गुरुवार, 1 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 1 June 2023

🔷 ईमानदारी बरतने वाला व्यक्ति भी असफल हो सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि ईमानदारी कोई गलत गुण है, वरन् सफलता के लिए ईमानदारी के साथ अन्य सद्गुणों-परिश्रम, पुरुषार्थ और संगठित शक्तियों के कारण जहाँ बुरे लोग अपने गलत कार्यों में भी सफल हो जाते हैं, वहीं अच्छे लोगों को आलस्य, सुस्ती और  प्रमाद के कारण दुःखी, क्लान्त तथा असफलत हो जाना पड़ता है और विडम्बना यह बन जाती है कि ईमानदार लोग भूखे मरते हैं- का फतवा देने लगते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है।

🔶 अहिंसा को अध्यात्म मर्यादा का अति महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। उसका तात्पर्य इतना ही है कि किसी के उचित अधिकार अथवा सम्मान पर आक्रमण न किया जाय। छल करके अपना स्वार्थ सिद्ध करना एवं दूसरों को हानि पहुँचाना हिंसा है। दूसरों को बहकाना, भ्रम में डालना, अनैतिक परामर्श तथा प्रोत्साहन देना, कुमार्गगामी बनाना, बुरी आदतों में फँसाना, मनोबल गिराना, अंधकारमय भविष्य के चित्र दिखाकर खिन्न-उद्विग्न कर देना, डराना हिंसा है- इस प्रकार की गतिविधियों में खून खराबा या मारपीट नहीं होती, किन्तु दूसरों को भटकने या पतित करने का पथ प्रशस्त होता है।

🔷 भगवान् पर हुकूमत करना और भगवान् के सामने तरह-तरह की फरमाइशें पेश करना यह तो वेश्यावृत्ति का काम है।  उपासना लौकिक कामनाओं के लिए नहीं, बल्कि भगवान् की साझेदारी के लिए, भगवान् को स्मरण रखने के लिए, आज्ञानुवर्ती होने के लिए और अपना समर्पण करने के उद्देश्य से होनी चाहिए। ऐसी उपासना ही फलदायी होती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सहृदयता में जीवन की सार्थकता (भाग 2)

जिसने अपनी विचार धारा और भावनाओं को शुष्क, नीरस और कठोर बना रखा है, वह मानव जीवन के वास्तविक रस का आस्वादन करने से वंचित ही रहेगा । उस बेचारे ने व्यर्थ ही जीवन धारण किया और वृथा ही मनुष्य शरीर को कलंकित किया। आनन्द का स्त्रोत सरसता की अनुभूतियों में है। परमात्मा को आनन्द मय कहा जाता है। क्यों?- इसलिए कि वह सरस है, प्रेम मय है । श्रुति कहती है- “रसोवैसः” अर्थात्-वह परमात्मा रस मय है । भक्ति द्वारा प्रेम द्वारा-परमात्मा को प्राप्त करना संभव बताया गया है। निस्संदेह जो वस्तु जैसी हो उसको उसी प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। परमात्मा दीनबन्धु करुणासिन्धु, रसिक बिहारी, प्रेम का अवतार, दया निधान, भक्त वत्सल है। उसे प्राप्य करने के लिए अपने अन्दर वैसी ही लचीली, कोमल, स्निग्ध, सरस भावनाएं पैदा करनी पड़ती है। भगवान भक्ति के वश में है जिनका हृदय कोमल है, भावुक है, परमात्मा उनसे दूर नहीं है।

आप अपने हृदय को कोमल, द्रवित, पसीजने वाला, दयालु, प्रेमी और सरस बनाइए। संसार के पदार्थों में जो सरसता का सौंदर्य का अपार भण्डार भरा हुआ है उसे ढूँढ़ना और प्राप्त करना सीखिए। अपनी भावनाओं को जब आप कोमल बना लेते है तो आपके अपने चारों ओर अमृत झरता हुआ अनुभव होने लगता है। जड़ वस्तुओं पर दृष्टि डालिए हर एक वस्तु अपने-2 ढंग की अनूठी है, वह अपने कलाकार की अमर कीर्ति का अपनी मूकवाणी द्वारा बड़ी ही भावुक भाषा में वर्णन कर रही है। मखमल सी घास, दूध के फेन से उज्ज्वल नदी नाले हँसते हुए पुष्प, खिलौने से सुन्दर कीट पतंग माता सी दयालु गौएं, भाई से साथी बैल, वफादार सेवक से घोड़े, स्वामिभक्त कुत्ते, जापानी खिलौने से चलते फिरते पक्षी, आप अपने चारों ओर देख सकते है। सिनेमा की सी चलती बोलती तस्वीरें सब तरफ घूम रही है, नाटक का सा अभिनय स्थान स्थान पर हो रहा है।

प्रकृति के कोमल दृश्यों का कवित्व मय भावुकता के साथ यदि आप निरीक्षण करें तो सर्वत्र सौंदर्य की अजस्र धारायें बहती हुई दिखाई देगी। तस्वीर सा यह सुन्दर संसार आपके दिल की मुरझाई कली को हरी कर देने की परिपूर्ण क्षमता रखता है। भोले भाले मीठी मीठी बातें करते हुए बालक, प्रेम की प्रतिमायें देवियाँ, करुणामय मातृत्व की मूर्तियाँ माताएं, अनुभव ज्ञान और शुभ कामनाओं के प्रतीक वृद्ध जन, यह सब ईश्वर की ऐसी आनन्दमय विभूतियाँ है जिन्हें देखकर मनुष्य का हृदय कमल के पुष्प के समान खिल जाना चाहिए।

पग पग पर आनन्द और उल्लास के ढेर हमारे सामने लगे हुए है, इन दिव्य तत्वों के द्वारा हम अपने को रात दिन आनन्द में सराबोर रख सकते है, फिर भी हाय! हम कैसे अभागे है कि जीवन को दुख शोकों से भरा रखते हैं। मनुष्य अपनी कोमल भावनाओं को जैसे जैसे जागृत करता जाता है वैसे ही उसे अमृत तत्व का रसास्वादन होने लगता है जिसके लिए सत चित आनन्द स्वरूप आत्मा इस हाड़ माँस कि शरीर में रहने को रजामन्द हुआ है, जिसके लोभ को संवरण न करके उसके मनुष्य शरीर धारण किया है। जीवन की सार्थकता कोमल वृत्तियों के मधुरता का रसास्वादन करने में है।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- जून 1944 पृष्ठ 5


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