शनिवार, 17 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 June 2023

आवेश एक प्रकार का क्षणिक उन्माद है। पागल व्यक्ति जिस प्रकार कोई काम करते समय उसका परिणाम नहीं सोच पाता, उत्तेजना ग्रस्त मनुष्य का विवेक उसी प्रकार नष्ट हो जाता है। आवेग की अवस्था में किया हुआ काम कभी ठीक नहीं होता। गलती, भूल, उत्तेजना अथवा क्रोध करने वाला अपने कल्याण की आशा नहीं कर सकता।

हर बुद्धिमान् व्यक्ति का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह किसी के वैभव-विलास  से प्रभावित होकर उसका मूल्यांकन करने से पूर्व यह अवश्य देख ले कि इस संपत्ति का आधार नीतिपूर्ण रहा है या नहीं? उसे उसके साधन, उपायों तथा युक्तियों की पवित्रता की खोज कर लेना आवश्यक है, जिससे कि गलत कार्यों के मूल्यांकन का अपराध न हो जाये।

अविश्वास के साथ किया हुआ कोई भी कार्य सफल नहीं होता। अपने प्रयत्नों में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति की शक्तियाँ अपमानित जैसा अनुभव करती रहती हैं और कभी भी पूरी तरह से काम नहीं करतीं। वस्तुतः अपने प्रयत्न को दुर्भाग्य का अभिशाप देने वाले नासमझ लोग शुभ संकल्पों का महत्त्व नहीं जानते, इसीलिए आत्म अभिशापित उनके प्रयत्न निष्फल चले जाते हैं। अपने को किसी दूसरे का शाप लगे या न लगे, किन्तु अपना शाप अवश्य लग जाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दूसरों के दोष ही गिनने से क्या लाभ (भाग 2)

भविष्य में क्या होगा यह तो ठीक-ठीक नहीं जाना जा सकता पर यह तो बिल्कुल सही है कि जो दूसरों के ऐब देखता है वह अपना मिथ्या अहंकार बढ़ाता है और उसके स्वभाव में क्रोध और घृणा की वृद्धि होती है। वह दूसरों के सम्बन्ध में अहंकार पूर्ण धारणाएं बनाता है और अपने आपको सबसे अच्छा समझने लगता है। वह अपनी बुराइयों की ओर से अन्धा हो जाता है और उसमें एक तरह का छिछोरापन या चुगली खाने की आदत आ जाती है।

एक बार महात्मा ईसा के पास कुछ लोग एक स्त्री को लेकर आये और कहने लगे कि प्रभु इसने व्यभिचार किया है इसे पत्थर मार-मार कर मार डालना चाहिए। महात्मा ईसा ने कहा है कि अच्छी बात है पर इसे वह पत्थर मारे जिसने एक भी पाप न किया हो। उस स्त्री को मारने की किसी की हिम्मत न पड़ी और सब लोग एक-एक करके चुपचाप वहाँ से खिसक गए। तब महात्मा ईसा ने उस स्त्री से दयापूर्वक कहा कि अब आगे ऐसा न करना। अपने प्राण-रक्षक के इन शब्दों का इस स्त्री पर इतना प्रभाव हुआ कि वह स्त्री एक साध्वी महिला बन गई।

सच है हमारे ऐब देखने वाले हमारे चरित्र को उतना नहीं सुधार सकते जितना कि हम पर दया और सहानुभूति रखने वाले। महात्मा ईसा ने उस समय यह भी बतला दिया कि कोई भी मनुष्य इतना पवित्र नहीं हो सकता कि वह दूसरों के व्यक्तिगत पापों पर निगाह डाले और उनके लिए उसे स्वयं दंड दे। केवल एक परमात्मा ही पूर्ण है और वही हमें हमारे व्यक्तिगत पापों के लिए दण्ड दे सकता है।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति-अप्रैल 1949 पृष्ठ 18


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