गुरुवार, 24 मार्च 2022

आध्यात्मिक शिक्षण क्या है? भाग 4

मित्रो! हमने दीपक जलाया और कहा कि ऐ दीपक! जल और हमको भी सिखा। ऐ कम हैसियत वाले दीपक, एक कानी कौड़ी की बत्ती वाले दीपक, एक छटाँक भर तेल लिए दीपक, एक मिट्टी की ठीकर में पड़े हुए दीपक! तू अंधकार में प्रकाश उत्पन्न कर सकता है। मेरे जप से तेरा संग ज्यादा कीमती है। तेरे प्रकाश से मेरी जीवात्मा प्रकाशवान हो, जिसके साथ में खुशियों के इस विवेक को मूर्तिवान बना सकूँ। शास्त्रों में बताया गया है तमसो मा ज्योतिर्गमय’’। ऐ दीपक! हमने तुझे इसलिए जलाया कि तू हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले तमसो मा ज्योतिर्गमय अंतरात्मा की भूली हुई पुकार को हमारा अंतःकरण श्रवण कर सके और इसके अनुसार हम अपने जीवन को प्रकाशवान बना सकें।

अपने मस्तिष्क को प्रकाशवान बना सकें।दीपक जलाने का यही उद्देश्य है। सिर्फ भावना का ही दीपक जलाना होता, तो भावना कहती कि दीपक जला लीजिए तो वही बात है, मशाल जला लीजिए तो वही बात है, आग जला लीजिए तो वही बात है। स्टोव को जला लीजिए, बड़ी वाली अँगीठी, अलाव जलाकर रख दीजिए। इससे क्या बनने वाला है और क्या बिगड़ने वाला है? आग जलाने से भगवान् का क्या नुकसान है और दीपक जलाने से भगवान् का क्या बनता है? अतः ऐ दीपक! तू हमें अपनी भावना का उद्घोष करने दे।

साथियो! हम भगवान् के चरणारविन्दों पर फूल चढ़ाते हैं। हम खिला हुआ फूल, हँसता हुआ फूल, सुगंध से भरा हुआ फूल, रंग बिरंगा फूल ले आते हैं। इसमें हमारी जवानी थिरक रही है और हमारा जीवन थिरक रहा है। हमारी योग्यताएँ प्रतिभायें थिरक रही हैं। हमारा हृदयकंद कैसे सुंदर फूल जैसे है। उसे जहाँ कहीं भी रख देंगे, जहाँ कहीं भी भेज देंगे, वहीं स्वागत होगा। उसे कुटुम्बियों को भेज देंगे, वे खुश। जब लड़का कमा कर लाता है। आठ सौ पचास रुपये कमाने वाला इंजीनियर पैसा देता है, तो सोफासेट बनते हुए चले जाते हैं। माया घर में आती हुई चली जाती है।

क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/lectures_gurudev/44

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 24 March 2022

इस तथ्य को हमें हजार बार समझना चाहिए कि मनुष्य हाड़-मांस का पुतला नहीं है। वह एक चेतना है। भूख चेतना की भी होती है। विषाक्त आहार से शरीर मर जाता है और भ्रष्ट चिंतन से आत्मा की दुर्गति होती है। प्रकाश न होगा तो अंधकार का साम्राज्य ही होना है। सद्ज्ञान का आलोक बुझ जाएगा तो अनाचार की व्यापकता बढ़ेगी ही। भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट कर्तृत्व का परिणाम व्यक्ति और समाज की भयानक दुर्दशा के रूप में सामने आ सकता है।

जो व्यक्ति कठिनाइयों या प्रतिकूलताओं से घबड़ाकर हिम्मत हार बैठा, वह हार गया और जिसने उनसे समझौता कर लिया, वह सफलता की मंजिल पर पहुँच गया। इस प्रकार हार बैठने, असफल होने या विजयश्री और सफलता का वरण करने के लिए और कोई नहीं, मनुष्य स्वयं ही उत्तरदायी है। चुनाव उसी के हाथ में है कि वह सफलता को चुने या विफलता को। वह चाहे तो कठिनाइयों को वरदान बना सकता है और चाहे तो अभिशाप भी।

विनोद वृत्ति जहाँ स्वस्थ चित्त की द्योतक है, वहीं बात-बात पर व्यंग्य करने की प्रवृत्ति हीन भावना एवं रुग्ण मनःस्थिति का परिणाम है। हास-परिहास स्वस्थ होता है, किन्तु दूसरों का उपहास सदा कलहकारी एवं हानिकर होता है। खिल्ली उड़ाना तथा विनोद करना दो सर्वथा भिन्न प्रवृत्तियाँ हैं। खिल्ली उड़ाने वाली प्रवृत्ति प्रारंभ में भले ही रोचक  प्रतीत हो, किन्तु उसका अंत सदा आपसी दरार, तनाव और कटुता में होता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 4 Jan 2025

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