ध्यान की अनुभूतियों द्वारा ऊर्जा स्नान
ध्यान साधना के इस क्रम में अगला क्रम भी है, जो अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म है। सविता देव के भर्ग का ध्यान। ध्यान का यह विशिष्ट एवं अपेक्षाकृत सूक्ष्म अभ्यास है। सविता का यह भर्ग, प्रकाश पुञ्ज के रूप में सविता की महाशक्ति है। इसे धारण करना विशिष्ट साधकों के ही बस की बात है। माँ गायत्री यहाँ सृष्टि की आदि ऊर्जा के रूप में अनुभव होती है। जो इसे जानता है-वही जानता है। ध्यान के इस रूप में साधक की मनोवृत्तियों का लय एक विशिष्ट उपलब्धि है। इस अवस्था में होने वाली समाधि साधक को अलौकिक शक्तियों का अनुदान देती है।
इसके बाद ध्यान का एक नया रूप-नया भाव प्रकट होता है। यह ध्यान विधि अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म है। यहाँ सविता देव के साकार रूप को प्रकट करने वाली महाशक्ति आदि ऊर्जा का साक्षात् होता है। यह अवस्था साधकों की न होकर सिद्धों की है। माँ गायत्री की सृष्टि की आदि ऊर्जा के रूप में ध्यानानुभूति। इसे वही कर सकते हैं, जिनके स्नायु वज्र में ढले हैं। जो अपने तन-मन एवं जीवन को रूपान्तरित कर चुके हैं। परम पूज्य गुरुदेव अपनी भाव चेतना में ध्यान एवं समाधि की इसी विशिष्ट अवस्था में जीते थे। इस ध्यान से उन्हें जो मिला था, उसे बताते हुए वह कहते थे कि मेरे रोम-रोम में शक्ति के महासागर लहराते हैं।
ध्यान एवं समाधि का यह स्तर पाना सहज नहीं है। यहाँ जो समाधि लगाते हैं, वे न केवल सृष्टि की महाऊर्जाओं में स्नान करते हैं, बल्कि स्वयं भी ऊर्जा रूप हो जाते हैं। उनकी देह भी रूपान्तरित हो जाती है। यहाँ विचार नहीं बचते, सभी तर्कों का यहाँ लोप होता है। यहाँ न तो रूप है, न आधार, न तर्क है, न विचार। बस शेष रहता है, तो केवल अनुभव। इसे जो जीते हैं, वही जानते हैं। जो जानते हैं, वे भी पूरा का पूरा नहीं बता पाते। समझने वालों को संकेतों में ही समझना पड़ता है। देखने वालों को केवल इशारे दिखाये जा सकते हैं। और जो इन्हें देखकर सुन्दर इस डगर पर आगे बढ़ते हैं-वे न केवल उपलब्धियाँ पाते हैं, बल्कि उनका स्वयं का जीवन भी एक महाउपलब्धि बन जाता है, जिसमें जिंदगी का असल अर्थ छिपा है।
.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १७५
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या