🔸 जमनुष्य अपने अभद्र विचारों से सरलता से मुक्त नहीं होता। इसके लिए भी त्याग की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति जितना ही अधिक त्याग करता है वह अपने विचारों का उतना ही अधिक सृजनात्मक बना लेता है। जीवन के सभी संकल्पों और इच्छाओं का त्याग कर देना मनुष्य को देवी शक्ति प्रदान करता है। परोपकार के निमित्त लाये गए विचारों में जो बल होता है वह स्वार्थ युक्त विचारों में नहीं रहता।
🔹 साधना उपासना के क्रिया-कृत्य में यही रहस्यमय संकेत सन्निहित है कि हम अपने व्यक्तित्व को किस प्रकार समुन्नत करें और जो प्रसुप्त पडा है उसे जागृत करने के लिए क्या कदम उठायें। सच्चा साधना वही है। जिसमें देवता की मनुहार करने के माध्यम से आत्म-निर्माण की दूरगामी योजना तैयार की जाती और सुव्यवस्था बनाई जाती है।
🔸 सच्चे ईश्वरानुभूति वाले पुरुष और अपने स्वार्थ के लिए कार्य करने वाले पुरुषों में मुख्य अन्तर यही है कि ईश्वर पुरुष बिना कुछ कहे दूसरों की सहायता करता रहता है और दिखावटी धर्मात्मा बनने वाले दूसरों के कल्याण और उपकार का ढोंग करते हैं, पर उनका उद्देश्य सदैव अपना ही स्वार्थ-साधन रहता है। इसी कसौटी से इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों की परीक्षा सहज में की जा सकती है।
🔹 संसार में जितने भी चमत्कारी देवता जाने माने गये हैं, उन सबसे बढ़कर आत्म-देव है। उसकी साधना प्रत्यक्ष है। नकद धर्म की तरह उसकी उपासना कभी भी-किसी की भी निष्फल नहीं जाती। यदि उद्देश्य समझते हुए सही दृष्टिकोण अपनाया जा सके तो जीवन साधना को अमृत, पारस कल्पवृक्ष की कामधेनु की सार्थक उपमा दी जा सकती।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔹 साधना उपासना के क्रिया-कृत्य में यही रहस्यमय संकेत सन्निहित है कि हम अपने व्यक्तित्व को किस प्रकार समुन्नत करें और जो प्रसुप्त पडा है उसे जागृत करने के लिए क्या कदम उठायें। सच्चा साधना वही है। जिसमें देवता की मनुहार करने के माध्यम से आत्म-निर्माण की दूरगामी योजना तैयार की जाती और सुव्यवस्था बनाई जाती है।
🔸 सच्चे ईश्वरानुभूति वाले पुरुष और अपने स्वार्थ के लिए कार्य करने वाले पुरुषों में मुख्य अन्तर यही है कि ईश्वर पुरुष बिना कुछ कहे दूसरों की सहायता करता रहता है और दिखावटी धर्मात्मा बनने वाले दूसरों के कल्याण और उपकार का ढोंग करते हैं, पर उनका उद्देश्य सदैव अपना ही स्वार्थ-साधन रहता है। इसी कसौटी से इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों की परीक्षा सहज में की जा सकती है।
🔹 संसार में जितने भी चमत्कारी देवता जाने माने गये हैं, उन सबसे बढ़कर आत्म-देव है। उसकी साधना प्रत्यक्ष है। नकद धर्म की तरह उसकी उपासना कभी भी-किसी की भी निष्फल नहीं जाती। यदि उद्देश्य समझते हुए सही दृष्टिकोण अपनाया जा सके तो जीवन साधना को अमृत, पारस कल्पवृक्ष की कामधेनु की सार्थक उपमा दी जा सकती।
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