गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

👉 पूज्य गुरुदेव ने की प्राणरक्षा

🔵 हमारा जन्म उड़ीसा में हुआ था। जब मैं करीब २४- २५ वर्ष का था, हमारे गाँव में भागवत् कथा करने एक सन्त श्री रामचरणदास जी (मौनी बाबा)आते थे। मैं भी भागवत सुनता था। उसमें मैंने सुना कि शरीर नाशवान् है। यह सुन कर मन में आता रहता था, यदि शरीर नाशवान् है तो इसे रख कर क्या करूँगा।

🔴 एक दिन होली की पूर्णिमा रात्रि में, हाथ में जहर लेकर, शरीर को नष्ट करने का संकल्प लेकर सुनसान समुद्र के किनारे जा बैठा। जैसे ही जहर खाने (पीने) का प्रयास किया तो मेरे हाथ में झटका सा लगा। विषपात्र हाथ से छूट कर गिर गया। मैंने सोचा इस सुनसान में कौन आ गया! देखा लम्बा कुर्ता धोती पहने एक आदमी बोला- क्या पागल हो गये हो? इसको नष्ट करने का अधिकार तुम्हें नहीं है। यह बात सुनकर मैं अचरज में पड़ गया। कोई आदमी यहाँ था नहीं। यह कहाँ से आ गया। मैंने पूछा- आप कौन हैं ?? वह आदमी मुस्कुराया और बोला- आपको इस जीवन में बहुत काम करना है, जीवन को ऐसे नष्ट करने के लिए तुम्हारा जन्म नहीं हुआ है। यह बात बोलकर वह आदमी धीरे- धीरे समुद्र के अन्दर जाने लगा। जल में उसके पैर जमीन में चलने की तरह पड़ रहे थे। मैं ने भी पानी में उतरकर पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन कुछ दूर जाकर मैं समुद्र की लहर में डूब गया और बेहोश अवस्था में समुद्र के किनारे आ गया। ईश्वर कृपा से जब मुझे होश आया तब चारों तरफ से मछुआरे घेरे खड़े थे। मुझे अनुभव हो रहा था कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था।

🔵 मछुआरों को जब मैंने अपना परिचय दिया तो उन्होंने मुझे घर पहुँचा दिया। जब मौनी बाबा फिर से गाँव में भागवत् कथा करने आए तो उन्होंने मुझे बुलवाया। फिर मैंने उनसे दीक्षा भी ले ली। करीब दो वर्ष बाद मैं जगन्नाथपुरी रथ यात्रा देखने गया था। उसी भीड़ में फिर मेरी मुलाकात मौनी बाबा से हो गई। वे मुझे एकांत में ले गए और राष्ट्र निर्माण के बारे में विचार विमर्श करने लगे। उन्होंने कहा- आपको मत्त जी के पास जाना है। वे हरिद्वार में हैं। गायत्री के बारे में, राष्ट्र निर्माण के बारे में समझाते हैं। वर्ष १९९६ में पहली बार गायत्रीतीर्थ शान्तिकुञ्ज हरिद्वार आया, गुरु जी (मत्त जी) के बारे में बाबाजी से सुन रखा था। मैं दो घंटे शान्तिकुञ्ज का दर्शन करता रहा। अचानक मुझे स्मरण हो आया, जहर पीने का प्रयास करते समय जिस व्यक्ति को मैंने देखा था, वही स्वरूप आचार्य श्रीराम शर्मा जी के चित्र में पाया। मैं बार- बार सोचने लगा कि इन्होंने ही मेरे प्राण की रक्षा की है। इस शरीर से वे क्या कार्य कराएँगे वही जाने।

🔴 मैं गौ रक्षा समिति में १९९८ में काम कर रहा था। उड़ीसा से बिहार प्रांत में आया। मैं चकाई में गौ रक्षा हेतु कार्य करने लगा। उसमें गायत्री परिवार के परिजन भी शामिल हो गए। धीरे- धीरे सम्पर्क बढ़ता गया। २००९ में ट्रस्ट का गठन हुआ। अब चकाई में गौशाला निर्माण, प्राकृतिक चिकित्सा के साथ- साथ आयुर्वेदिक औषधि के निर्माण के कार्य में लगा हुआ हूँ। मैं गुरु कृपा से इस गायत्री परिवार से जुड़ गया हूँ। परम पूज्य गुरुदेव के विचारों पर चलकर समाज सेवा के कार्य में संलग्न हूँ। जिन्होंने मेरी प्राण रक्षा की है, यह जीवन अब उन्हीं का है।                    
  
