जिसका हृदय विशाल है, जिसमें उदारता और परमार्थ की भावना विद्यमान है। समाज, युग, देश, धर्म, संस्कृति के प्रति अपने उत्तरदायित्व की जिसमें कर्तव्य बुद्धि जम गई होगी, हमारी आशा के केन्द्र यही लोग हो सकते हैं और उन्हें ही हमारा सच्चा वात्सल्य भी मिल सकता है। बातों से नहीं काम से ही किसी की निष्ठा परखी जाती है और जो निष्ठावान् हैं, उनको दूसरों का हृदय जीतने में सफलता मिलती है हमारे लिए भी हमारे निष्ठावान् परिजन ही प्राणप्रिय हो सकते हैं।
गाल बजाने वाले पर उपदेश कुशल लोगों द्वारा दिव्य समाज की रचना यदि संभव होता तो वह अब से बहुत पहले ही सम्पन्न हो चुका होता। जरूरत उन लोगों की है, जो आध्यात्मिक आदर्शों की प्राप्ति को जीवन की सबसे बड़ी सफलता अनुभव करें और अपनी आस्था की सच्चाई प्रमाणित करने के लिए बड़ी से बड़ी परीक्षा का उत्साहपूर्ण स्वागत करें।
अपनी इच्छा, बड़प्पन, कामना, स्वाभिमान को गलाने का नाम समर्पण है। अपनी इमेज विनम्र से विनम्र बनाओ। मैनेजर की, इंचार्ज की, बॉस की नहीं, बल्कि स्वयंसेवक की। जो स्वयंसेवक जितना बड़ा है, वह उतना ही विनम्र है, उतना ही महान् बनने के बीजांकुर उसमें हैं। तुम सबमें वे मौजूद हैं। अहं की टकराहट बंद होते ही वे विकसित होना आरम्भ हो जाएंगे।
गाल बजाने वाले पर उपदेश कुशल लोगों द्वारा दिव्य समाज की रचना यदि संभव होता तो वह अब से बहुत पहले ही सम्पन्न हो चुका होता। जरूरत उन लोगों की है, जो आध्यात्मिक आदर्शों की प्राप्ति को जीवन की सबसे बड़ी सफलता अनुभव करें और अपनी आस्था की सच्चाई प्रमाणित करने के लिए बड़ी से बड़ी परीक्षा का उत्साहपूर्ण स्वागत करें।
अपनी इच्छा, बड़प्पन, कामना, स्वाभिमान को गलाने का नाम समर्पण है। अपनी इमेज विनम्र से विनम्र बनाओ। मैनेजर की, इंचार्ज की, बॉस की नहीं, बल्कि स्वयंसेवक की। जो स्वयंसेवक जितना बड़ा है, वह उतना ही विनम्र है, उतना ही महान् बनने के बीजांकुर उसमें हैं। तुम सबमें वे मौजूद हैं। अहं की टकराहट बंद होते ही वे विकसित होना आरम्भ हो जाएंगे।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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