बुधवार, 24 जून 2020
👉 Surprise test
एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला, “चलिए, surprise test के लिए तैयार हो जाइये। सभी स्टूडेंट्स घबरा गए… कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे। “ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “मैं Question paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखिएगा” पेपर बाँट दिए गए।
“ठीक है ! अब आप पेपर देख सकते हैं, प्रोफेसर ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी Question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या? इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट! ये क्या सर? इसमें तो कोई question ही नहीं है, एक छात्र खड़ा होकर बोला।
प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है। आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”
स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answer लिखने लगे।
समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect की और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे। लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।
प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है। मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…
देखिये… इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है…
समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं… कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है, तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है।
क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं… क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फैमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं…. क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।
तो चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को ENJOY करना सीखें ….
तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंग।
“ठीक है ! अब आप पेपर देख सकते हैं, प्रोफेसर ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी Question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या? इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट! ये क्या सर? इसमें तो कोई question ही नहीं है, एक छात्र खड़ा होकर बोला।
प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है। आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”
स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answer लिखने लगे।
समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect की और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे। लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।
प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है। मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…
देखिये… इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है…
समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं… कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है, तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है।
क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं… क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फैमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं…. क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।
तो चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को ENJOY करना सीखें ….
तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंग।
👉 मन—बुद्धि—चित्त अहंकार का परिष्कार (भाग २)
जीवन का पारमार्थिक यापन ही वह विधि है जो मनुष्य को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करती है। निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा, परोपकार तथा जीव-मात्र के प्रति प्रेम भाव रखना पारमार्थिक जीवन के लक्षण हैं। मनुष्य में इस प्रकार की सद्वृत्तियाँ केवल आध्यात्मिक मनोभूमि पर ही अंकुरित एवं पल्लवित हो सकती हैं। जीवन को आध्यात्मिक साँचे में ढाल लेने से पारमार्थिकता की सिद्धि सहज ही हो जाती है।
आध्यात्मिक जीवन ही शुद्ध, प्रबुद्ध एवं सफल जीवन है और इसी जीवन में मनुष्य को सुख-शाँति भी मिलती है। पारमार्थिक जीवन-यापन के रूप में किये जाने वाले परोपकार आदि सत्कर्म भी मनुष्य को वास्तविक सुख-शाँति नहीं दे पाते और वह कहने के लिये सत्कर्म करता हुआ भी अशाँत एवं असन्तुष्ट अन्त को प्राप्त होता है। लोग दान करते, दीन-दुखियों की सहायता करते, स्मारक तथा इमारतें बनवाते, भजन-पूजन तथा जप-जोग भी करते हैं, किन्तु फिर भी उनका जीवन सुख-शाँति की आशा में समाप्त हो जाता है।
