🔷 अधिक धन जोड़ना, अधिक भोग भोगना, यह दो ही कार्यक्रम आज कल सुसम्पन्न व्यक्तियों के देखे जाते हैं। यह मूर्खता का मार्ग है। गायत्री का ‘योनः’ शब्द कहता है कि इस खतरनाक मार्ग पर चलना किसी भी प्रकार बुद्धिमत्ता का द्योतक नहीं है। विद्रोही, उद्दंड, उच्छृंखल, मदोन्मत्त अफसर कुछ समय के लिए अपनी हेकड़ी के नशे में चूर होकर अट्टहास कर सकते हैं पर कुछ ही क्षण बाद उन्हें अपने अविवेक का कठोर मूल्य चुकाना पड़ता है। समृद्ध व्यक्ति यदि आज अपने धन, बुद्धि, विद्या, वैभव, ऐश्वर्य पर इतराते हैं और उनका उपयोग केवल मात्र “अधिक संचय और अधिक भोग“ में ही करना चाहते है तो भले ही आज उनका रास्ता कोई न रोके, वे अट्टहास करते हुए अपनी इस गतिविधि को जारी रखें पर वह दिन दूर नहीं जब उन्हें अपनी मदहोशी का पश्चाताप मर्मान्तक वेदनाओं और पीड़ाओं के साथ करना पड़ेगा।
🔶 तुम्हारे भाग्य में आशावाद का स्वर्ग आया है न कि निराशावाद का नर्क। तुम अपनी जीवन यात्रा में मंदगति से घिसटते हुए पशुवत् पड़े रहने के लिए जगत में प्रविष्ट नहीं हुए हो। अपने को अशक्त असमर्थ मानने वाले डरपोक व्यक्तियों की श्रेणी में तुम नहीं हो। तुम दुर्बल अन्तःकरण वाले निराशावादियों की तरह निःसार वस्तुओं के कुत्सित चिंतन में निष्प्रयोजन अपनी शक्तियों का अपव्यय नहीं करते। संसार में तुम उस महान पद पर आसीन होगे जिस पर संसार के अन्य प्रतापी पुरुष होते आये हैं। अभी तुम इस स्थिति में पड़े हो तो क्या, शीघ्र ही उच्चतम विकास के दिव्य प्रदेश में तुम प्रविष्ट होने वाले हो। तुम सर्वेश्वर के पवित्र अंश हो और तुम्हें प्रकृति ने अपनी इष्ट-सिद्धि के लिए पर्याप्त साधन और सामर्थ्य प्रदान किए हैं। तुम एक बार प्रयत्न तो करो।
🔷 अनेक व्यक्ति थोड़ी सी कठिनाई आने पर अत्यन्त अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, घबराने लगते हैं, और ठोकर पर ठोकर खाते हैं। निराशा उनके जीवन को भार बना देती है। हमारी असफलताएँ अधिकाँश में निराशा के अभद्र विचारों से ही प्राप्त होती है और वे अयोग्य मंत्रणाओं, भयपूर्ण कल्पनाओं के ही फल हैं। यदि हम पूर्ण रूप से कल्पना को उत्तम वस्तुओं की ओर चलाया करें और चिंता, दुर्बलता, शंका, निराशा के विचारों से हटकर आशा और हिम्मत के उत्पादक वातावरण में रखना सीख लें तो हमारे जीवन का स्त्रोत एक आनन्दमय जगत में प्रवाहित होने लगे। निराशा एक भयंकर मानसिक रोग है। इससे मुक्ति पाने के लिए विचारों का रुख बदलने की परम आवश्यकता है। धीरे-धीरे अपने हृदय में नाउम्मीदी कमजोरी और निराशा के भावों के स्थान पर इनके प्रतिपक्षी-साहस, हिम्मत, सफलता और आशा के उत्साह-वर्द्धक भावों को जमाना चाहिए।
🔶 तुम्हारे भाग्य में आशावाद का स्वर्ग आया है न कि निराशावाद का नर्क। तुम अपनी जीवन यात्रा में मंदगति से घिसटते हुए पशुवत् पड़े रहने के लिए जगत में प्रविष्ट नहीं हुए हो। अपने को अशक्त असमर्थ मानने वाले डरपोक व्यक्तियों की श्रेणी में तुम नहीं हो। तुम दुर्बल अन्तःकरण वाले निराशावादियों की तरह निःसार वस्तुओं के कुत्सित चिंतन में निष्प्रयोजन अपनी शक्तियों का अपव्यय नहीं करते। संसार में तुम उस महान पद पर आसीन होगे जिस पर संसार के अन्य प्रतापी पुरुष होते आये हैं। अभी तुम इस स्थिति में पड़े हो तो क्या, शीघ्र ही उच्चतम विकास के दिव्य प्रदेश में तुम प्रविष्ट होने वाले हो। तुम सर्वेश्वर के पवित्र अंश हो और तुम्हें प्रकृति ने अपनी इष्ट-सिद्धि के लिए पर्याप्त साधन और सामर्थ्य प्रदान किए हैं। तुम एक बार प्रयत्न तो करो।
🔷 अनेक व्यक्ति थोड़ी सी कठिनाई आने पर अत्यन्त अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, घबराने लगते हैं, और ठोकर पर ठोकर खाते हैं। निराशा उनके जीवन को भार बना देती है। हमारी असफलताएँ अधिकाँश में निराशा के अभद्र विचारों से ही प्राप्त होती है और वे अयोग्य मंत्रणाओं, भयपूर्ण कल्पनाओं के ही फल हैं। यदि हम पूर्ण रूप से कल्पना को उत्तम वस्तुओं की ओर चलाया करें और चिंता, दुर्बलता, शंका, निराशा के विचारों से हटकर आशा और हिम्मत के उत्पादक वातावरण में रखना सीख लें तो हमारे जीवन का स्त्रोत एक आनन्दमय जगत में प्रवाहित होने लगे। निराशा एक भयंकर मानसिक रोग है। इससे मुक्ति पाने के लिए विचारों का रुख बदलने की परम आवश्यकता है। धीरे-धीरे अपने हृदय में नाउम्मीदी कमजोरी और निराशा के भावों के स्थान पर इनके प्रतिपक्षी-साहस, हिम्मत, सफलता और आशा के उत्साह-वर्द्धक भावों को जमाना चाहिए।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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