अपने किये हुए अपराधों को दूसरों के सिर मढ़ते फिरने की कुटेव के कारण मनुष्य अपने ऐबों को नहीं देख सकता। जो कार्य उसने किया है उसका बुरा फल होने पर वह तुरन्त किसी दूसरे व्यक्ति को पकड़ने की कोशिश करने लगता है। अपने आलस्य द्वारा समय पर किये गये कार्यों की आलोचना होने पर वह अपने सिर का दोष दूसरों पर मढ़ देता है। यदि ऐसा करने के बदले वह अपने अपराध को मुक्त कंठ से स्वीकार कर ले तो संदेह नहीं कि वह दुबारा वैसा कार्य न करे।
अपने अपराध को स्वीकार करना यह उन्नति पथ के ऊपर मानों कई कदम आगे बढ़ना है। साधनों को दोष देते फिरना मूर्खता है। वास्तव में कैद का दंड देने वाला मजिस्ट्रेट नहीं है, तुम्हारे कुकार्य ही हैं। इसमें संदेह नहीं कि संसार में पाप-समृद्ध रूपी राक्षस नाना प्रकार के मनोहर रूप धारण कर मनुष्यों के चित्त को विकृत करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु उन्हें अपने हृदय में स्थान देना या न देना तुम्हारे काबू में है। जिस प्रकार भूतों का भय दृढ़चित्त मनुष्यों के हृदय में फटकने भी नहीं पाता उसी प्रकार सच्चरित्र मनुष्यों के पास आने में पाप-वासनाओं को भी बड़ा डर लगता है। लालच उसी के लिए है जो लालची है। निर्लोभी व्यक्ति को वह अपने फंदे में कभी नहीं फँसा सकता ।
अतएव इन कुवासनाओं को धिक्कारना और दोष देना निरर्थक है। मनुष्य की दृष्टि को भी हित करने वाले पाप-समूह की संसार में क्या आवश्यकता थी। भोले-भाले शुद्ध-हृदय मनुष्य को ठगना और उसे चक्कर में फंसाना निदान उसकी निन्दा करना और उसे दंड-पात्र ठहराना यह तो दुष्टों का माया-पूर्ण षड्यंत्र जंचता है। वास्तव में विचार करने से मालूम होता है कि पदार्थों की परीक्षा करने के लिए बहुधा भय-पूर्ण स्थलों का उपयोग किया जाता है। सोने की परीक्षा करने के लिए काली कसौटी चाहनी पड़ती है। इसी भाँति मनुष्य के हृदय की परीक्षा करने के हेतु ही पाप-वासनायें संसार में विद्यमान है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 महात्मा जेम्स ऐलन
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1950 पृष्ठ 9
अपने अपराध को स्वीकार करना यह उन्नति पथ के ऊपर मानों कई कदम आगे बढ़ना है। साधनों को दोष देते फिरना मूर्खता है। वास्तव में कैद का दंड देने वाला मजिस्ट्रेट नहीं है, तुम्हारे कुकार्य ही हैं। इसमें संदेह नहीं कि संसार में पाप-समृद्ध रूपी राक्षस नाना प्रकार के मनोहर रूप धारण कर मनुष्यों के चित्त को विकृत करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु उन्हें अपने हृदय में स्थान देना या न देना तुम्हारे काबू में है। जिस प्रकार भूतों का भय दृढ़चित्त मनुष्यों के हृदय में फटकने भी नहीं पाता उसी प्रकार सच्चरित्र मनुष्यों के पास आने में पाप-वासनाओं को भी बड़ा डर लगता है। लालच उसी के लिए है जो लालची है। निर्लोभी व्यक्ति को वह अपने फंदे में कभी नहीं फँसा सकता ।
अतएव इन कुवासनाओं को धिक्कारना और दोष देना निरर्थक है। मनुष्य की दृष्टि को भी हित करने वाले पाप-समूह की संसार में क्या आवश्यकता थी। भोले-भाले शुद्ध-हृदय मनुष्य को ठगना और उसे चक्कर में फंसाना निदान उसकी निन्दा करना और उसे दंड-पात्र ठहराना यह तो दुष्टों का माया-पूर्ण षड्यंत्र जंचता है। वास्तव में विचार करने से मालूम होता है कि पदार्थों की परीक्षा करने के लिए बहुधा भय-पूर्ण स्थलों का उपयोग किया जाता है। सोने की परीक्षा करने के लिए काली कसौटी चाहनी पड़ती है। इसी भाँति मनुष्य के हृदय की परीक्षा करने के हेतु ही पाप-वासनायें संसार में विद्यमान है।
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