🔷 ईमानदारी बरतने वाला व्यक्ति भी असफल हो सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि ईमानदारी कोई गलत गुण है, वरन् सफलता के लिए ईमानदारी के साथ अन्य सद्गुणों-परिश्रम, पुरुषार्थ और संगठित शक्तियों के कारण जहाँ बुरे लोग अपने गलत कार्यों में भी सफल हो जाते हैं, वहीं अच्छे लोगों को आलस्य, सुस्ती और प्रमाद के कारण दुःखी, क्लान्त तथा असफलत हो जाना पड़ता है और विडम्बना यह बन जाती है कि ईमानदार लोग भूखे मरते हैं- का फतवा देने लगते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है।
🔶 अहिंसा को अध्यात्म मर्यादा का अति महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। उसका तात्पर्य इतना ही है कि किसी के उचित अधिकार अथवा सम्मान पर आक्रमण न किया जाय। छल करके अपना स्वार्थ सिद्ध करना एवं दूसरों को हानि पहुँचाना हिंसा है। दूसरों को बहकाना, भ्रम में डालना, अनैतिक परामर्श तथा प्रोत्साहन देना, कुमार्गगामी बनाना, बुरी आदतों में फँसाना, मनोबल गिराना, अंधकारमय भविष्य के चित्र दिखाकर खिन्न-उद्विग्न कर देना, डराना हिंसा है- इस प्रकार की गतिविधियों में खून खराबा या मारपीट नहीं होती, किन्तु दूसरों को भटकने या पतित करने का पथ प्रशस्त होता है।
🔷 भगवान् पर हुकूमत करना और भगवान् के सामने तरह-तरह की फरमाइशें पेश करना यह तो वेश्यावृत्ति का काम है। उपासना लौकिक कामनाओं के लिए नहीं, बल्कि भगवान् की साझेदारी के लिए, भगवान् को स्मरण रखने के लिए, आज्ञानुवर्ती होने के लिए और अपना समर्पण करने के उद्देश्य से होनी चाहिए। ऐसी उपासना ही फलदायी होती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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