सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

👉 लोभ रूपी कुआं

एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ' ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?' इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया।

आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है, वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।

छः दिन बीत चुके थे। राज पंडित को जबाव नहीं मिला था। निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा -" आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?

यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा। इस पर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा -" पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।" राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कलतक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।

गड़रिया बोला- "मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे। बस, पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।"

राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया। गड़रिया बोला -" *पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी। मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।

राज पंडित बोला -" ठीक है, दूध पीने को तैयार हूं, आगे क्या करना है?" गड़रिया बोला-" अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।" राजपंडित ने कहा -" तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?" तो जाओ, गड़रिया बोला।

राज पंडित बोला -" मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को।" गड़रिया बोला-" वह बात गयी। अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा, उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा। तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।"

राजपंडित ने खूब विचार कर कहा-" है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं। गड़रिया बोला-" मिल गया जवाब। यही तो कुआं है! लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।

👉 आज का सद्चिन्तन Today Thought 7 Oct 2019


👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ७५)

👉 जीवनशैली आध्यात्मिक हो

आध्यात्मिक चिकित्सक उनके इस दर्द को अपने दिल की गहराइयों में महसूस करते हैं। क्योंकि उन्हें इस सच्चाई का पता है कि यथार्थ में कोई भी बुरा या डरपोक नहीं है। सभी में प्रभु का सनातन अंश है। प्रत्येक व्यक्ति अपने भूल रूप में परम दिव्य होने के साथ साहस और सद्गुणों का भण्डार है। बस हुआ इतना ही है कि किन्हीं कारणों से उसकी अन्तर्चेतना में कुछ गाँठें पड़ गई है, जिसकी वजह से उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह रुक गया है। यदि ये गाँठें खोल दी जाय तो फिर स्थिति बदल सकती है। हाँ इतना जरूर है कि ये गाँठें बचपन की भी हो सकती हैं और पिछले जीवन की भी। पर यह सौ फीसदी सच है कि व्यक्ति को बुरा या डरपोक बनाने में इन्हीं का प्रभाव काम करता है।

इस सच को अधिक जानने के लिए हमें व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया में प्रवेश करना पड़ेगा। किसी का बचपन उसके व्यक्तित्व का अंकुरण है। इसके बढ़तेक्रम में व्यक्तित्व भी बढ़ता है। इस अवधि में कोई भी घटना का मन- मस्तिष्क पर गहरा असर होता है। अब यदि किसी बच्चे को बार- बार अँधेरे से अथवा कुत्ते से डराय जाय और यदि यह डर गहरा होकर किसी मनोग्रंथि का रूप ले ले तो फिर यह बच्चा मन अपनी पूरी उम्र अँधेरे और कुत्तों से डरता रहेगा। यही स्थिति भावनात्मक आघात के बारे में है। जिन्हें हम बुरे और असामाजिक लोग कहते हैं, उनमें से कोई बुरा और असामाजिक नहीं होता। भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से उपजे विरोध के स्वर, उपजी विकृतियाँ उन्हें बुरा बना देती हैं। यदि इन  मनोग्रंथियों को खोल दिया जाय तो सब कुछ बदल सकता है।

आध्यात्मिक व्यवहार चिकित्सा में चिकित्सक सबसे पहले उसकी पीड़ा- परेशानी को भली प्रकार समझता है। अपने आत्मीय सम्बन्धों व अन्तर्दृष्टि के द्वारा उसकी मनोग्रन्थि के स्वरूप व स्थिति का आँकलन करता है। इसके बाद किसी उपयुक्त आध्यात्मिक तकनीक के द्वारा उसकी इस जटिल मनोग्रन्थि को खोलता है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे यह जरूरी है कि चिकित्सक के व्यक्तित्व पर रोगी की गहरी आस्था हो। फिर सब कुछ ठीक होने लगता है। उदाहरण के लिए यदि बात किसी अँधेरे भयग्रस्त रोगी की है तो चिकित्सक सब से पहले अँधेरे के यथार्थ से वैचारिक परिचय करायेगा। फिर इसके बारे में और भी अधिक गहराई बतायेगा। बाद में उसे स्वयं लेकर उस अँधेरे स्थान पर ले जायेगा। जहाँ उसे डर लगा करता है। इस पूरी प्रक्रिया में जप या ध्यान की तकनीकों का उपयोग भी हो सकता है, क्योंकि इससे मनोग्रंथियाँ आसानी से खुलती हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १०४

