आवेश एक प्रकार का क्षणिक उन्माद है। पागल व्यक्ति जिस प्रकार कोई काम करते समय उसका परिणाम नहीं सोच पाता, उत्तेजना ग्रस्त मनुष्य का विवेक उसी प्रकार नष्ट हो जाता है। आवेग की अवस्था में किया हुआ काम कभी ठीक नहीं होता। गलती, भूल, उत्तेजना अथवा क्रोध करने वाला अपने कल्याण की आशा नहीं कर सकता।
हर बुद्धिमान् व्यक्ति का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह किसी के वैभव-विलास से प्रभावित होकर उसका मूल्यांकन करने से पूर्व यह अवश्य देख ले कि इस संपत्ति का आधार नीतिपूर्ण रहा है या नहीं? उसे उसके साधन, उपायों तथा युक्तियों की पवित्रता की खोज कर लेना आवश्यक है, जिससे कि गलत कार्यों के मूल्यांकन का अपराध न हो जाये।
अविश्वास के साथ किया हुआ कोई भी कार्य सफल नहीं होता। अपने प्रयत्नों में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति की शक्तियाँ अपमानित जैसा अनुभव करती रहती हैं और कभी भी पूरी तरह से काम नहीं करतीं। वस्तुतः अपने प्रयत्न को दुर्भाग्य का अभिशाप देने वाले नासमझ लोग शुभ संकल्पों का महत्त्व नहीं जानते, इसीलिए आत्म अभिशापित उनके प्रयत्न निष्फल चले जाते हैं। अपने को किसी दूसरे का शाप लगे या न लगे, किन्तु अपना शाप अवश्य लग जाता है।
हर बुद्धिमान् व्यक्ति का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह किसी के वैभव-विलास से प्रभावित होकर उसका मूल्यांकन करने से पूर्व यह अवश्य देख ले कि इस संपत्ति का आधार नीतिपूर्ण रहा है या नहीं? उसे उसके साधन, उपायों तथा युक्तियों की पवित्रता की खोज कर लेना आवश्यक है, जिससे कि गलत कार्यों के मूल्यांकन का अपराध न हो जाये।
अविश्वास के साथ किया हुआ कोई भी कार्य सफल नहीं होता। अपने प्रयत्नों में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति की शक्तियाँ अपमानित जैसा अनुभव करती रहती हैं और कभी भी पूरी तरह से काम नहीं करतीं। वस्तुतः अपने प्रयत्न को दुर्भाग्य का अभिशाप देने वाले नासमझ लोग शुभ संकल्पों का महत्त्व नहीं जानते, इसीलिए आत्म अभिशापित उनके प्रयत्न निष्फल चले जाते हैं। अपने को किसी दूसरे का शाप लगे या न लगे, किन्तु अपना शाप अवश्य लग जाता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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