शनिवार, 17 मार्च 2018

👉 चैत्र नवरात्री की मंगल कामनाए

🔶 सभी को चैत्र नवरात्री की मंगल कामनाए। इस वर्ष नवरात्री साधना का पर्व १८ मार्च को है। नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है।  प्रातःकाल और सायंकाल की तरह इन दिनों की भी विशेष परिस्थितियाँ होती हैं उनमें सूक्ष्म जगत के दिव्य प्रवाह उभरते और मानवी चेतना को प्रभावित करते हैं। न केवल प्रभावित करने वाली वरन् अनुमूलन उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ भी अनायास ही बनती हैं। इसे समय की विशेषता कह सकते हैं।

🔷 नवरात्रियों में कुछ ऐसा वातावरण रहता है जिसमें आत्मिक प्रगति के लिए प्रेरणा और अनुकूलता की सहज शुभेच्छा बनते देखी जाती है।

🔶 ऐसे ही अनेक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तत्वदर्शी ऋषियों, मनीषियों ने नवरात्रि में साधना का अधिक माहात्म्य बताया है इस बात पर जोर दिया है कि अन्य अवसरों पर न बन पड़े सही पर नवरात्रि में आध्यात्मिक तप साधना का सुयोग बिठाने का प्रयत्न तो करना ही चाहिए। तंत्र विज्ञान के अधिकांश कर्म इन्हीं दिनों सम्पन्न होते हैं।

🔷 नैष्ठिक साधकों के लिए आश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में अनुष्ठान साधना एक अत्यावश्यक पुण्य परम्परा के रूप में सदा सर्वदा से अपनाई जाती रही है।  २४,००० गायत्री महामंत्र द्वारा गायत्री लघु अनुष्ठान साधको के लिए अनिवार्य है।
 
🔶 जो साधारणतया दैनिक उपासना के अभ्यस्त नहीं हैं और यदा- कदा ही कभी कुछ पूजा पाठ करते हैं ऐसे लोगों पर भी जोर दिया जाता है कि वे कम से कम उन दिनों तो कुछ नियम निबाहें और निश्चित साधना की बात सोचें। इन अभ्यासों के लिए भी कई प्रकार की सरल साधनाओं की विशेष व्यवस्था की जाती है ताकि उन्हें बोझ लगने और मन उचटने की कठिनाई का सामना न करना पड़े।

🔷 मन्त्र लेखन गायत्री चालीसा पाठ, पंचाक्षरी जप आदि की सरल व्यवस्थाएँ उसी आधार पर बनी हैं और २४ हजार वाली संख्या को घटा कर १० हजार तक हलका किया जा सकता है। नौ दिन में दस हजार जप करने का तात्पर्य मात्र हर रोज एक घण्टा समय लगाना भर होता है। यह किसी के लिए भी भारी नहीं पड़ना चाहिए। मन्त्र लेखन हर रोज ११२ करने में नौ दिन में एक हजार लिख जाते हैं यह भी एक अनुष्ठान है। गायत्री चालीसा के हर दिन बारह पाठ करने से नवरात्रि में १०८ हो जाते हैं। ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ यह पंचाक्षरी गायत्री है। इतना तो अशिक्षित एवं बालक भी याद कर सकते हैं और सुविधानुसार संख्या निर्धारित करके उसकी पूर्ति करते रह सकते हैं। प्रमुख तथ्य नियमितता है, न्यूनाधिकता नहीं। नियमित साधना को अनुष्ठान कहते हैं। उसके साथ तपश्चर्याओं का अनुशासन जुड़ जाने से उसकी संज्ञा पुरश्चरण की जाती है।

🔶 अधिक जानकारी के लिए कृपया नीचे दिए बुक एवं आलेखों का अवलोकन अवश्य करें.

नवरात्रि पर्व और गायत्री की विशेष तप- साधना
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.1

असामान्य सुयोग उपलब्ध कराने वाली नवरात्रियाँ
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.1

नवरात्रि अनुष्ठान का विधि- विधान
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.2

गायत्री अनुष्ठान और कन्या पूजन
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.3

नवरात्रि अनुशासन का तत्वदर्शन
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.4

अनेकों सत्प्रवृत्तियों का उभार नवरात्रि आयोजनों मे
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.5

सामूहिक साधना का उपयुक्त अवसर नवरात्रि पर्व
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http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.6

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