गुरुवार, 8 सितंबर 2016

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 35)


🔵 एक वन्य पशु जैसे अपने शिकार की खोज करता है, इन्द्रिय- लोलुप व्यक्ति जिस प्रकार भोगों के लिये व्याकुल होता है, क्षुधा से पीड़ित व्यक्ति जिस प्रकार भोजन ढूँढता है, डूबता हुआ व्यक्ति जिस प्रकार रक्षा के लिये आर्तनाद करता है, उसी व्याकुलता और शक्ति से तुम सत्य की खोज करो। जिस प्रकार एक सिंह निर्भीक और मुक्त होता है तथा कोलाहल से नहीं काँपता, उसी प्रकार सत्य लाभ के लिये दृढ़संकल्प हो कर तुम भी इस संसार में विचरण करो। क्योंकि इसके लिये असीम शक्ति तथा निर्भयता की आवश्यकता है। यदि तुम अपनी आत्मा की शक्तियों को एकत्रित कर लो तथा साहस पूर्वक माया के आवरण को चीर डालो और आगे बढ़ो तो तुम्हारे लिए सभी सीमाएँ टूट जायेंगी तथा सभी टेढ़े मेढ़े रास्ते सीधे हो जायेंगे।  
🔵 क्या तुम ईश्वर की खोज कर रहे हो ? तब जान लो कि तुम्हें आत्मदर्शन होगा। तब स्वयं आत्मा ही तुम्हारे सम्मुख ईश्वर के रूप में प्रगट होगी।

🔴 ओम तत् सत्
और तब गुरुदेव की वाणी उस मौन में समा गई जो कि शांति है तथा उनका रूप उस ज्योति में विलीन हो गया जो कि स्वयं ईश्वर की ज्योति है।


🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

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