🌹 उड़िया बाबा जमुई (बिहार)
🌹 अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Samsarn/won/pran

👉 आज का सद्चिंतन 21 April 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 April 2017


👉 शाश्वत सौन्दर्य का बोध

🔵 मैंने पूछा-‘‘मैं किसे प्यार करूँ?’’ -तो ध्यान की गहराइयों से एक आवाज आयी-‘‘उन्हें, जिन्हें लोग दलित, गर्हित और गया-गुजरा समझते हैं। जो निन्दा और भर्त्सना के पात्र हो चुके हैं। उनके मित्र बनकर उन्हें प्यार और प्रकाश दो। तुम्हारा गौरव इस पर नहीं कि तुम्हें संसार में बहुत से लोग प्यार करते हैं, वरन् तुम संसार को प्यार करके गौरवान्वित होगे।’’

🔴 मैंने कहा-‘‘लोग कहते हैं कि जो त्वचा, वर्ण और शरीर से सुन्दर नहीं हैं, उन्हें देखने से सुख और शान्ति नहीं मिलती।’’ मेरी प्यारी आत्मा ने कहा-‘‘तुम असुन्दर के माध्यम से उस शाश्वत सौन्दर्य की खोज करो, जो त्वचा, वर्ण और शरीर के धुँधले बादलों में आकाश की नीलिमा के सदृश, प्रच्छन्न शान्ति लिए बैठा है। जब बाह्य आवरणों का धुँधला बादल छट जाएगा तो सौन्दर्य के अतिरिक्त कुछ रह ही नहीं जाएगा।’’

🔵 मैंने जानना चाहा-ऐसा भी तो है, लोग शरीर, कुल-जाति से सुन्दर होते हुए भी मानसिक मलीनता से ग्रस्त हैं। वासनाओं के अँधेरों से घिरे हैं। तब क्या मैं उनसे घृणा करूँ? हृदयाकाश में प्रदीप्त च्योतिर्मय सूर्यमण्डल से आता हुआ एक स्वर पुनः गूँजा-नहीं, घृणा मत करना, घृणा उनके अँधेरों को और अधिक घना करेगी। इससे उनकी मलीनता और अधिक प्रगाढ़ होगी। उन्हें अधिक और अधिक प्यार की जरूरत है। प्रेम का निर्मल जल उन्हें परिशुद्ध करेगा। प्रेम की उज्ज्वलता उनके अँधेरों को प्रकाशित करेगी और वासनाओं को समाप्त। मलीनताओं के नष्ट होते ही उनका शाश्वत सौन्दर्य स्वतः प्रकट हो जाएगा। वैसा ही सौन्दर्य जिसके ध्यान में तुम इन क्षणों में तल्लीन हो।

🔴 तो मैंने कहा-‘‘माँ! संसार कोलाहलपूर्ण है। सर्वत्र करुण और कठोर क्रन्दन गूँज रहे हैं, तुम बताओं मैं सुनूँगा क्या?’’ अविचल और शान्तभाव से मेरे हृदय में शीतलता जगाती हुई वेदमाता गायत्री की एक और स्वर झंकृति सुनायी दी-‘‘वत्स! उन शब्दों को सुना करो जिनका उच्चारण न जिह्वा करती है, न ओठ और न कण्ठ। नीरव अन्तराल से जो मौन प्रेरणाएँ और परागान प्रस्फुटित होता रहता है, उसे सुनकर तेरा मानव जीवन धन्य हो जाएगा।’’

