मनोरंजन प्रधान उपन्यास, नाटक एवं शृंगार रस पूर्ण पुस्तक को पढ़ना स्वाध्याय नहीं है। इस प्रकार का साहित्य पढ़ना तो वास्तव में समय का दुरुपयोग एवं अपनी आत्मा को कलुषित करना है। सच्चा स्वाध्याय वही है, जिससे हमारी चिन्ताएँ दूर हों, हमारी शंका-कुशंकाओं का समाधान हो, मन में सद्भाव और शुभ संकल्पों का उदय हो तथा आत्मा को शान्ति की अनुभूति हो।
शब्द की शक्ति अल्प, निष्प्राण, कुंठित होने का एक प्रमुख कारण है उसका दुरुपयोग करना। बिना आवश्यकता के बिना प्रसंग बोलना, जरूरत से अधिक बोलना, हर समय उलटे सीधे बकते रहना, शब्द की शक्ति को नष्ट करना है। असंयम से कोई भी शक्ति क्षीण हो जाती है। वाणी का असंयम ही शब्द शक्ति के कुंठित होने का एक बड़ा कारण है।
गायत्री को इष्ट मानने का अर्थ है-सत्प्रवृत्ति की सर्वोत्कृष्टता पर आस्था। गायत्री उपासना का अर्थ है-सत्प्रेरणा को इतनी प्रबल बनाना, जिसके कारण सन्मार्ग पर चले बिना रहा ही न जा सके। गायत्री उपासना का लक्ष्य यही है। यह प्रयोजन जिसका जितनी मात्रा में जब सफल हो रहा हो समझना चाहिए कि हमें उतनी ही मात्रा में सिद्धि प्राप्त हो गई।
शब्द की शक्ति अल्प, निष्प्राण, कुंठित होने का एक प्रमुख कारण है उसका दुरुपयोग करना। बिना आवश्यकता के बिना प्रसंग बोलना, जरूरत से अधिक बोलना, हर समय उलटे सीधे बकते रहना, शब्द की शक्ति को नष्ट करना है। असंयम से कोई भी शक्ति क्षीण हो जाती है। वाणी का असंयम ही शब्द शक्ति के कुंठित होने का एक बड़ा कारण है।
गायत्री को इष्ट मानने का अर्थ है-सत्प्रवृत्ति की सर्वोत्कृष्टता पर आस्था। गायत्री उपासना का अर्थ है-सत्प्रेरणा को इतनी प्रबल बनाना, जिसके कारण सन्मार्ग पर चले बिना रहा ही न जा सके। गायत्री उपासना का लक्ष्य यही है। यह प्रयोजन जिसका जितनी मात्रा में जब सफल हो रहा हो समझना चाहिए कि हमें उतनी ही मात्रा में सिद्धि प्राप्त हो गई।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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