पालतू पशुओं के बंधन में बँधकर रहना पड़ता है, पर मनुष्य को यह सुविधा प्राप्त है कि स्वतन्त्र जीवन जियें और इच्छित परिस्थितियों का वरण करें। उत्थान और पतन के परस्पर विरोधी दो मार्गों में से हम जिसको भी चाहें अपना सकते हैं। पतन के गर्त में गिरने की छूट है। यहाँ तक कि आत्महत्या पर उतारू व्यक्ति को भी बलपूर्वक बहुत दिन तक रोके नहीं रखा जा सकता।
यही बात उत्थान के सम्बन्ध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँ चा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करते, लम्बी दूरी पार करते, सृष्टि के सैन्दर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के सम्पर्क में धूलिकण और तिनके तक ऊँची उड़ानें भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशाधारा अपनाने से कौन रोक सकता है?
आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में बहाव पकड़ लेता है।
दूरदर्शिता इसमें है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाय। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर पशु न रहकर महामानव बनते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
यही बात उत्थान के सम्बन्ध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँ चा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करते, लम्बी दूरी पार करते, सृष्टि के सैन्दर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के सम्पर्क में धूलिकण और तिनके तक ऊँची उड़ानें भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशाधारा अपनाने से कौन रोक सकता है?
आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में बहाव पकड़ लेता है।
दूरदर्शिता इसमें है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाय। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर पशु न रहकर महामानव बनते हैं।
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