शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 9 Feb 2024

🔸 प्रेम गंगा की भाँति वह पवित्र जल है, जिसे जहाँ छिडका जाय, वहीं पवित्रता पैदा करेगा। उसमें आदर्शेंकी अविच्छिन्नता जुड़ी रहती है। आदर्श रहित प्यार को ही मोह कहते हैं। दूरदर्शिता, विवेकशीलता, शालीनता, पवित्रता, सदाशयता जैसे गुणों का भरपूर समावेश प्रेम में होता है। उसमें इन्हीं गुणों की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहता है। मोह इन विशेषताओं से रहित होता है।

🔹 दृष्टिकोण में संयम, सहकार, सन्तुलन स्नेह, सद्भाव, श्रम, साहस जैसे सद्गुणों का महत्व समझने और अपने स्वभाव, व्यवहार को सज्जनोचित बनाने की उपयोगिता समाविष्ट हो सके, तो समझना चाहिए कि आज गई- गुजरी स्थिति होने पर भी कल इन्हीं विशेषताओं के कारण उज्ज्वल भविष्य का सरंजाम जुटाना सुनिश्चित है।   

🔸 धर्म व्यक्तित्व के गहन क्षेत्र में प्रवेश करके भावश्रद्धा, प्रखर प्रज्ञा और आदर्श कर्म- निष्ठा को उभारकार मनुष्य में देवत्व का उदय करता है। भ्रष्टता और दुष्टता पर शासकीय नियन्त्रण नगण्य जितना ही हो पाता है। धर्म चरित्र और चिन्तन में उत्कृष्टता भर देने और समाज को सत्परम्परा अपनाने के लिए बाधित करने वाला एक प्रचण्ड अनुशासन है। ऐसा अनुशासन जिसके सामने न अनीति ठहरती है, न उद्दण्ड आततायी उच्छृंखलता। 
 
🔹 ऊँचे उद्देश्यों का होना सराहनीय है, पर उनकी सफलता के लिए ऐसे कर्मठ समर्थकों की मण्डली चाहिए जो लक्ष्य के प्रति, इस प्रकार समर्पित हो, मानो वही ईमान है और वही भगवान है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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