👉 जन्म दिन मनाने की परिपाटी

युग निर्माण परिवार के सदस्यों में प्रेम परिचय बढ़े। घनिष्ठता स्थापित हो उसके लिये जन्म दिन मनाने की परम्परा विकसित की जाय। अपने व्रतधारी और सामान्य सदस्यों का जन्म दिन किस तारीख को पड़ता हे, इसका वर्ष के 365 दिनों का अनुक्रम से रजिस्टर तैयार कर लिया जाये तथा उसकी एक एक कार्बन कापी अथवा छपी कापी प्रत्येक सदस्य के पास रहे, ताकि उस दिन नियमित रूप से हर सदस्य उस सदस्य के घर बिना स्मरण दिलाये पहुँच जाया करे। जन्म दिवसोत्सवों में परिचितों, पड़ोसियों और सम्बन्धियों को भी अलग से आमंत्रित किया जाता रहे, इससे कुछ ही समय में सैकड़ों नये व्यक्तियों तक मिशन का प्रकाश अनायास ही पहुँच सकता है।

तैयारी सर्वत्र एक सी रहे इस परम्परा को लोकप्रिय बनाया जाना है, अतएव निर्धन और धनी वर्ग सब सीमित खर्च उठाये। पूजन सामग्री एवं उपकरणों की व्यवस्था शाखा अथवा टोली में रहे। स्वागत सत्कार में भी न्यूनतम खर्च हो। प्रसाद के लिये चीनी की गोली, चिनौरियाँ और सत्कार के लिये कटी सुपारी, तली-भुनी सौंफ पर्याप्त है। सम्भव हो तो, यह व्यवस्था भी शाखा में विद्यमान रहे। समय, प्रातः काम पर जाने से पूर्व, अन्यथा रात को रखा जाये और इतने समय से उसे सम्पन्न कर लिया जाये कि घर लौटने, काम पर जाने या रात्रि विश्राम में विलम्ब न हो।

एक घण्टे में यज्ञादि धर्मानुष्ठान, आधा घण्टा संगीत एक घण्टा प्रवचन प्रतिज्ञा, इस प्रकार दो ढाई घण्टे पर्याप्त है। सर्वतोमुखी पवित्रता का जल अभिसिंचन, पूजा वेदी पर देव पूजन, स्वस्ति वाचन, संक्षिप्त हवन, उपस्थित लोगों द्वारा शुभकामना, अक्षत पुष्प उपहार, अभिवादन, आशीर्वाद, भजन कीर्तन, प्रवचन, मार्गदर्शन जल इलाइची से सत्कार इतना कार्यक्रम पर्याप्त है। पूजा के मंत्र सभी पढ़े लिखे पुस्तकों से सामूहिक रूप से बोले। प्रवचन कर्ता कई तरह के प्रवचन तैयार रखे, ताकि यदि एक ही दिन कई जन्म दिन मनाने पड़े तो भी रुचि भिन्नता बनी रहे। अपने स्त्री बच्चों तथा मुहल्ले के जन्म दिन लोग स्वयं मनायें, उसमें शाखा सदस्यों का समय नहीं लगना चाहिए। इस तरह इस परम्परा के द्वारा पारस्परिक स्नेह सद्भाव के विकास का सुर सुलभ मनुष्य शरीर का लाभ किस प्रकार लिया जा सकता हे, थोड़े में ही यह उद्देश्य पूरा किया जा सकता है।

जन्म दिन संस्कार से पारिवारिक स्नेह सद्भाव की वृद्धि और व्यक्ति निर्माण की आवश्यकता पुरी होती है, जन समुदाय को भी यह लाभ देने की दृष्टि से प्रत्येक शाखा को (1) आदर्श वाक्य लेखन (2) चल पुस्तकालय (3) धर्म फेरी तीर्थयात्रा-यह तीन कार्य क्रम अनिवार्य रूप से चलाना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई १९७७ पृष्ठ ५५

Change Your Thoughts To Change Your Life | Pt Shriram Sharma Acharya



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