त्याग और सेवा द्वारा सच्चे प्रेम का प्रमाण दीजिए।
जानना चाहिए कि प्रेम का अर्थ है-त्याग और सेवा। आप घर के हर एक व्यक्ति के पक्ष में स्वार्थों को छोड़िए और जिसे जिस की आवश्यकता है, उसे वह प्रदान कीजिए। वृद्ध आप से शारीरिक सेवा चाहते हैं, बालक आप के साथ हँसना-खेलना चाहते हैं, भाइयों को आपका आर्थिक सहयोग चाहिए,स्त्री को आपके स्नेह पूर्ण वार्तालाप की आवश्यकता है।
जो जिस वस्तु को चाहता है, उसे वह प्रदान कीजिए परंतु ध्यान रखिए प्रेम कोई व्यापार नहीं है। एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से माँगने की नीति प्रेमी को शोभा नहीं दे सकती। वृद्धों से आप आशा मत करिए कि वे आपकी प्रशंसा करें। न भाइयों से यह चाहिए कि कमाऊ होने के नाते आपको कुछ अधिक महत्त्व दें। स्त्री यदि आपकी इच्छानुसार सेवा-सुभूषा करने में असमर्थ है, तो उस पर झुंझलाएँ मत,क्योंकि आप प्रेमी बनने जा रहे है। प्रेमी देकर माँग नहीं सकता।
दुनियाँ में सारे झगड़ों की जड यह है कि हम देते कम हैं और माँगते ज्यादा हैं। हमें चाहिए यह किं दें बहुत और बदला बिलकुल न माँगे या बहुत कम पाने की आशा रखें। यह नीति ग्रहण करते ही हमारे आसपास के सारे झगड़े मिट जाते हैं। प्रेमी त्याग करता है- उसका त्याग बेकार नहीं जाता, वरन हजार होकर लौट आता है। झगड़ा करने पर जितना बदला मिलता है, उससे अनेक गुना उसे बिना माँगे मिल जाता है। कदाचित कुछ कम भी मिले तो प्रेम से उत्पन्न होने वाले आंतरिक आनंद के मुकाबिले में वह कमी नगण्य है। निरंतर देते रहने का स्वभाव जिसके ह्दयों में स्थान कर लेता है, वह जानते हैं कि स्वर्गीय निर्धन आत्माएँ हर्षान्दोलित करने में कितनी समर्थ हैं। त्याग की दैवी वृत्तियाँ हमारे आसपास के वातावरण को स्वर्गीय संपदाओं से भर देती हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ २०