बुधवार, 7 नवंबर 2018

👉 साधना की अनुकूलता

🔶 साधना के समय साधक को साहस और धैर्य रखने की आवश्यकता है। सिद्धि मिलने में कितना भी समय क्यों ना लगे साधक को घबराना नहीं चाहिए। यहाँ तक कि यदि सिद्धि मिलने के पहले कोई अनर्थकारी घटना भी घट जावे तब भी घबराकर अपनी साधना नहीं छोड़ देनी चाहिए। भगवान सर्वशक्ति मान हैं, इसलिए वे कितने ही भयंकर गड्ढे में चाहे क्यों न फेंक दें फिर भी किसी न किसी दिन वे हमारा वहाँ से अवश्य उद्धार करेंगे यह निश्चित है।

🔷 साधक के लिए उत्तेजना और व्याकुलता भी छोड़ने जैसी है। कभी कभी साधक को दिखाई देता है। जैसे कि वह सिद्धि के क्षेत्र में बहुत दूर पहुँच गया है और कभी भी पीछे मालूम होने लगता है कि वह जहाँ का तहीं है, तिलमात्र भी आगे नहीं बढ़ा ऐसे ही अवसरों पर उत्तेजना या घबराहट आ जाती है। लेकिन जिन लोगों का आत्मसमर्पण का व्रत सम्पन्न हो चुका होता है वे इन सबसे मुक्त रहते हुए निश्चित और संतुष्ट रहते हैं। और इसीलिए उन्हें सिद्धि भी शीघ्र ही प्राप्त होती है।

🔶 यद्यपि साधना का काम अत्यन्त कठिन है। पर जो आरंभ में दृढ़ विश्वास के साथ अग्रसर होते हैं उनके लिए यह मार्ग अत्यन्त सरल हो जाता है। क्योंकि दृढ़ता होने पर मनुष्य की प्रकृति साधना के अनुकूल हो जाती है और साधना की अनुकूलता ही सिद्धि प्राप्ति का साधन है।

✍🏻 श्री अरविन्द
📖 अखण्ड ज्योति – नवम्बर 1948 पृष्ठ 5

👉 दीया धरती का, ज्योति आकाश की

🔶 दीपावली पर दीये जलाते समय दीये के सच को समझना निहायत जरूरी है। अन्यथा दीपावली की प्रकाशपूर्ण रात्रि के बाद केवल बुझे हुए मिट्टी के दीये हाथों में रह जाएँगे। आकाशीय-अमृत ज्योति खो जाएगी। अन्धेरा फिर से सघन होकर घेर लेगा। जिन्दगी की घुटन और छटपटाहट फिर से तीव्र और घनी हो जाएगी। दीये के सच की अनुभूति को पाए बिना जीवन के अवसाद और अन्धेरे को सदा-सर्वदा के लिए दूर कर पाना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी है।
  
🔷 दीये का सच दीये के स्वरूप में है। दीया भले ही मरणशील मिट्टी का हो, परन्तु ज्येाति तो अमृतमय आकाश की है। जो धरती का है, वह धरती पर ठहरा है, लेकिन ज्योति तो निरन्तर आकाश की ओर भागी जा रही है। ठीक दीये की ही भाँति मनुष्य की देह भी मिट्टी ही है, किन्तु उसकी आत्मा मिट्टी की नहीं है। वह तो इस मिट्टी के दीये में जलने वाली अमृत ज्योति है। हालांकि अहंकार के कारण वह इस मिट्टी की देह से ऊपर नहीं उठ पाती है।
  
🔶 मिट्टी के दीये में मनुष्य की जिन्दगी का बुनियादी सच समाया है। ‘अप्प दीपो भव’ कहकर भगवान् बुद्ध ने इसी को उजागर किया है। दीये की माटी अस्तित्त्व की प्रतीक है, तो ज्योति चेतना की। परम चेतना परमात्मा की करूणा ही स्नेह बनकर वाणी की बातों को सिक्त किए रहती है। चैतन्य ही प्रकाश है, जो समूचे अस्तित्त्व को प्रभु की करूणा के सहारे सार्थक करता है।
  
🔷 मिट्टी सब जगह सहज सुलभ और सबकी है, किन्तु ज्योति हर एक की अपनी और निजी है। केवल मिट्टी भर होने से कुछ नहीं होता। इसे कुम्भकार गुरु के चाक पर घूमना पड़ता है। उसके अनुशासन के आँवे में तपना पड़ता है। तब जाकर कहीं वह सद्गुरु की कृपा से परमात्मा की स्नेह रूपी करुणा का पात्र बनकर दीये का रूप ले लेती है। ऐसा दीया, जिसमें आत्म ज्योति प्रकाशित होती है। दीपावली पर दीये तो हजारों-लाखों जलाये जाते हैं, पर इस एक दीये के बिना अन्धेरा हटता तो है, पर मिटता नहीं। अच्छा हो कि इस दीपावली में दीये के सच की इस अनुभूति के साथ यह एक दीया और जलाएँ, ताकि इस मिट्टी के देह दीप में आत्मा की ज्योति मुस्करा सके।

✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप

👉 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं























जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई  में  भी  मेले  हों,
आनंद की आभा होती है
उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

       जब प्रेम के दीपक जलते हों
       सपने जब सच में बदलते हों,
       मन में हो मधुरता भावों की
       जब लहके फ़सलें चावों की,
       उत्साह की आभा होती है
       उस रोज़ दिवाली होती है ।

जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।

       जब तन-मन-जीवन सज जाएं
       सद्-भाव  के बाजे बज जाएं,
       महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
      मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
      तृप्ति  की  आभा होती  है
      उस रोज़ 'दिवाली' होती है .।               

आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी
आपको सादर सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

💐💐 जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें ।💐💐

युवाओं के पथ प्रदर्शक,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई ।।
नए युग के हे मार्गदर्शक, जन्म दिवस पर तुम्हें बधाई ।।

वैज्ञानिक अध्यात्म वाद को, आपसे संबल मिला है ।
अध्यात्म से उज्जवल भविष्यत औ सुनहरा कल मिला है।।
आप से ही इस धरा ने, धर्म की वैज्ञानिकता पाई।
युवाओं के पथ प्रदर्शक,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।

धर्म आडंबर नहीं, सत्कर्म है, सब सीख रहे हैं।
राजनीति से धर्म ऊपर, आप से सब सीख रहे हैं।।
 आप ने ही देश में, त्याग की गरिमा बताई ।
युवाओं के पथ प्रदर्शक,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।

युग गीता से युवाओं को, एक नया आयाम मिला है।
नवधा भक्ति से जन-जन को, नए युग का राम मिला है ।।
स्वयं को ऊंचा उठाने, ध्यान की विद्या बताई।
युवाओं के पथ प्रदर्शक,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।

उमेश यादव शांतिकुंज हरिद्वार

👉 आज का सद्चिंतन 7 November 2018


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