दुष्ट लोग उस मूर्खता से नहीं डरते, जिसे पाप कहते हैं। मगर विवेकवान सदा उस बेवकूफी से दूर रहते हैं। बुराई से बुराई ही पैदा होती है, इसलिए बुराई को अग्नि से भी भयंकर समझ कर उससे डरना और दूर रहना चाहिए। जिस तरह छाया मनुष्य को कभी नहीं छोड़ती वरन् जहाँ-जहाँ वह जाता है उसके पीछे-पीछे लगी रहती है। उसी तरह पाप कर्म भी पापी का पीछा करते हैं और अन्त में उसका सर्वनाश कर डालते हैं। इसलिए सावधान रहिए और बुराई से सदा डरते रहए।
जो काम बुरे हैं उन्हें मत करो। क्योंकि बुरे काम करने वालों को अन्तरात्मा के शाप की अग्नि में हर घड़ी झुलसना पड़ता है। वस्तुओं को प्रचुर परिमाण में एकत्रित करने की कामना से, इन्द्रिय भोगों की लिप्सा से और अहंकार को तृप्त करने की इच्छा से लोग कुमार्ग में प्रवेश करते हैं। पर यह तीनों ही बातें तुच्छ हैं। इनसे क्षणिक तुष्टि होती है, पर बदले में अपार दुख भोगना पड़ता है। खाँड मिले हुए विष को लोभवश खाने वाला बुद्धिमान नहीं कहा जाता, इसी प्रकार जो तुच्छ लाभ के लिए अपार दुख अपने ऊपर लेता है उसे भी समझदार नहीं कह सकते।
इस दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान, विद्वान, चतुर और समझदार वह है जो अपने को कुविचार और कुकर्मों से बचाकर सत्य को अपनाता है, सत्मार्ग पर चलता है और सत्विचारों को ग्रहण करता है। यही बुद्धिमानी अन्त में लाभदायक ठहरती है और दुष्टता करने वाले अपनी बेवकूफी से होने वाली हानि के कारण सिर धुन-धुन कर पछताते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1943 पृष्ठ 1
जो काम बुरे हैं उन्हें मत करो। क्योंकि बुरे काम करने वालों को अन्तरात्मा के शाप की अग्नि में हर घड़ी झुलसना पड़ता है। वस्तुओं को प्रचुर परिमाण में एकत्रित करने की कामना से, इन्द्रिय भोगों की लिप्सा से और अहंकार को तृप्त करने की इच्छा से लोग कुमार्ग में प्रवेश करते हैं। पर यह तीनों ही बातें तुच्छ हैं। इनसे क्षणिक तुष्टि होती है, पर बदले में अपार दुख भोगना पड़ता है। खाँड मिले हुए विष को लोभवश खाने वाला बुद्धिमान नहीं कहा जाता, इसी प्रकार जो तुच्छ लाभ के लिए अपार दुख अपने ऊपर लेता है उसे भी समझदार नहीं कह सकते।
इस दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान, विद्वान, चतुर और समझदार वह है जो अपने को कुविचार और कुकर्मों से बचाकर सत्य को अपनाता है, सत्मार्ग पर चलता है और सत्विचारों को ग्रहण करता है। यही बुद्धिमानी अन्त में लाभदायक ठहरती है और दुष्टता करने वाले अपनी बेवकूफी से होने वाली हानि के कारण सिर धुन-धुन कर पछताते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1943 पृष्ठ 1