आध्यात्मिक जीवन ही शुद्ध, प्रबुद्ध एवं सफल जीवन है और इसी जीवन में मनुष्य को सुख-शाँति भी मिलती है। पारमार्थिक जीवन-यापन के रूप में किये जाने वाले परोपकार आदि सत्कर्म भी मनुष्य को वास्तविक सुख-शाँति नहीं दे पाते और वह कहने के लिये सत्कर्म करता हुआ भी अशाँत एवं असन्तुष्ट अन्त को प्राप्त होता है। लोग दान करते, दीन-दुखियों की सहायता करते, स्मारक तथा इमारतें बनवाते, भजन-पूजन तथा जप-जोग भी करते हैं, किन्तु फिर भी उनका जीवन सुख-शाँति की आशा में समाप्त हो जाता है।
वास्तविक सुख-शाँति केवल ऊपरी दान-पुण्य करते रहने से नहीं मिल सकती। उसके लिये आध्यात्मिक स्थिति का मूलाधार अन्तःकरण को निर्मल एवं शुद्ध करना होगा। ऊपर से दिखाई देने वाले सत्कर्म भी अन्तःकरण की शुद्धता के अभाव में निष्फल चले जाते हैं। दान देते समय यदि यह विचार रहता है कि मैं कोई एक विशेष कार्य कर रहा हूँ और इसके उपलक्ष में हमको सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए तो निश्चय ही वह दान-पुण्य के फल से वंचित रह जायेगा। किसी की कुछ भलाई करते समय यदि यह विचार रहता है कि मैं किसी पर आभार कर रहा हूँ तो वह उपकार कार्य परमार्थ की परिधि में नहीं आ सकता। किसी परमार्थ कार्य में निरहंकारिता का समावेश तभी सम्भव हो सकता है जब कि मनुष्य का अन्तःकरण निर्मल एवं शुद्ध होगा। अशुद्ध अन्तःकरण की स्थिति में लोभ, मोह, स्वार्थ एवं अहंकार आदि विकारों का आना स्वाभाविक है।
वह मनुष्य निश्चय ही सौभाग्यवान है जिसने अपने अन्तःकरण को निर्मल बना लिया है और जिसका जीवन आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो रहा है। अध्यात्म जीवन का वह तत्वज्ञान है, जिसके आधार पर मनुष्य विश्व ही नहीं अखण्ड ब्रह्माण्ड के सारे ऐश्वर्य को उपलब्ध कर सकता है। अध्यात्म ज्ञान के बिना सारा वैभव—सारा ऐश्वर्य और सारी उपलब्धियाँ व्यर्थ हैं। जो भाग्यवान अपने परिश्रम, पुरुषार्थ एवं परमार्थ से थोड़ा बहुत भी अध्यात्म लाभ कर लेता है वह एक शाश्वत सुख का अधिकारी बन जाता है। व्यवहार जगत में अनेक सीखने योग्य ज्ञानों की कमी नहीं है। लोग इन्हें सीखते हैं, उन्नति करते हैं, सुख−सुविधा के अनेक साधन जुटा लेते हैं। किन्तु इस पर भी जब तक वे अध्यात्म की ओर उन्मुख नहीं होते वास्तविक सुख-शाँति नहीं पा सकते।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1961 पृष्ठ 8
👉 Create Happiness in Life
Rise up with new zest for life. Sow the seeds of livelihood (in your mental field); create an ambience of purity around you. First uproot the hazardous ‘shrubs’ of ego and jealousy. If you tell lies, cheat others, conspire something against someone, you would belittle yourself; decline and darken your own future. If you attempt so, even if you apply all your powers, you may never be able to harm any one, as much as you would harm yourself; this way you would ruin your life completely.
Be sincere and endeavor to progress with honest and just means. You will have to prove yourself before the world if you want to achieve something here. It is the law of Nature that only those who are fit and vigorous to struggle against odds have the privilege of living a progressive life. If you can’t prove your independence in resolving your own problems, you can’t expect respect from others, if you are always dependent on others; the world will know you asnothing more than a parasite or a beggar.
That is why I am calling you. Get up! Rise! Strive to shape up your life by your diligence and sincere efforts of self-refinement!! Struggle to acquire and protect your rights as a human!!! You will find that the struggle of self-evolution is most blissful part of life. Few hours of such a life are better than thousands years of a lethargic, dull, ignorant life which is like a living ‘corpse’.
📖 Akhand Jyoti, Feb. 1945
Be sincere and endeavor to progress with honest and just means. You will have to prove yourself before the world if you want to achieve something here. It is the law of Nature that only those who are fit and vigorous to struggle against odds have the privilege of living a progressive life. If you can’t prove your independence in resolving your own problems, you can’t expect respect from others, if you are always dependent on others; the world will know you asnothing more than a parasite or a beggar.
That is why I am calling you. Get up! Rise! Strive to shape up your life by your diligence and sincere efforts of self-refinement!! Struggle to acquire and protect your rights as a human!!! You will find that the struggle of self-evolution is most blissful part of life. Few hours of such a life are better than thousands years of a lethargic, dull, ignorant life which is like a living ‘corpse’.
