ननद भौजाई के झगड़े-
प्रायः देखा जाता है कि जहाँ ननदें अधिक होती हैं, या विधवा होने के कारण मायके यहाँ रहती हैं, वहाँ बहू पर बहुत अत्याचार होते हैं। ननद भाभी के विरुद्ध अपनी माता के कान भरती है और भाई को भड़काती हैं। इसका कारण यह है कि बहिन भाई पर अपना पूर्ण अधिकार समझती है और अपने गर्व, अहं, और व्यक्तव्य को अन्यों से ऊपर रखना चाहती है। भाई, यदि अदूरदर्शी होता है, तो बहिन की बातों में आ जाता है, और बहू अत्याचार का शिकार बनती है।
इन झगड़ों में पति को चाहिए कि पृथक-पृथक अपनी बहिन और पत्नी को समझा दे और दोनों के स्वत्व तथा अहं की पूर्ण रक्षा करे। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोनों का अध्ययन कर परस्पर मेल करा देना ही उचित है। मेल कराने के अवसरों की ताक में रहना चाहिए। दोनों को परस्पर मिलने, बैठने साथ-साथ टहलने जाने, एक सी दिलचस्पी विकसित करने का अवसर प्रदान करना उचित है। यह नहीं होना चाहिए कि पत्नी ही दोनों समय भोजन बनाती, झूठे बर्तन साफ करती, जिठानी के बच्चों को बहलाती-धुलाती, आटा पीसती, कपड़े धोती, दूध पिलाती या झाड़ू-बुहारी का काम करती रहे। चतुर पति को चाहिए कि काम का बटवारा करदे। पत्नी को कम काम मिलना चाहिए क्योंकि उसके पास बच्चे भी पालने के लिए हैं। यदि कोई बीमार पड़ेगा तो उसे उसका कार्य भी करना होगा।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1951 पृष्ठ 23
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/January/v1.23
प्रायः देखा जाता है कि जहाँ ननदें अधिक होती हैं, या विधवा होने के कारण मायके यहाँ रहती हैं, वहाँ बहू पर बहुत अत्याचार होते हैं। ननद भाभी के विरुद्ध अपनी माता के कान भरती है और भाई को भड़काती हैं। इसका कारण यह है कि बहिन भाई पर अपना पूर्ण अधिकार समझती है और अपने गर्व, अहं, और व्यक्तव्य को अन्यों से ऊपर रखना चाहती है। भाई, यदि अदूरदर्शी होता है, तो बहिन की बातों में आ जाता है, और बहू अत्याचार का शिकार बनती है।
इन झगड़ों में पति को चाहिए कि पृथक-पृथक अपनी बहिन और पत्नी को समझा दे और दोनों के स्वत्व तथा अहं की पूर्ण रक्षा करे। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोनों का अध्ययन कर परस्पर मेल करा देना ही उचित है। मेल कराने के अवसरों की ताक में रहना चाहिए। दोनों को परस्पर मिलने, बैठने साथ-साथ टहलने जाने, एक सी दिलचस्पी विकसित करने का अवसर प्रदान करना उचित है। यह नहीं होना चाहिए कि पत्नी ही दोनों समय भोजन बनाती, झूठे बर्तन साफ करती, जिठानी के बच्चों को बहलाती-धुलाती, आटा पीसती, कपड़े धोती, दूध पिलाती या झाड़ू-बुहारी का काम करती रहे। चतुर पति को चाहिए कि काम का बटवारा करदे। पत्नी को कम काम मिलना चाहिए क्योंकि उसके पास बच्चे भी पालने के लिए हैं। यदि कोई बीमार पड़ेगा तो उसे उसका कार्य भी करना होगा।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1951 पृष्ठ 23
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/January/v1.23