👉 बड़े कामों के लिए वरिष्ठ प्रतिभाएँ
🔶 अपने दायित्व की क्रमबद्ध व्यवस्था बना लेना इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति की दूरदर्शिता विवेकशीलता और कार्यकुशलता उच्चस्तर की है। कारखानों-दफ्तरों में, मैनेजरों की योग्यता पर उनका संचालन और विकास निर्भर रहता है। शासन में, प्राँतों के संरक्षक गवर्नर माने जाते है। अँग्रेजी शासन के जमाने में भारत के प्रधान व्यवस्थापक को गवर्नर, जनरल कहते थे। वह पद सबसे ऊँचा माना जाता था। सुपरिंटेंडेंट शब्द भी प्राय: इसी अर्थ का बोधक है।
🔷 महत्त्वपूर्ण सफलताएँ जब भी, जहाँ भी, जिन्हें भी मिली हैं, उनमें व्यवस्था तंत्र की प्रमुख भूमिका रही है। सेनापतियों का कौशल उनकी रणनीति के आधार पर आँका जाता है। योजनाबद्ध उपक्रम बनाकर ही विशालकाय निर्माण कार्य बन पड़ते हैं। श्रम को, श्रमिकों को, साधनों को पर्याप्त मात्रा में जुटा लेने पर भी इस बात की गारंटी नहीं होती कि जिस स्तर की जितनी सफलता अभीष्ट थी, वह मिल ही जाएगी। यह संभावना इस बात पर टिकी रहती है कि आज के उपलब्ध साधनों का किस प्रकार श्रेष्ठतम उपयोग करते बन पड़ा। यह इस बात पर निर्भर रहता है कि हाथ के नीचे जो काम हैं, उसके अनुकूल और प्रतिकूल पक्ष की, हर हलचल और समस्या को कितनी गंभीरता और यथार्थता के साथ आँका गया? समय रहते उनसे निपटने का किस प्रकार जुगाड़ बिठाया गया?
🔶 सफलता ऐसे ही तेजस्वियों का वरण करती है। श्रेयाधिकारी वे ही बनते हैं। जो मात्र अपने जिम्मे के काम को बेगार की तरह भुगत लेते हैं, उन्हें श्रमिक भर कहा जा सकता है। व्यवस्थापक का श्रेय तो उन्हें मिल ही नहीं पाता। परिपूर्ण दिलचस्पी, एकाग्र मनोयोग, समुचित उत्साह और आगे बढ़ने का अदम्य साहस मिलकर ही ऐसी स्थिति विनिर्मित करते हैं, जिसमें बड़े काम सध सकें, भले ही प्रश्नकर्ता साधारण साधनों, साधारण योग्यताओं वाला ही क्यों न हो? ऐसे लोग परिस्थितियों की प्रतिकूलता से भयभीत नहीं होते। उन्हें अनुकूल बनाने में अपनी समग्र क्षमता को दाँव पर लगाते हैं। ऐसे ही लोग नेतृत्व कर सकने के अधिकारी होते हैं। यों ऊँची कुरसी पर बैठने और पदवी पाने के लिए तो नर-वानर भी लालायित रहते हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 47