गुरुवार, 18 जुलाई 2019
👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग 31)
आध्यात्मिक चिकित्सक कौन हो सकता है? इन पंक्तियों को पढ़ने वालों की उर्वर मनोभूमि में अब तक यह प्रश्रबीज अंकुरित हो चुका होगा। किसे समझें आध्यात्मिक चिकित्सक? अथवा किस तरह से बनें आध्यात्मिक चिकित्सक? ऐसे सवालों का किसी चिन्तनशील मन में उपजना स्वाभाविक है। बात सही भी है- आध्यात्मिक चिकित्सा के सैद्धान्तिक पहलू कितने ही सम्मोहक क्यों न हो, परन्तु उसके प्रायोगिक प्रभाव किसी आध्यात्मिक चिकित्सक के माध्यम से ही पाए जा सकते हैं। एक वही है जो मानवीय जीवन के सभी दोषों, विकारों को दूर कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य का वरदान दे सकता है। इसके अभाव में न तो आध्यात्मिक चिकित्सा सम्भव हो पाएगी और न ही व्यक्तित्व के अभाव व अवरोध दूर हो सकेंगे।
निःसन्देह आध्यात्मिक चिकित्सक होने का दायित्व बड़ा है। आध्यात्मिक चिकित्सा के सिद्धान्तों एवं प्रयोगों को जानना, सामान्य चिकित्सा शास्त्र से कहीं अधिक दुष्कर है। आयुर्वेद या होमियोपैथी अथवा एलोपैथी या फिर साइकोथेरेपी के सिद्धान्त एवं प्रयोग अपने व्यक्तित्व को संवारे- सुधारे बिना भी समझे जा सकते हैं। पर आध्यात्मिक चिकित्सा के सिद्धान्त एवं प्रयोग विधियाँ स्वयं अपने व्यक्तित्व की पाठशाला एवं प्रयोगशाला में सीखनी पड़ती है। इसके लिए किन्हीं ग्रन्थों का अवलोकन या अध्ययन पर्याप्त नहीं होता। यहाँ व्यक्ति की व्यावहारिक या बौद्धिक योग्यता से काम नहीं चलता। जो केवल शब्द जाल के महाअरण्य में भटकते रहते हैं, वे इस क्षेत्र में असफल व अयोग्य ही सिद्ध होते हैं।
हालांकि इन दिनों काफी कुछ उलटबांसी देखने को मिल रही है। ‘बरसै कम्बल भीगे पानी’ जैसे नजारे सब तरफ दिखाई देते हैं। इस उलटी रीति के बारे में गोस्वामी जी महाराज कहते हैं-
मारग सोई जा कहुं जोइं भावा।
पण्डित सोई जो गाल बजावा॥
मिथ्यारम्भ दम्भ रत जोई।
ता कहुं संत कहइ सब कोई॥
जिसको जो अच्छा लग जाय, उसके लिए वही आध्यात्मिक पथ है। जो डींग मारता है, वही पण्डित है। जो मिथ्या आडम्बर रचता है, और दम्भ में रत है, उसी को सब कोई सन्त कहते हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 46
निःसन्देह आध्यात्मिक चिकित्सक होने का दायित्व बड़ा है। आध्यात्मिक चिकित्सा के सिद्धान्तों एवं प्रयोगों को जानना, सामान्य चिकित्सा शास्त्र से कहीं अधिक दुष्कर है। आयुर्वेद या होमियोपैथी अथवा एलोपैथी या फिर साइकोथेरेपी के सिद्धान्त एवं प्रयोग अपने व्यक्तित्व को संवारे- सुधारे बिना भी समझे जा सकते हैं। पर आध्यात्मिक चिकित्सा के सिद्धान्त एवं प्रयोग विधियाँ स्वयं अपने व्यक्तित्व की पाठशाला एवं प्रयोगशाला में सीखनी पड़ती है। इसके लिए किन्हीं ग्रन्थों का अवलोकन या अध्ययन पर्याप्त नहीं होता। यहाँ व्यक्ति की व्यावहारिक या बौद्धिक योग्यता से काम नहीं चलता। जो केवल शब्द जाल के महाअरण्य में भटकते रहते हैं, वे इस क्षेत्र में असफल व अयोग्य ही सिद्ध होते हैं।
हालांकि इन दिनों काफी कुछ उलटबांसी देखने को मिल रही है। ‘बरसै कम्बल भीगे पानी’ जैसे नजारे सब तरफ दिखाई देते हैं। इस उलटी रीति के बारे में गोस्वामी जी महाराज कहते हैं-
मारग सोई जा कहुं जोइं भावा।
पण्डित सोई जो गाल बजावा॥
मिथ्यारम्भ दम्भ रत जोई।
ता कहुं संत कहइ सब कोई॥
जिसको जो अच्छा लग जाय, उसके लिए वही आध्यात्मिक पथ है। जो डींग मारता है, वही पण्डित है। जो मिथ्या आडम्बर रचता है, और दम्भ में रत है, उसी को सब कोई सन्त कहते हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 46
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
👉 प्रेरणादायक प्रसंग 4 Jan 2025
👉 शांतिकुंज हरिद्वार के Youtube Channel `Shantikunj Rishi Chintan` को आज ही Subscribe करें। ➡️ https://bit.ly/2KISkiz 👉 शान्तिकुं...