🔵 तभी से मैं किसी भी वर्ण, त्वचा और शरीर वाले दीन-दुःखी को प्यार करने में लगा हूँ। उन्हें भी मैं अपने निर्मल प्रेम के जल से धोता हूँ, जो वासनाओं की मलीनता से ग्रस्त हैं। मेरे अन्दर अब प्यार के सिवा और कुछ नहीं। तब से मैं हृदय गुहा में असीम सौन्दर्य के ध्यान में निमग्न हूँ, तभी से मौन की शरण होकर उस स्तोत्र को सुनकर आनन्दपूरित हो रहा हूँ, जिसे युगों से नभोमण्डल का कोई अदृश्य गायक गाता और शाश्वत सौन्दर्य का बोध कराता रहता है।

🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 35

👉 समय का सदुपयोग करें (भाग 14)

🌹 समय जरा भी नष्ट मत होने दीजिये

🔴 संसार में जितने भी महान पुरुष हुए हैं उनकी महानता का एक ही आधार स्तम्भ है कि उन्होंने अपने समय का पूरा-पूरा उपयोग किया। एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने दिया। जिस समय लोग मनोरंजन, खेल-तमाशों में मशगूल रहते हैं, व्यर्थ आलस्य प्रमाद में पड़े रहते हैं, उस समय महान् व्यक्ति महत्त्वपूर्ण कार्यों का सृजन करते रहते हैं। ऐसा एक भी महापुरुष नहीं जिसने अपने समय को नष्ट किया हो और वह महान् बन गया हो। समय बहुत बड़ा धन है। भौतिक धन से भी अधिक मूल्यवान्। जो इसे भली प्रकार उपयोग में लाता है वह सभी तरह के लाभ प्राप्त कर सकता है। छोटे से जीवन में भी बहुत बड़ी सफलतायें प्राप्त कर लेता है। वह छोटी-सी उम्र में ही दूसरों से बहुत आगे बढ़ जाता है।

🔵 समय जितना कीमती और फिर न मिलने वाला तत्व है उतना उसका महत्व प्रायः हम लोग नहीं समझते। हममें से बहुत-से लोग अपने समय का बहुत ही दुरुपयोग करते हैं, उसको व्यर्थ की बातों में नष्ट करते रहते हैं। आश्चर्य है समय ही ऐसा पदार्थ है जो एक निश्चित मात्रा में मनुष्य को मिलता है लेकिन उसका उतना ही अधिक अपव्यय भी होता है। हममें से कितने लोग ऐसा सोचते हैं कि हमारा कितना समय आवश्यक और उपयोगी कार्यों में लगता है और कितना व्यर्थ के कामों में, सैर-सपाटे, मित्रों में गपशप, खेल-तमाशे, मनोरंजन, आलस्य, प्रमाद आदि में? हम कितना नष्ट करते हैं, व्यर्थ की बकवास, अनावश्यक कार्यों में? हम जितना समय नष्ट करते हैं यदि उसका लेखा-जोखा लें तो प्रतीत होगा कि अपने जीवन धन का एक बहुत बड़ा भाग हम अपने आप ही व्यर्थ नष्ट कर डालते हैं समय के रूप में। काश एक-एक मिनट, घण्टे, दिन का हम उपयोग करें तो कोई कारण नहीं कि हम जीवन में महान् सफलताएं प्राप्त न करें।

🔴 समय की बरबादी का सबसे पहला शत्रु है किसी काम को आगे के लिये टाल देना। ‘आज नहीं कल करेंगे।’ इस कल के बहाने हमारा बहुत-सा वक्त नष्ट हो जाता है। स्वेटमार्डेन ने लिखा है ‘इतिहास के पृष्ठों में कल की धारा पर कितने प्रतिभावानों का गला कट गया, कितनों की योजनायें अधूरी रह गईं, कितनों के निश्चय बस यों ही रह गये, कितने पछताते, हाथ मलते रह गये! कल असमर्थता और आलस्य का द्योतक है।’

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 86)

🌹 जीवन साधना जो कभी असफल नहीं जाती

🔴 जन्मतः सभी अनगढ़ होते हैं। जन्म-जन्मांतरों के कुसंस्कार सभी पर न्यूनाधिक मात्रा में लदे होते हैं। वे अनायास ही हट या भग नहीं जाते। गुरु कृपा या पूजा-पाठ से भी वह प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। उनके समाधान का एक ही उपाय है-जूझना। जैसे ही कुविचार उठें, उनके प्रतिपक्षी सद्विचारों की सेना को पहले ही प्रशिक्षित, कटिबद्ध रखा जाए और विरोधियों से लड़ने को छोड़ दिया जाए। जड़ जमाने का अवसर न मिले तो कुविचार या कुसंस्कार बहुत समय तक ठहरते नहीं। उनकी सामर्थ्य स्वल्प होती है।

