शनिवार, 6 अगस्त 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 10) 6 AUG 2016 (In The Hours Of Meditation)


🔴 क्या तुम विश्वास -करते हो ? स्वयं पर विश्वास करो, यदि तुम स्वयं पर विश्वास नहीं करते तो ईश्वर पर कैसे विश्वास करोगे ? तुम स्वयं अपना उद्धार करो। ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं। अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानो। अध्यात्मिक मानदण्ड से उसे मापो। यह जान लौ कि तुम शरीर नहीं हो, यहाँ तक कि मन भी नहीं हो। विचारे देखने का माध्यम है किन्तु लक्ष्य तो दर्शन ही हैं। अत: अनुभूति ही अंतिम सत्य है। अंतिम आदेश ही यह हैं, 'हे मानव, स्वयं का को जानो ! ' अपने स्वरूप की अनुभूति करो। विश्वास ! विश्वास !!
विश्वास !!!

🔵 सभी कुछ विश्वास पर निर्भर करता है। वह विश्वास नहीं जो केवल आस्था मात्र है, किन्तु वह विश्वास जो दर्शन है। संशय के अतिरिक्त और कोई पाप नहीं है। संशय से विष के समान घृणा करना सीखो। सबसे बड़ी दुर्बलता संशय हैं। अपनी आत्मा में संशय करना ही वस्तुतः ईश्वर निन्दा हैं। किसी से भयभीत न होओ। ईश्वर से भी नहीं।

🔴 क्योंकि ईश्वर प्रेम करने की वस्तु है भयभीत होने की नहीं। तुम -स्वयं की आत्मा से कैसे दूर हो सकते हो ? और ईश्वर तुम्हारी आत्मा ही तो है। ईश्वर के अतिरिक्त सब कुछ शून्य है और तुम ईश्वर ही हो। इसीलिए उठो जागो और जब तक लक्ष्य पर पहुँच न जाओ रुको नहीं। ब्रह्मनिष्ठ का यही उपदेश है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...