🔸 डर तभी हो सकता है जब हृदय कमजोर हो। हृदय कमजोर करने वाली एक ही वस्तु है संसार में चाहे उसे अविश्वास, अपघात, धोखेबाजी, बेईमानी कह लो अथवा पाप। मुख्य बात यह है कि हमें किसी से भय न हो इसके लिये यह भी आवश्यक है कि हम किसी के साथ क्षुद्रता न करें। जब कोई बुरी बात मन में आती है तभी मनःस्थिति कमजोर होती है और छुपाने का स्थान ढूँढ़ना पड़ता है। हमारे मन में उठने वाली भावनायें पवित्र हों योजनायें और विचार धारायें ऐसी हों जिनसे जीवन सुव्यवस्थित बनता हो, प्रगति होती हो, हमारे कार्य इतने स्वच्छ हों कि कभी किसी को ॐ गली उठाने का अवसर न मिले तो फिर डर भी किस लिये होगा? डर का घर नहीं रहेगा तो वह बसेगा कहाँ?
🔹 संसार में सब मित्र ही नहीं होते शत्रु भी होते हैं। विसंगतियाँ प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती हैं। आप अच्छे व्यक्ति हैं। आपकी भावनायें सदैव दूसरों का कल्याण चाहती हैं परोपकार, परमार्थ और पुण्य को जीवन का लक्ष्य मान कर चलने वाले लोगों के साथ भी खरपेंच लगाने वालों की कमी नहीं रहती। भलमनसाहत जितनी है दुष्टता भी उससे कम नहीं। इन्हीं को शत्रु कहा गया है।
🔸 मन की शक्तियाँ विलक्षण हैं। मनुष्य का सुख-दुख बन्धन और मोक्ष मन के अधीन है। संसार में ऐसा कोई स्थल नहीं जहाँ मन न जा सके, लोक और परलोक में भी मन एक पल में जा सकता है। जिसे आंखें देख नहीं सकतीं, जो कान सुन नहीं सकते, मन उसे भी सरलता से ग्रहण कर सकता है उसकी चंचलता को रोका जा सके और पारदर्शी काँच की तरह स्वच्छ बनाया जा सके तो आत्म साक्षात्कार का नित्य निरतिशय सुख भी मन के आधीन है। “मन सैवानुद्रष्टव्यम्” आत्मसाक्षात्कार के लिए मन ही नेत्रवान् है ऐसा श्रुति में कहा गया है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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