🔵 वे आदतों और प्रचलनों पर निर्भर रहते हैं। जबकि सद्विचारों के पीछे तर्क, तथ्य, प्रमाण, विवेक आदि अनेकों का मजबूत समर्थन रहता है। इसलिए शास्त्रकार की उक्ति ऐसे अवसरों पर सर्वथा खरी उतरती है, जिनमें कहा गया है कि ‘‘सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं।’’ इसी बात को यों भी कहा जाता है कि ‘‘परिपक्व किए गए सुसंस्कार ही जीतते हैं, आधार रहित कुसंस्कार नहीं।’’ जब सरकस के रीछ-वानरों को आश्चर्यजनक कौतुक, कौतूहल दिखाने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है, तो कोई कारण नहीं कि अनगढ़ मन और जीवन क्रम को संकल्पवान साधनों के हंटर से सुसंस्कारी न बनाया जा सके।

🔴 गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलने से त्रिवेणी संगम बनने और उसमें स्नान करने वाले का काया-कल्प होने की बात कही गई है। बगुले का हंस और कौए का कोयल आकृति से बदल जाना तो सम्भव नहीं है, पर इस आधार पर विनिर्मित हुई अध्यात्म धारा का अवगाहन करने से मनुष्य का अंतरंग और बहिरंग जीवन असाधारण रूप से बदल सकता है, यह निश्चित है। यह त्रिवेणी उपासना, साधना और आराधना के समन्वय से बनती है। यह तीनों कोई क्रियाकाण्ड नहीं हैं जिन्हें इतने समय में, इस विधि से, इस प्रकार बैठकर सम्पन्न करते रहा जा सके।

🔵 यह चिंतन, चरित्र और व्यवहार में होने वाले उच्चस्तरीय परिवर्तन हैं, जिनके लिए अपनी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों पर निरंतर ध्यान देना पड़ता है। दुरितों के संशोधन में प्रखरता का उपयोग करना पड़ता है और नई विचारधारा में अपने गुण, कर्म, स्वभाव को इस प्रकार अभ्यस्त करना पड़ता है जैसे अनगढ़ पशु-पक्षियों को सरकस के करतब दिखाने के लिए जिस तिस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है। पूजा कुछ थोड़े समय की हो सकती है, पर साधना तो ऐसी है, जिसके लिए गोदी के बच्चे को पालने के लिए निरंतर ध्यान रखना पड़ता है। फलवती भी वही होती है। जो लोग पूजा को बाजीगरी समझते हैं और जिस-तिस प्रकार के क्रिया-कृत्य करने भर के बदले ऋद्धि-सिद्धियों के दिवास्वप्न देखते हैं, वे भूल करते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/jivan.2

👉 आज का सद्चिंतन 20 April 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 20 April 2017


👉 जगज्जननी की कृपा से नारी का स्वरूप बोध

🔵 हे माँ! आपका सान्निध्य पाकर हम जान सके कि ‘नारी ब्रह्म विद्या है, श्रद्धा है, शक्ति है, पवित्रता है, कला है और वह सब कुछ है जो इस संसार में सर्वश्रेष्ठ के रूप में दृष्टिगोचर होता है। नारी कामधेनु है, अन्नपूर्णा है, सिद्धि है, ऋद्धि है और वह सब कुछ है जो मानव प्राणी के समस्त अभावों, कष्टों एवं संकटों को निवारण करने में समर्थ है।’ यदि उसे श्रद्धासिक्त सद्भावना अर्पित की जाय, तो वह विश्व के कण-कण को स्वर्गीय परिस्थितियों से ओत-प्रोत कर सकती है।

