसमें महाकाल को प्राणवान प्रतिभाओं की असाधारण आवश्यकता पड़ रही है। दैवी प्रयोजन महामानवों के माध्यम से ही क्रियान्वित होते हैं। अदृश्य शक्तियाँ तो उनमें प्रेरणा भर भरती हैं। यह व्यक्ति का स्वतंत्र निर्धारण होता है कि उन्हें अपनाए या ठुकराए। कृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि ‘‘दुष्ट कौरव तो पहले से ही मरे पड़े हैं। मैनें उनका पहले ही तेजहरण कर लिया है। तुझे तो धर्मयुद्ध में निरत होकर मात्र श्रेय भर गले में धारण करना है।’’ वस्तुतः युग की विकृतियों का शमन होना ही है।
🔶 नवसृजन का ऐसा महायज्ञ जाज्वल्यमान होना है, जिससे आगामी लंबे समय तक सुख शांति और प्रगति का वातावरण बना रहे, एकता और समता को मान्यता मिले, ध्वंस का स्थान सृजन ग्रहण करे और चेतना तथा भौतिक शक्तियों का नियोजन मात्र सत्प्रयोजनों के निमित्त होता रहे। इसी उज्ज्वल भविष्य को ‘सतयुग की वापसी’ नाम दिया गया है। अनीति की असुरता का दमन देवताओं की सामूहिक शक्ति-संघशक्ति दुर्गा के अवतरण से संभव हुआ था। लगभग उसी पुरातन प्रक्रिया का प्रत्यावर्तन नये सिरे से, नये रूप में इन दिनों संपन्न होने जा रहा है। उस प्रवाह में सम्मिलित होने वाले सामान्य पत्तों की तरह हलके होते हुए भी सरिता की धाराओं पर सवार होकर बिना कुछ विशेष प्रयास के ही महानता के महासमुद्र में जा मिलने में सफल हो सकेंगे।
🔷 अपने काम से, किसी से कुछ पाने के लिए कहीं जाना एक बात है और किसी समर्थ सत्ता द्वारा अपने सहायक के रूप में बुलाए जाने पर वहाँ पहुँचना सर्वथा दूसरी। पहली में एक पक्ष की दीनता और दूसरे पक्ष की स्वाभाविक उपेक्षा भर रहती है पर आमंत्रित अतिथि को लेने स्टेशन पर माला लेकर पहुँचना और सम्मानपूर्वक ठहराया जाता है। उसके वार्तालाप को भी प्रमुखता दी जाती है और ऐसा आधार खड़ा किया जाता है कि आमंत्रित व्यक्ति में निमंत्रण का उद्देश्य समझने और उसमें सहभागी बनने की प्रतिक्रिया उत्पन्न हो। महाकाल द्वारा प्रज्ञा-परिजनों के भेजे गए आमंत्रण को इसी रूप में देखा-समझा जाना चाहिए।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 30
🔷 यह युगसंधि का प्रभात पर्व ऐसा है, जिसमें महाकाल को प्राणवान प्रतिभाओं की असाधारण आवश्यकता पड़ रही है। दैवी प्रयोजन महामानवों के माध्यम से ही क्रियान्वित होते हैं। अदृश्य शक्तियाँ तो उनमें प्रेरणा भर भरती हैं। यह व्यक्ति का स्वतंत्र निर्धारण होता है कि उन्हें अपनाए या ठुकराए। कृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि ‘‘दुष्ट कौरव तो पहले से ही मरे पड़े हैं। मैनें उनका पहले ही तेजहरण कर लिया है। तुझे तो धर्मयुद्ध में निरत होकर मात्र श्रेय भर गले में धारण करना है।’’ वस्तुतः युग की विकृतियों का शमन होना ही है।
🔶 नवसृजन का ऐसा महायज्ञ जाज्वल्यमान होना है, जिससे आगामी लंबे समय तक सुख शांति और प्रगति का वातावरण बना रहे, एकता और समता को मान्यता मिले, ध्वंस का स्थान सृजन ग्रहण करे और चेतना तथा भौतिक शक्तियों का नियोजन मात्र सत्प्रयोजनों के निमित्त होता रहे। इसी उज्ज्वल भविष्य को ‘सतयुग की वापसी’ नाम दिया गया है। अनीति की असुरता का दमन देवताओं की सामूहिक शक्ति-संघशक्ति दुर्गा के अवतरण से संभव हुआ था। लगभग उसी पुरातन प्रक्रिया का प्रत्यावर्तन नये सिरे से, नये रूप में इन दिनों संपन्न होने जा रहा है। उस प्रवाह में सम्मिलित होने वाले सामान्य पत्तों की तरह हलके होते हुए भी सरिता की धाराओं पर सवार होकर बिना कुछ विशेष प्रयास के ही महानता के महासमुद्र में जा मिलने में सफल हो सकेंगे।
🔷 अपने काम से, किसी से कुछ पाने के लिए कहीं जाना एक बात है और किसी समर्थ सत्ता द्वारा अपने सहायक के रूप में बुलाए जाने पर वहाँ पहुँचना सर्वथा दूसरी। पहली में एक पक्ष की दीनता और दूसरे पक्ष की स्वाभाविक उपेक्षा भर रहती है पर आमंत्रित अतिथि को लेने स्टेशन पर माला लेकर पहुँचना और सम्मानपूर्वक ठहराया जाता है। उसके वार्तालाप को भी प्रमुखता दी जाती है और ऐसा आधार खड़ा किया जाता है कि आमंत्रित व्यक्ति में निमंत्रण का उद्देश्य समझने और उसमें सहभागी बनने की प्रतिक्रिया उत्पन्न हो। महाकाल द्वारा प्रज्ञा-परिजनों के भेजे गए आमंत्रण को इसी रूप में देखा-समझा जाना चाहिए।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 30
