गुरुवार, 16 मार्च 2023

👉 पतन नहीं उत्थान का मार्ग अपनायें

पालतू पशुओं के बंधन में बँधकर रहना पड़ता है, पर मनुष्य को यह सुविधा प्राप्त है कि स्वतन्त्र जीवन जियें और इच्छित परिस्थितियों का वरण करें। उत्थान और पतन के परस्पर विरोधी दो मार्गों में से हम जिसको भी चाहें अपना सकते हैं। पतन के गर्त में गिरने की छूट है। यहाँ तक कि आत्महत्या पर उतारू व्यक्ति को  भी बलपूर्वक बहुत दिन तक रोके नहीं रखा जा सकता।

यही बात उत्थान के सम्बन्ध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँ चा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करते, लम्बी दूरी पार करते, सृष्टि के सैन्दर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के सम्पर्क में धूलिकण और तिनके तक ऊँची उड़ानें भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशाधारा अपनाने से कौन रोक सकता है?

आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में बहाव पकड़ लेता है।

दूरदर्शिता इसमें है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाय। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर पशु न रहकर महामानव बनते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आत्मदेव को साधें

परोक्ष देवता अगणित हैं और उनकी साधना उपासना के हमात्म्य तथा विधा भी बहुतेरे; किन्तु इतने पर भी यह निश्चित नहीं कि वे अभीष्ट अनुग्रह करेंगे ही- इच्छित वरदान देंगे ही। यह भी हो सकता है कि निराशा हाथ लगे। मान्यता को अघात पहुँचे और परिश्रम निरर्थक चला जाय।

इस बुद्धिवादी युग में देव मान्यता के सम्बन्ध में सन्देह भी प्रकट किया जाता है। यहाँ तक कि अविश्वास एवं उपहास भरी चर्चायें भी होती हैं। ऐसी दशा में हमें सार्वजनीन  ऐसे देवता का आश्रय लेना चाहिए,जो साम्प्रदायिक अन्धविश्वासों से ऊपर उठा एवं सर्वमान्य हो। साथ ही जिसके अनुग्रह और वरदान के सम्बन्ध में भी अँगुली न उठे।

ऐसे देवता एक और हैं और वह हैं- आत्मदेव। अपना सुसंस्कृत आपा एवं परिष्कृत व्यक्तित्व। इसका आश्रय रहने पर कोई न अभावग्रस्त रह सकता है और न निराशतिरस्कृत॥
अन्य सभी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कष्टसाध्य साधनायें करनी पड़ती हैं। आत्मदेव की सत्ता सबके भीतर समान रूप से रहते हूए भी उसे उत्कृष्ट बनाने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अपने चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को ऊँचे स्तर का बनाने के लिए आत्म विकास का आश्रय लेना पड़ता है। यही है सुनिश्चित फलदायिनी आत्मदेव की साधना।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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