📖 Akhand Jyoti, Feb. 1945
👉 दृष्टिकोण के अनुरूप संसार का स्वरूप (भाग १)
इस अद्भुत संसार में विभिन्न प्रवृत्तियों तथा मनोदशाओं के लोग पाये जाते हैं। एक ही स्थिति, परिस्थिति तथा दशा वाले अनेक लोगों में से कोई अत्यधिक दुःखी और व्यग्र देखे जा सकते हैं और अनेक यथासम्भव प्रसन्न तथा संतुष्ट।
निःसन्देह, ऐसे व्यक्ति विचित्र होने के साथ दयनीय भी कम नहीं होते, जो हर समय दुःखी और क्लान्त ही बने रहते हैं। मिलते ही दुःखों, कष्टों तथा कठिनाइयों का रोना लेकर बैठ जाते हैं। आय कम है, खर्चा पूरा नहीं होता, बीवी बच्चे स्वस्थ ही नहीं रहते, दफ्तर में तनाव बना रहता है, तरक्की के चांस आते ही नहीं या आकर निकल जाते हैं, कोई लाभ ही नहीं होता, बेचारे ऑफिसर के अन्याय, रोष अथवा पक्षपात के शिकार बने हुये हैं—इस प्रकार की व्यक्तिगत और समय बहुत खराब आ गया है, संसार विनाश के मुख पर खड़ा है, भ्रष्टाचार चरम-सीमा पर जा पहुंचा है, मानव जाति का भविष्य खतरे में है, समाज बहुत दूषित हो चुका है, सुधार की सम्भावनायें क्षीण हो गई हैं, बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति हानि के सिवाय लाभ तो कर ही नहीं सकती, किसी समय भी युद्ध हो सकता है, मनुष्य का घोर-पतन हो गया है, सदाचार तथा सज्जनता तो कहीं दीखती ही नहीं, मर्यादा और अनुशासन जैसी कोई वस्तु ही नहीं रह गई है—आदि जगबीती सुनाते रहते हैं। उनकी व्यथा-कथा सुनने से ऐसा पता चलता है, मानो संसार के सारे दुःख सारी चिन्तायें इन्हीं बेचारों के भाग्य में भर दी गई हैं। संसार में इन जैसा कष्ट-ग्रस्त दूसरा कोई न होगा।
विचार करने की बात है कि जिस मनुष्य के मत्थे, इतनी मुसीबतें तथा चिन्तायें हों, क्या वह सामान्य मनोदशा में संसार के सारे कार्य तथा व्यापार करता रह सकता है। किसी एक वास्तविक चिन्ता के मारे तो मनुष्य का खाना-पीना, सोना-जागना हराम हो जाता है और जब तक वह उससे मुक्ति नहीं पा लेता, चैन की सांस नहीं लेता। परिश्रम और प्रयत्न में एड़ी-चोटी का पसीना एक कर देता है। तब इतनी चिन्ताओं वाले जीवन की गाड़ी ढकेलता हुआ सामान्य गति से चलता रह सकता है—ऐसी आशा नहीं की जा सकती। ऐसे व्यक्ति की केवल दो ही दशायें सम्भव हो सकती हैं—या तो उसे विक्षिप्त हो जाना चाहिये अथवा कोई महान् पुरुष। किन्तु वह इनमें से कुछ नहीं होता। एक सामान्य सा दुःखी तथा क्लान्त व्यक्ति ही बना रहता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1968 पृष्ठ 37
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1968/December/v1.37
निःसन्देह, ऐसे व्यक्ति विचित्र होने के साथ दयनीय भी कम नहीं होते, जो हर समय दुःखी और क्लान्त ही बने रहते हैं। मिलते ही दुःखों, कष्टों तथा कठिनाइयों का रोना लेकर बैठ जाते हैं। आय कम है, खर्चा पूरा नहीं होता, बीवी बच्चे स्वस्थ ही नहीं रहते, दफ्तर में तनाव बना रहता है, तरक्की के चांस आते ही नहीं या आकर निकल जाते हैं, कोई लाभ ही नहीं होता, बेचारे ऑफिसर के अन्याय, रोष अथवा पक्षपात के शिकार बने हुये हैं—इस प्रकार की व्यक्तिगत और समय बहुत खराब आ गया है, संसार विनाश के मुख पर खड़ा है, भ्रष्टाचार चरम-सीमा पर जा पहुंचा है, मानव जाति का भविष्य खतरे में है, समाज बहुत दूषित हो चुका है, सुधार की सम्भावनायें क्षीण हो गई हैं, बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति हानि के सिवाय लाभ तो कर ही नहीं सकती, किसी समय भी युद्ध हो सकता है, मनुष्य का घोर-पतन हो गया है, सदाचार तथा सज्जनता तो कहीं दीखती ही नहीं, मर्यादा और अनुशासन जैसी कोई वस्तु ही नहीं रह गई है—आदि जगबीती सुनाते रहते हैं। उनकी व्यथा-कथा सुनने से ऐसा पता चलता है, मानो संसार के सारे दुःख सारी चिन्तायें इन्हीं बेचारों के भाग्य में भर दी गई हैं। संसार में इन जैसा कष्ट-ग्रस्त दूसरा कोई न होगा।
विचार करने की बात है कि जिस मनुष्य के मत्थे, इतनी मुसीबतें तथा चिन्तायें हों, क्या वह सामान्य मनोदशा में संसार के सारे कार्य तथा व्यापार करता रह सकता है। किसी एक वास्तविक चिन्ता के मारे तो मनुष्य का खाना-पीना, सोना-जागना हराम हो जाता है और जब तक वह उससे मुक्ति नहीं पा लेता, चैन की सांस नहीं लेता। परिश्रम और प्रयत्न में एड़ी-चोटी का पसीना एक कर देता है। तब इतनी चिन्ताओं वाले जीवन की गाड़ी ढकेलता हुआ सामान्य गति से चलता रह सकता है—ऐसी आशा नहीं की जा सकती। ऐसे व्यक्ति की केवल दो ही दशायें सम्भव हो सकती हैं—या तो उसे विक्षिप्त हो जाना चाहिये अथवा कोई महान् पुरुष। किन्तु वह इनमें से कुछ नहीं होता। एक सामान्य सा दुःखी तथा क्लान्त व्यक्ति ही बना रहता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1968 पृष्ठ 37
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1968/December/v1.37
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