गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

👉 क्या बनना चाहेंगे आप:-

कुछ दिनों से उदास रह रही अपनी बेटी को देखकर माँ ने पूछा, ” क्या हुआ बेटा, मैं देख रही हूँ तुम बहुत उदास रहने लगी हो…सब ठीक तो है न ?”

”कुछ भी ठीक नहीं है माँ … ऑफिस में बॉस की फटकार, दोस्तों की बेमतलब की नाराजगी ….पैसो की दिक्कत …मेरा मन बिल्कुल अशांत रहेने लगा है माँ, जी में तो आता है कि ये सब छोड़ कर कहीं चली जाऊं ….”, बेटी ने रुआंसे होते हुए कहा।

माँ ये सब सुनकर गंभीर हो गयीं और बेटी का सिर सहलाते हुए किचन में ले गयीं।

वहां उन्होंने तीन पैन उठाये और उनमे पानी भर दिया उसके बाद उन्होंने पहले पैन में कैरट, दूसरे में एग्स और तीसरे में कुछ कॉफ़ी बीन्स डाल दी.
फिर उन्होंने तीनो पैन्स को चूल्हे पे चढ़ा दिया और बिना कुछ बोले उनके खौलने का इंतज़ार करने लगीं.
लगभग बीस मिनट बाद उन्होंने गैस बंद कर दी, और फिर एक – एक कर के कैरट्स और एग्स अलग-अलग प्लेट्स में निकाल दिए और अंत में एक मग में कॉफ़ी उड़ेल दी.

“बताओ तुमने क्या देखा “, माँ ने बेटी से पूछा .
“कैरट्स, एग्स , कॉफ़ी … और क्या ??…लेकिन ये सब करने का क्या मतलब है .”, जवाब आया.

माँ बोलीं,” मेरे करीब आओ …और इन कैरट्स को छू कर देखो !”
बेटी ने छू कर देखा, कैरट नर्म हो चुके थे .
“अब एग्स को देखो ..”
बेटी ने एक एग हाथ में लिया और देखने लगी …एग बाहर से तो पहले जैसा ही था पर अन्दर से सख्त हो चुका-था.
और अंत में माँ ने कॉफ़ी वाला मग उठा कर देखने को कहा ….

” …इसमे क्या देखना है…ये तो कॉफ़ी बन चुका है …लेकिन ये सब करने का मतलब क्या है ….???’, बेटी ने कुछ झुंझलाते हुए पूछा.

माँ बोलीं , ” इन तीनो चीजों को एक ही तकलीफ से होकर गुजरना पड़ा — खौलता पानी. लेकिन हर एक ने अलग अलग तरीके से रियेक्ट किया .
कैरट पहले तो ठोस था पर खौलते पानी रुपी मुसीबत आने पर कमजोर और नरम पड़ गया, वहीँ एग पहले ऊपर से सख्त और अन्दर से सॉफ्ट था पर मुसीबत आने के बाद उसे झेल तो गया पर वह अन्दर से बदल गया, कठोर हो गया, सख्त दिल बन गया ….लेकिन कॉफ़ी बीन्स तो बिल्कुल अलग थीं …उनके सामने जो दिक्कत आयी उसका सामना किया और मूल रूप खोये बिना खौलते पानी रुपी मुसीबत को कॉफ़ी की सुगंध में बदल दिया…

” तुम इनमे से कौन हो?” माँ ने बेटी से पूछा .

” जब तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई दिक्कत आती है तो तुम किस तरह रियेक्ट करती हो? तुम क्या हो …कैरट, एग या कॉफ़ी बीन्स ?”

बेटी माँ की बात समझ चुकी थी, और उसने माँ से वादा किया कि वो अब उदास नहीं होगी और विपरीत परिस्थितियों का सामना अच्छे से करेगी।

हमारे साहित्य को घर घर पहुँचाये
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👇👇👇
https://youtu.be/tS_tnMrIM4U

👉 आत्मनिर्माण के पांच कार्यक्रम

यदि हम अपने व्यक्तित्व को श्रेष्ठता के ढांचे में ढालने के लिए सचमुच उत्सुक एवं उद्यत है तो अपने दैनिक कार्यक्रम में उत्कृष्ट विचारधाराओं को मस्तिष्क में बैठाने का एक नियमित विभाग बना ही लेना चाहिए। मन लगे चाहे न लगे, फुर्सत मिले चाहे न मिले, इसके लिए बलपूर्वक, हठपूर्वक समय निकालना चाहिए।