👉 Personality, personality, personality
🔷 This body is begotten and born of parents, there is really nothing different about the process of human birth, it is the same as in other animals. But on the other hand a personality has to be birthed with great care and resourcefulness.
🔶 Everyone, from a scientist to a philosopher has held human life in high regards; they sing praises to its greatness. The object of this praise is not a person, but a persona - the personality.
🔷 Yes, we do hear of someone inheriting a huge fortune, but its quite impossible to inherit - a great personality.
🔶 To make a personality is to relentlessly fight the battle of self-improvement with firm determination.
🔷 When a person becomes great, becomes extraordinary, outwardly he appears to be the same - but something does change, which makes him extraordinary from ordinary and that is - his personality.
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Jivan Devta ki sadhana-aradhana Vangmay 2 Page 2.2
🔶 Everyone, from a scientist to a philosopher has held human life in high regards; they sing praises to its greatness. The object of this praise is not a person, but a persona - the personality.
🔷 Yes, we do hear of someone inheriting a huge fortune, but its quite impossible to inherit - a great personality.
🔶 To make a personality is to relentlessly fight the battle of self-improvement with firm determination.
🔷 When a person becomes great, becomes extraordinary, outwardly he appears to be the same - but something does change, which makes him extraordinary from ordinary and that is - his personality.
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Jivan Devta ki sadhana-aradhana Vangmay 2 Page 2.2
👉 व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व
🔷 व्यक्ति की शरीर रचना तो माता-पिता के सम्भोग से अन्य प्राणियों की ही भाँति हो जाती है, किन्तु व्यक्तित्व की रचना बड़ी सावधानी और सूझ-बूझ के साथ करनी होती है।
🔶 दार्शनिकों से लेकर वैज्ञानिक तक ने मनुष्य जीवन की महत्ता के जो गीत गाए हैं उनका केन्द्र व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व ही रहा है।
🔷 यह तो हो सकता है कि किसी को धन सम्पदा विरासत में मिली हो, पर चरित्र आज तक किसी को भी विरासत में नहीं मिला।
🔶 यह निरंतर आत्म-सुधार की प्रक्रिया से लोहा लेने से ही संभव हुआ है।
🔷 कोइ सामान्य मनुष्य जब असामान्य बन जाता है, उसके बाह्य आकार, बनावट में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होता, जो वस्तु बदलती है वह व्यक्तित्व ही है।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 जीवन देवता की साधना-आराधना वांग्मय 2 पृष्ठ 2.2
🔶 दार्शनिकों से लेकर वैज्ञानिक तक ने मनुष्य जीवन की महत्ता के जो गीत गाए हैं उनका केन्द्र व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व ही रहा है।
🔷 यह तो हो सकता है कि किसी को धन सम्पदा विरासत में मिली हो, पर चरित्र आज तक किसी को भी विरासत में नहीं मिला।
🔶 यह निरंतर आत्म-सुधार की प्रक्रिया से लोहा लेने से ही संभव हुआ है।
🔷 कोइ सामान्य मनुष्य जब असामान्य बन जाता है, उसके बाह्य आकार, बनावट में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होता, जो वस्तु बदलती है वह व्यक्तित्व ही है।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 जीवन देवता की साधना-आराधना वांग्मय 2 पृष्ठ 2.2
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