🔴 आपका वात्सल्य पाकर हमें बोध हुआ कि नारी सनातन शक्ति है। वह आदिकाल से उन सामाजिक दायित्वों को अपने कन्धों पर उठाए आ रही है, जिन्हें केवल पुरुष के कन्धों पर डाल दिया गया होता, तो वह न जाने कब लड़खड़ा गया होता, किन्तु विशाल भवनों का असह्य भार वहन करने वाली नींव के समान वह उतनी ही कर्त्तव्यनिष्ठा, उतने ही मनोयोग, सन्तोष और उतनी ही प्रसन्नता के साथ उसे आज भी ढोए चल रही है। वह मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है।

🔵 भौतिक जीवन की लालसाओं को उसी की पवित्रता ने रोका और सीमाबद्ध करके उन्हें प्यार की दिशा दी। प्रेम नारी का जीवन है। अपनी इस निधि को वह अतीत काल से मानव पर न्योछावर करती आयी है। कभी न रुकने वाले इस अमृत निर्झर ने संसार को शान्ति और शीतलता दी है।

🔴 हे जगज्जननी! आपकी कृपा से हम अपने अन्तःकरण में इस ऋषिवाणी को अनुभव करते हैं-
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ता सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति।।

🔵 हे देवि! समस्त संसार की सब विद्याएँ तुम्हीं से निकली हैं और सब स्त्रियाँ तुम्हारा ही स्वरूप हैं, समस्त विश्व एक मात्र तुम्हीं से पूरित है। अतः तुम्हारी स्तुति किस प्रकार की जाय?

🔴 अन्तःकरण में इस भाव की घनीभूत अनुभूति से प्रेरित होकर हम सब आपकी सन्तानें, आपकी द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर अखण्ड च्योति के इस अंक को ‘नारी-अंक’ के रूप में आपको समर्पित करते हैं। भावों की इस पुप्षाञ्जलि को स्वीकार करो माँ! और हम सब पर सदा की भाँति अपने आँचल की वरद्च्छाया बनाये रखना।

🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 34

👉 समय का सदुपयोग करें (भाग 13)

🌹 समय जरा भी नष्ट मत होने दीजिये

🔴 संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति मनुष्य के लिये असम्भव हो। प्रयत्न और पुरुषार्थ से सभी कुछ पाया जा सकता है लेकिन एक ऐसी भी चीज है जिसे एक बार खोने के बाद कभी नहीं पाया जा सकता और वह है—समय। एक बार हाथ से निकला हुआ समय फिर कभी हाथ नहीं आता। कहावत है ‘‘बीता हुआ समय और कहे हुए शब्द कभी वापस नहीं बुलाये जा सकते।’’ समय परमात्मा से भी महान् है। भक्ति साधना द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कई बार किया जा सकता है लेकिन गुजरा हुआ समय पुनः नहीं मिलता।

🔵 समय ही जीवन की परिभाषा है, क्योंकि समय से ही जीवन बनता है। समय का सदुपयोग करना जीवन का उपयोग करना है। समय का दुरुपयोग करना जीवन का नष्ट करना है। समय किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। वह प्रतिक्षण, मिनट, घन्टे, दिन, महलने, वर्षों के रूप में निरन्तर अज्ञात दिशा को जाकर विलीन होता रहता है। समय की अजस्र धारा निरन्तर प्रवाहित होती रहती है और फिर शून्य में विलीन हो जाती है फ्रैंकलिन ने कहा है—‘‘समय बरबाद मत करो क्योंकि समय से ही जीवन बना है।’’ निस्सन्देह वक्त और सागर की लहरें किसी की प्रतीक्षा नहीं करतीं हमारा कर्तव्य है कि हम समय का पूरा पूरा सदुपयोग करें।

🔴 सचमुच जो व्यक्ति अपना तनिक सा भी समय व्यर्थ नष्ट करते हैं उन्हें समय अनेकों सफलताओं से वंचित कर देता है। नेपोलियन ने आस्ट्रेलिया को इसलिए हरा दिया कि वहां के सैनिकों ने पांच ही मिनटों का विलम्ब कर दिया उसका सामना करने में। लेकिन वही नेपोलियन कुछ ही मिनटों में बन्दी बना लिया गया क्योंकि उसका एक सेनापति कुछ ही मिनट विलम्ब से आया। वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन की पराजय इसी कारण से हुई। समय की उपेक्षा करने पर देखते देखते विजय का पासा पराजय में पलट जाता है लाभ हानि में बदल जाता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...