नित्य नियमित ईश्वर उपासना के बारे में हम सदा से कहते रहे हैं। चरित्र निर्माण की आधारशिला ही आस्तिकता है। ईश्वर विश्वास छोड देने से मनुष्य अंकुश रहित उन्मत्त हाथी की तरह  आचरण करता है, अपने लिए तथा दूसरों के लिए विपत्ति का कारण बनता है।इसलिए हममें से हर एक को किसी न किसी रूप में ईश्वर उपासना नित्य ही करनी चाहिए।

प्रत्येक पाठक को व युग निर्माण के प्रत्येक सदस्य को

( 1 ) अपने दैनिक जीवन में उपासना को स्थान देना चाहिए।
(2) स्वाध्याय के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित करना चाहिए।
(3) नित्य युग निर्माण सत्संकल पढना चाहिए।
(4) सोते समय आत्मनिरिक्षण का कार्यक्रम नियमित रूप से चलाना चाहिए।
(5) दिन में समय समय पर कुविचारो से लडते रहने की तैयारी करनी चाहिए।

ये पांच कार्यक्रम आत्मनिर्माण की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। युग निर्माण अपने आप से ही आरंभ करना है, इसलिए ये पांच कार्य जितनी जल्दी आरंभ किए जा सके उतना उत्तम है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1963  पृष्ठ 24 25

👉 नारी का वर्चस्व- विश्व का उत्कर्ष

नर और नारी यों दोनों ही भगवान की दायीं-बायीं ऑंख, दायीं बायीं भुजा के समान हैं। उनका स्तर, मूल्य, उपयोग, कर्त्तव्यत, अधिकार पूर्णत: समान है। फिर भी उनमें भावनात्मक दृष्टि से कुछ भौतिक विशेषताएँ हैं। नर की प्रकृति में परिश्रम, उपार्जन, संघर्ष, कठोरता जैसे गुणों की विशेषता है वह बुद्धि और कर्म प्रधान है। नारी में कला, लज्जा, शालीनता, स्नेह, ममता जैसे सद्गुण हैं वह भाव और सृजन प्रधान है। यह दोनों ही गुण अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण है। उनका समन्वय ही एक पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है।

सामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नर और नारी की इन विशेषताओं का उपयोग किया जाता है। युद्ध कौशल में पुरुष की प्रकृति ही उपयुक्त थी सो उसे आगे रहना पड़ा। जो वर्ग आगे रहता है, नेतृत्व भी उसी के हाथ में आ जाता है। जो वर्ग पीछे रहते हैं उन्हें अनुगमन करना पड़ता हैं। परिस्थितियों ने नर-नारी के समान स्तर को छोटा-बड़ा कर दिया, पुरुष को प्रभुता मिली - नारी उसकी अनुचरी बन गई। जहॉं प्रेम सद्भाव की स्थिति थी वहॉं वह उस आधार पर हुआ और जहॉं दबाव और विवश्सता की स्थिति थी वहाँ दमन पूर्वक किया गया। दोनों ही परिस्थितियों में पुरुष आगे रहा और नारी पीछे।

नये युग के लिये हमें नई नारी का सृजन करना होगा, जो विश्व के भावनात्मक क्षेत्र को अपने मजबूत हाथों में सम्भायल सके और अपनी स्वाभाविक महत्ता का लाभ समस्त संसार को देकर नारकीय दावानल में जलने वाले कोटि-कोटि नर-पशुओं को नर-नारायण के रूप में परिणत करना सम्भव करके दिखा सकें। नारी के उत्कर्ष - वर्चस्व को बढ़ाकर उसे नेतृत्व का उत्तरदायित्व जैसे-जैसे सौंपा जायेगा वैसे-वैसे विश्व शान्ति की घड़ी निकट आती जायेगी ।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (४.२८)

ज्ञान रथ चलाने के लिये समय निकालिये
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👇👇👇
https://youtu.be/VVgZ3pa-iMs

👉 Empower women, empower the world

Man and woman are like the two eyes or the two shoulders of our creator. They are identical in their level, value, utility, responsibilities, as well as rights. Generally speaking, industry, endurance, toughness, and a mentality of providing for the family are attributes more predominant in man, signifying intelligence and action. On the flip side, art, humility, compassion, and love are more prominent in woman, signifying creation and emotional intelligence. Both of these characteristics have equal importance and it is their confluence that creates a complete human being.

