बुधवार, 27 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 27 Dec 2023

🔸 डर तभी हो सकता है जब हृदय कमजोर हो। हृदय कमजोर करने वाली एक ही वस्तु है संसार में चाहे उसे अविश्वास, अपघात, धोखेबाजी, बेईमानी कह लो अथवा पाप। मुख्य बात यह है कि हमें किसी से भय न हो इसके लिये यह भी आवश्यक है कि हम किसी के साथ क्षुद्रता न करें। जब कोई बुरी बात मन में आती है तभी मनःस्थिति कमजोर होती है और छुपाने का स्थान ढूँढ़ना पड़ता है। हमारे मन में उठने वाली भावनायें पवित्र हों योजनायें और विचार धारायें ऐसी हों जिनसे जीवन सुव्यवस्थित बनता हो, प्रगति होती हो, हमारे कार्य इतने स्वच्छ हों कि कभी किसी को ॐ गली उठाने का अवसर न मिले तो फिर डर भी किस लिये होगा? डर का घर नहीं रहेगा तो वह बसेगा कहाँ?

🔹 संसार में सब मित्र ही नहीं होते शत्रु भी होते हैं। विसंगतियाँ प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती हैं। आप अच्छे व्यक्ति हैं। आपकी भावनायें सदैव दूसरों का कल्याण चाहती हैं परोपकार, परमार्थ और पुण्य को जीवन का लक्ष्य मान कर चलने वाले लोगों के साथ भी खरपेंच लगाने वालों की कमी नहीं रहती। भलमनसाहत जितनी है दुष्टता भी उससे कम नहीं। इन्हीं को शत्रु कहा गया है।

🔸 मन की शक्तियाँ विलक्षण हैं। मनुष्य का सुख-दुख बन्धन और मोक्ष मन के अधीन है। संसार में ऐसा कोई स्थल नहीं जहाँ मन न जा सके, लोक और परलोक में भी मन एक पल में जा सकता है। जिसे आंखें देख नहीं सकतीं, जो कान सुन नहीं सकते, मन उसे भी सरलता से ग्रहण कर सकता है उसकी चंचलता को रोका जा सके और पारदर्शी काँच की तरह स्वच्छ बनाया जा सके तो आत्म साक्षात्कार का नित्य निरतिशय सुख भी मन के आधीन है। “मन सैवानुद्रष्टव्यम्” आत्मसाक्षात्कार के लिए मन ही नेत्रवान् है ऐसा श्रुति में कहा गया है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सुस्थिरता का एकमात्र अवलम्बन

आध्यात्मिकता मानव जीवन की रीढ़ है। रीढ़ की हड्डी टूट जाय तो फिर जिन्दगी बेकार हो जाती है। इसी प्रकार जिसमें आध्यात्मिक आस्था न रहेगी वह व्यक्ति अन्य किसी आधार पर इस प्रलोभन भरी दुनियाँ में धर्म कर्तव्य पर टिका न रह सकेगा। वह गड़बड़ में पड़ेगा और गड़बड़ियाँ करेगा। सचाई, नीति और भलाई की नीति चिरकाल तक अपनाये रहना केवल उसी के लिए संभव हो सकता है जो ईश्वर की सर्वज्ञता और न्यायशीलता पर विश्वास करता है। गाँधीजी कहा करते थे—‛प्रार्थना जीवन का ध्रुवतारा है।’ रात्रि के गहन अन्धकार में ध्रुवतारे का अवलम्बन छोड़ देने वाला भटकता ही फिरेगा। आज हमने आस्तिकता और उपासना का मार्ग छोड़ दिया है और सचमुच हम बुरी तरह बीहड़ बन में भटकते रहे हैं। भटकते−भटकते वहाँ आ पहुँचे हैं जहाँ से सर्वनाश अत्यन्त समीप दीखने लगा है। हमें पीछे लौटना होगा। जीवन के ध्रुवतारे की ओर दृष्टि डालनी होगी। आस्तिकता और उपासना का जन−जीवन में कोई स्थान होना ही चाहिए। ‘अखण्ड ज्योति’ का पहला कार्यक्रम यही है। हम में से प्रत्येक व्यक्ति आस्तिक एवं उपासक बने, गायत्री आन्दोलन के पीछे यही भावना सन्निहित है। भारतीय धर्म की सब से प्राचीन, सब से श्रेष्ठ, सबसे वैज्ञानिक, सबसे महत्वपूर्ण उपासना ‘गायत्री’ ही मानी गई है। ऋषियों और शास्त्रों ने जैसा कि इसे अत्याधिक आवश्यक एवं अनिवार्य माना है वैसा ही हम भी मानते हैं और प्रत्येक विचारशील को इसे अपनाने के लिए प्रेरणा देते हैं।

✍🏻 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
📖 *अखण्ड ज्योति फरवरी 1962*

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