The important needs of the time are met by calling upon these manly as well as womanly characteristics. Traditionally, the manly qualities were needed to fight wars, and hence men fought wars. Leadership naturally fell into their hands, rendering women as the followers. Such circumstances created a divide and a hierarchy between the two sexes. Man became the leader, woman became the follower and the worshipper. Whether in the guise of worship and love for the man, or in an environment where she was helpless and explicitly suppressed, woman was exploited; man stayed ahead.

For the new era, we must develop the new woman, who can manage and mould the emotional landscape of the world with her strong hands. We must develop the woman who can use her innate abilities and demonstrate that it is indeed possible to transform the hell of subhuman existence into a heaven of grand-hearted humanness. To promote the ascent of woman toward a position of power and responsibility is to inch closer and closer to the goal of world peace.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 YUG NIRMAN YOJANA – DARSHAN, SWAROOP & KARYAKRAM -66 (4.28)

👉 आज का सद्चिंतन 21 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 Feb 2019


👉 सिंह शावक गीदडों के बीच

एक गीदड़ ने सिंह के बच्चे को नवजात अवस्था में कहीं पड़ा देखा, उठाया और उसे अपने बच्चों के साथ पालने लगा। सिंह शावक गीदड़ों के बच्चों के साथ पलते- पलते उस परिकर में विकसित होते कभी स्वयं को नहीं पहचान पाया। एक बार यह परिवार शिकार को गया। मरे हाथी पर जैसे ही खाने के लिए टूटे वैसे ही स्वयं वनराज सिंह वहाँ पधार गये। उन्हें देखते ही गीदड़ परिवार कूच कर गया पर सिंह की पकड़ में सिंह शावक आ गया। सिंह ने उससे पूछ- "वह कैसे उनके साथ था और भयभीत क्यों होता है?"

शावक समझ ही नहीं पा रहा था कि यह सब क्या है? उसे भय से काँपते देख वनराज सब समझ गये। उन्होनें उसे पानी में अपनी परछाई दिखाई वे भी स्वयं अपना चेहरा। स्वयं दहाड़े और उसे भी स्वयं दहाड़ने को कहा। तब उसे अपने विस्मृत आत्म- स्वरूप का भान हुआ और वह सिंह बिरादरी में शामिल हो उमुक्त- भयमुक्त विचरण करने लगा।

ऐसे लोगों की संख्या अधिक होती है जो अपना स्वरूप भूलकर दिवास्वप्न अधिक देखते हैं।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १


ज्ञान के आभाव की आवश्यकता पूरी की जाए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👇👇👇
https://youtu.be/zEdJw7vEYXM

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 16 से 17

जिज्ञासां नारदस्याथ ज्ञात्वा संमुमुदे हरि:।
उवाच च महर्षे त्वमात्थ यन्मे मनीषितम्  ॥१६॥
युगानुरूपं सामर्थ्य पश्यन्नन्न प्रसङ्गके ।
निर्धारणस्य चर्चाया व्यापकत्वं समीप्सितम् ॥१७॥

टीका- नारद की जिज्ञासा जानकर भगवान् बहुत प्रसन्न हुए और बोले-''देवर्षि आप तो हमारे मन की बात कह रहे हूँ । समय की आवश्यकता को देखते हुए इस प्रसंग पर चर्चा होना और निर्धारण को व्यापक किया जाना आवश्यक भी है ॥१६-१७॥"

व्याख्या- जो जिज्ञासा भक्त के मन में धुमड़ रही थी वही भगवान् के भी अंतःकरण में विद्यमान थी, भक्त हमेशा भगवान् की आकांक्षा के अनुरूप ही विचारते हैं एवं अपनी गतिविधियों का खाका बनाते हैं । सच्चे भक्त की कसौटी पर देवर्षि खरे उतरते हैं, जभी वे जन-सामान्य की समस्या को लेकर प्रभु से मार्गदर्शन माँगते हैं ।

ऋषिवर नारद से श्रेष्ठ और हो ही कौन सकता था जो सामयिक आवश्यकतानुसार अपने प्रभु के मन की इच्छा जानें व उनकी प्रेरणाओं-समस्याओं के समाधानों को जन-जन के गले उतार सकें।
 
.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 9

आपको संपर्क बढ़ाना पड़ेगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👇👇👇
https://youtu.be/ys6_JpyYi8Y

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...